आधी रात को हुआ हरि-हर का मिलन, बैकुंठ चतुर्दशी पर मंदिरों में गूंजते रहे भजन-कीर्तन

Bhajan-kirtan resonating  in temples on Baikunth Chaturdashi
आधी रात को हुआ हरि-हर का मिलन, बैकुंठ चतुर्दशी पर मंदिरों में गूंजते रहे भजन-कीर्तन
आधी रात को हुआ हरि-हर का मिलन, बैकुंठ चतुर्दशी पर मंदिरों में गूंजते रहे भजन-कीर्तन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बैकुंठ चतुर्दशी पर मंदिरों में हरि-हर मिलन के कार्यक्रम आयोजन किया गया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं में भगवान शिव को बेल पत्र और श्री कृष्ण को तुलसी अर्पित कर पूजा की। इस त्योहार को भगवान शिव और विष्णु के उपासक बहुत आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। उपराजधानी के मंदिरों में बैकुंठ चतुर्दशी पर हरि-हर मिलन हुआ। धारस्कर रोड के गोवर्धन मंदिर, महल के कल्याणेश्वर मंदिर, गांधीबाग के आयचित मंदिर, हरिहर मंदिर और हुड़केश्वर रोड के मंदिरों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। हरिहर मंदिर में बुधवार 28 नवंबर तक प्रतिदिन सुबह 7.30 से 8.30 बजे तक एवं शाम 7 से 9 बजे तक हरिकिर्तन का आयोजन किया गया हैं। 

मंदिरों में रही देर रात तक रौनक
हुडकेश्वर रोड के दुबे नगर स्थित हनुमान मंदिर, दुर्गा माता मंदिर व सावरबांधे ले आउट के शिव मंदिर में हरि-हर मिलन पर पूजा-अर्चना की गई। इस अवसर पर परिसर की महिलाओं ने पूजा में हिस्सा लिया। श्रद्धालुओं ने रात 12 बजे भगवान शिव को तुलसी और श्रीकृष्ण को बेलपत्र अर्पित किए। उल्लेखनीय है कि कार्तिक माह में सुबह स्नान के बाद मंदिरों में काकड़ आरती की जाती है। इस पूरे माह मंदिरों में भोर से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। बैकुंठ चतुर्दशी पर भी मंदिरों में पूरी रात रौनक देखी गई।  वैसे तो ये पूजा और त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन  उज्जैन और वाराणसी यानि बनारस में भव्य कार्यक्रम होते हैं। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु  के मिलन का उत्साह मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस त्योहार को शिवाजी और उनकी माता जीजाबाई भी मनाते थे।

बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा
कहा जाता है कि भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़ कर शिव भक्ति के लिए वाराणसी चले गए थे। शिव की अराधना करने के लिए उन्होंने भोलेनाथ को हजार कमल के फूल चढ़ाए थे। इसके बाद भगवन विष्णु भोले नाथ की उपासना में लीन हो जाते हैं। काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु अपनी आंखें खोलते हैं तो देखते हैं कि उनके कमल के सभी गायब हो जाते हैं। इससे निराश होकर वो अपनी एक आंख जिसे कमल नयन कहा जाता है, उसे शिव को अर्पित कर देते हैं, जिसे देखकर भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। इसके बाद शिव उनकी सच्ची उपासना को देखते हुए उनकी कमल नयन वापस करते हैं और उन्हें भेंट में सुदर्शन चक्र देते हैं। तभी से इस को वैकुण्ड चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
 

Created On :   22 Nov 2018 11:11 AM IST

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