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Shahdol News: अपनों के सताए बुजुर्गों से सरकार ने भी मुंह फेरा

- वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की सेवा करने वालों को 6 माह से वेतन नहीं मिला
- प्रदेश सरकार के एक नियम ने ऐसा अडंग़ा डाला कि 13 साल से संचालन कर रही संस्था ने हाथ पीछे खींचा
- आखिर भोपाल में बैठे सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों को उनकी पीड़ा क्यों महसूस नहीं हो रही है।
Shahdol News: मदर्स डे पर रविवार को जब दुनियाभर में मां के त्याग, उनकी ममता और उनके सम्मान में भावनाएं व्यक्त की जा रही है, तब शहडोल स्थित वृद्धाश्रम में अपनों के सताए हुए 7 माताओं को इस बात की चिंता सता रही है कि उनके दो वक्त की रोटी का इंतजाम कैसे होगा। वृद्धाश्रम के संचालन में काम करने वाली सामाजिक संस्था का प्रदेश में ही पंजीकृत होने संबंधी नियम ने ऐसा अडंग़ा डाला कि अच्छे से चल रहे शहडोल वृद्धाश्रम में ताला लगने की नौबत आ गई।
अक्टूबर 2024 से पहले 13 साल तक संचालन करने वाली भारत विकास परिषद देशव्यापी सामाजिक संस्था है और संस्था का पंजीयन दिल्ली में होने के कारण मध्यप्रदेश सरकार ने वृद्धाश्रम संचालन के लिए प्रति सदस्य प्रति माह एक हजार रूपए का अनुदान देने से मना कर दिया। नवंबर 2024 से 6 माह के दौरान किसी तरह से काम तो चलाया जा रहा है पर यही स्थिती रही तो आगे इन बुजुर्गों की देखभाल करने वाले केयरटेर ही कहीं छोडक़र न चले जाएं।
क्योंकि इनको 6 माह से हर माह मिलने वाला 7 हजार रूपए का वेतन ही नहीं मिला है। केयरटेकर शिव प्रसाद केवट मुन्ना, खाना बनाने वालीं खुशबू केवट, चौकीदार राजमन बैगा इसलिए वृद्धाश्रम नहीं छोड़ रहे हैं क्योंकि 14 साल से सेवा करते उन्होंने इन बुजुर्गों को ही अपना मान लिया है। अब छोडऩे का मन नहीं करता तो स्वयं से ही किसी तरह इंतजाम कर वृद्धाश्रम चला रहे हैं। इसमें चावल व गेहूं का इंतजाम राशन दुकान से होने के बाद सामाजिक संस्था सांझी रसोई से सब्जी दी जा रही है।
सामाजिक न्याय विभाग शहडोल के संचालक प्रज्ञा मरावी अपने वेतन हर माह 7 से 8 हजार रूपए नमक, तेल, मसाले व अन्य खर्च के लिए दे रहीं हैं। इन सबके बीच यहां रहने वाले वृद्धजनों का एक ही सवाल है कि आखिर भोपाल में बैठे सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों को उनकी पीड़ा क्यों महसूस नहीं हो रही है।
अब वृद्धाश्रम ही इनका आशियाना
>> आशा गुप्ता (70) शहडोल के बच्चे नहीं हैं वे यहां 20 साल से रह रहीं हैं।
>> कमला गुप्ता (72) पुरानी बस्ती शहडोल की दो बेटियां हैं वे 9 साल से यहां हैं।
>> निर्मला खरे (61) निवासी शहडोल बच्चे नहीं हैं वे डेढ़ साल से रह रहीं हैं।
>> चंदाबाई सोनी (70) छिंदवाड़ा की हैं, बच्चे नहीं हैं। शहडोल आरपीएफ 6 साल पहले यहां छोड़ गई थी।
>> रामबाई यादव (66) धनपुरी की हैं, वे सात साल से यहां हैं उनके बच्चे नहीं हैं।
>> मैकी कोल (75) को वनस्टॉप सेंटर अनूपपुर के कर्मचारी यहां छोडक़र गए, पटौरा गांव में उनके तीन बेटे हैं।
>> बेला बाई सोनी (62) शहडोल की हैं, उनके दो बेटे हैं जो मजदूरी करते हैं।
>> शैलेंद्र शर्मा (72) उमरिया के हैं, बच्चे नहीं हैं।
>> वंशगोपाल सोनी (68) सतना के हैं, बच्चे नहीं हैं।
>> रामभवन यादव (67) शहडोल के हैं, एक बेटी है।
वृद्धाश्रम के संचालन के लिए डायरेक्टर को कई बार पत्र भेजा गया है। भारत विकास परिषद को संचालन के लिए राशि नहीं मिलने और अक्टूबर 24 से हाथ पीछे खींचने के बाद डीएम (जिला प्रबंधन) के माध्यम से संचालन के लिए भी पत्र भेजा गया है, जिस पर भोपाल से जवाब का इंतजार है।
प्रज्ञा मरावी, संचालक सामाजिक न्याय विभाग शहडोल
वृद्धाश्रम शहडोल का संचालन भारत विकास परिषद द्वारा 13 वर्षों से किया जा रहा है तो आगे भी हम संचालन को तैयार हैं बस सरकार को अनुदान बंद नहीं करना चाहिए। वैसे भी अनुदान राशि बहुत ज्यादा नहीं है, इसमें संस्था के सदस्य और शहर के नागरिक भी आर्थिक मदद करते रहे हैं। कुछ दिन पहले ही हमने कूलर बनवाए हैं, जिससे बुजुर्गों को गर्मी में परेशानी नहीं हो।
शैलेष ताम्रकार, अध्यक्ष भारत विकास परिषद शहडोल
Created On :   12 May 2025 6:42 PM IST