सिर्फ भक्ति में ही नहीं बल्कि युद्ध कला में भी निपुण होते हैं नागा साधु

Apart from devotion Naga sadhus are well defined in wars as well
सिर्फ भक्ति में ही नहीं बल्कि युद्ध कला में भी निपुण होते हैं नागा साधु
सिर्फ भक्ति में ही नहीं बल्कि युद्ध कला में भी निपुण होते हैं नागा साधु

डिजिटल डेस्क, प्रयागराज। नागा साधु का नाम सुनते ही मन में एक छवी बनती है...लंबी- लंबी जटाएं.. तन भस्म से लिपटा हुआ। चाहे कोई भी मौसम हो नागा साधु शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल लंगोट पहनते हैं। यही कारण है कि लोग उनको नागा साधु भी कहते हैं। ये नागा साधु भले ही नग्न अवस्था में रहते हों, लेकिन क्या आपको पता है कि ये सिद्धि प्राप्त के साथ ही युद्ध कला में भी माहिर होते हैं। ये साधु सालों साल आखाड़ों में ही रहते हैं और सिर्फ कुंभ के वक्त ही दिखाई देते हैं। 12 साल की कठिन तपस्या के बाद ही एक आम इंसान नागा साधु बन पाता है।


ऐसी होती है नागा साधुओं की ख़ासियत 

भारत में अखाड़ों की परम्परा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने शुरू की थी। शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने चार पीठों गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ और 7 मठों महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद अखाड़े का निर्माण किया था। आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का मुक़ाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की थी। अखाड़ों का एक नियम ये भी है कि नागा साधुओं को पारिवारिक परिवेश से दूर एक अलग स्थान पर रहना पड़ता है। संन्यासी के अलावा वो न तो किसी को प्रणाम करेगा न ही किसी की निंदा करेगा। दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को इसका पालन करना पड़ता हैं। 

ऐसे बनते हैं नागा साधु


नागा साधु की दीक्षा देने से पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है। तीन साल तक दैहिक ब्रह्मचर्य के साथ मानसिक नियंत्रण को परखने के बाद ही नागा साधु की दीक्षा दी जाती है। दीक्षा लेने से पहले ख़ुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है। हिंदू धर्म में पिंडदान व श्राद्ध मरने के बाद किया जाता है। इसका मतलब हुआ सांसारिक सुख दुःख से हमेशा के लिए मुक्ति। पिंड दान और श्राद्ध के बाद गुरु जो नया नाम और पहचान देता है, उसी नाम के साथ इन्हें ज़िंदगी भर जीना होता है। 

मुगलों को भी हराया नागा साधुओं ने

जानकर हैरानी होगी आपको कि नागा साधु युद्ध कला में इतने माहिर होते हैं कि आर्मी को भी हरा सकते हैं। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें 40 हज़ार से ज़्यादा नागा साधुओं ने हिस्सा लिया था। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की थी।

ऐसे बनती है महिला नागा साधु
 
महिला नागा संन्यासन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि नागा साधु बनने से पहले महिला को खुद को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना पड़ता है और अपना मुंडन कराना होता है, फिर उस महिला को नदी में स्नान के लिए भेजा जाता है। इसके बाद महिला नागा संन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठ कर शिवजी का जाप करती है। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। सिंहस्थ और कुम्भ में नागा साधुओं के साथ ही महिला संन्यासिन भी शाही स्नान करती हैं। दोपहर में भोजन करने के बाद फिरसे शिवजी का जाप करती हैं और शाम को शयन करती हैं। इसके बाद महिला संन्यासन को आखाड़े में पूरा सम्मान दिया जाता है। पूरी संतुष्टी के बाद आचार्य महिला को दीक्षा देते हैं।

इतना ही नहीं उन्हें नागा साधुओं के साथ भी रहना पड़ता है। हालांकि महिला साधुओं या संन्यासन पर इस तरह की पाबंदी नहीं है। वह अपने शरीर पर पीला वस्त्र धारण कर सकती हैं। जब कोई महिला इन सब परीक्षा को पास कर लेती है तो उन्हें माता की उपाधि दे दी जाती है और अखाड़े के सभी छोटे-बड़े साधु-संत उस महिला को माता कहकर बुलाते हैं। पुरुष नागा साधु और महिला नागा साधु में केवल इतना फर्क है कि महिला साधु को पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहनकर स्नान करना पड़ता हैं। महिला नागा साधुओं को नग्न स्नान की अनुमति नहीं हैं। कुंभ मेले में भी नहीं।

 

Created On :   29 Jan 2019 3:42 PM IST

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