इस दिन को क्यों कहा जाता है 'रूप चतुर्दशी'? जानें रोचक FACTS

Amazing facts about  Roop or Narak Chaturdashi 2017
इस दिन को क्यों कहा जाता है 'रूप चतुर्दशी'? जानें रोचक FACTS
इस दिन को क्यों कहा जाता है 'रूप चतुर्दशी'? जानें रोचक FACTS

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव की कड़ी में रूप चतुर्दशी का भी अत्यधिक महत्व है। रूप चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, नरक चौदस, रूप चौदस अथवा नरका पूजा के नामों से जाना जाता है। इस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। इस वर्ष यह 18 अक्टूबर 2017 को मनाई जाएगी। इसे छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। रूप चतुर्दशी के दिन तिल का भोजन और तेल मालिश, उबटन स्नान का अतिमहत्व है। 

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है। 

इस दिन करें ये उपाय

  • इस दिन प्रात: काल शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए। 
  • अपामार्ग अर्थात चिचड़ी की पत्तियों को जल में डालकर स्नान करने से स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। 
  • पूजा के लिए एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दीपक तथा 16 छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर तथा फूलों से इष्ट देव का पूजन करें। 
  • संध्या समय दीपदान करते हुए दक्षिण दिशा की ओर 14 दीपक जलाएं। जो यम देवता के लिए होते हैं। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर ईश्वर की प्राप्ति होती है। 

प्रचलित है ये कथा

रूप चतुर्दशी को लेकर एक कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि प्राचीनक काल में हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी निवास करते थे। एक उन्होंने प्रभु को पानी की इच्छा से कठोर तप व समाधि धारण करने का प्रयास किया, किंतु उन्हें ऐसा करने में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। इससे वे अत्यंत दुखी और पीड़ित थे। तभी धरती पर विचरण के लिए आए नारदमुनि ने उन्हें देखा और उनसे इसका कारण पूछा। योगीराज के बताने पर नारदमुनि ने कहा कि हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है। उन्होंने योगीराज को कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए कहा। योगीराज ने ऐसा किया गया। जिसके बाद उनका शरीर पहले की तरह कांतिमय हो गया और उनका तप भी पूर्ण हुआ। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से प्रभु की आराधना करने पर यम का भय नहीं रहता एवं मनुष्य सौंदर्य को प्राप्त करता है। इसलिए इस चतुर्दशी नरक या रूप चतुर्दशी कहा जाता है। 

Created On :   12 Oct 2017 10:36 AM IST

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