भीष्म पितामह की जयंती 29 को, जानिए खास बातें...

भीष्म पितामह की जयंती 29 को, जानिए खास बातें...

डिजिटल डेस्क । महाभारत के मुख्यपात्र भीष्म पितामह की जयंती 29 जनवरी 2019 को है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार माघ मास की कृष्ण पक्ष की नवमी को भीष्म पितामह की जयंती मनाई जाती है, जो इस बार 29 जनवरी 2019 को पड़ रहा है। भीष्म पितामह महाभारत की कथा के एक ऐसे नायक हैं, जो आरंभ से अंत तक इसमें रहे। भीष्म पितामह ने जीवनभर अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया और हस्तिनापुर को सुरक्षित हाथों में देखकर ही अपने प्राणों का त्याग किया। उन्हें देवव्रत व गंगापुत्र आदि नाम से भी जाना जाता है।

भीष्म पितामह का नाम सुनते ही हमें एक पराक्रमी योद्धा का सशक्त चेहरा याद आता है। एक ऐसा पितृभक्त पुत्र जिसने अपना पूरा जीवन एक प्रतिज्ञा को निभाने में निकाल दिया। एक ऐसे निष्काम कर्मयोगी, जिसने अपने पिता के लिए अपने जीवन, अपनी इच्छाओं और सुखों का त्याग कर दिया था। पुत्र की कामना से शांतनु के पिता महाराजा प्रतीप ने गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके तप, रूप और सौन्दर्य पर मोहित होकर गंगा उनकी दाहिनी जंघा पर आकर बैठ गईं और कहने लगीं, "राजन! मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूं।"

इस पर राजा प्रतीप ने कहा, "गंगे! तुम मेरी दाहिनी जंघा पर बैठी हो, जबकि पत्नी को तो वामांगी होना चाहिए, दाहिनी जंघा तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार कर सकता हूं।" ये सुनकर गंगा वहां से चली गईं।" जब महाराज प्रतीप को पुत्र की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसका नाम शांतनु रखा और इसी शांतनु से गंगा का विवाह हुआ। गंगा से उन्हें 8 पुत्र मिले जिसमें से 7 को गंगा नदी में बहा दिया गया और 8वें पुत्र को पाला-पोसा। उनके 8वें पुत्र का नाम देवव्रत था। यह देवव्रत ही आगे चलकर पितामह भीष्म कहलाया।

 

महाभारत में भीष्म पितामह की कथा का उल्लेख है, जो इस प्रकार है- 
गंगापुत्र भीष्म पिछले जन्म में द्यौ नामक वसु थे। एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे। वहां वशिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। एक वसु पत्नी की दृष्टि ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में बंधी नन्दिनी नामक गाय पर पड़ गई। यह गाय समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाली थी। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया तथा कहा कि वह यह गाय अपनी सखियों के लिए चाहती है। आप इसे हर लें। पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय को हर लिया। वसु को उस समय इस बात का ध्यान भी नहीं रहा कि वशिष्ठ ऋषि बड़े तपस्वी हैं और वे हमें श्राप भी दे सकते हैं। 

जब महर्षि वशिष्ठ अपने आश्रम आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बातें जान लीं। वसुओं के इस कार्य से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। वसुओं को जब यह बात पता चली तो वे ऋषि वशिष्ठ से क्षमा मांगने आए तब ऋषि ने कहा कि बाकी सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा। यह पृथ्वी पर संतानहीन रहेगा। महाभारत कथा के अनुसार गंगापुत्र भीष्म वह द्यौ नामक वसु थे। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में अपनी इच्छामृत्यु से ही अपने प्राण त्यागे।

Created On :   15 Jan 2019 3:41 AM GMT

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