गोगा नवमी विशेष : मनाया जाता है गोगा देव श्री जाहरवीर का जन्मोत्सव

Goga Navami : Goga Dev Shri Jahveers Birthday is Celebrated
गोगा नवमी विशेष : मनाया जाता है गोगा देव श्री जाहरवीर का जन्मोत्सव
गोगा नवमी विशेष : मनाया जाता है गोगा देव श्री जाहरवीर का जन्मोत्सव

डिजिटल डेस्क । 4 सितंबर 2018 को गोगा नवमी है। गोगा नवमी का ये त्योहार कई राज्यों में मनाया जाता है। ये त्योहार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और  राजस्थान में विशेष रूप से मनाया जाता है, वैसे ये पर्व राजस्थान का बहुप्रसिद्ध लोकपर्व है। इसे गुग्गा नवमी भी कहा जाता है। इस वर्ष गोगा नवमी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि 4 सितंबर 2018, मंगलवार को अर्थात आज है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि गोगा नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन गोगा देव श्री जाहरवीर का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गोगा देव की पूजा करने से सर्प दंश से रक्षा होती है। गोगा देव की पूजा का पर्व श्रावणी पूर्णिमा से आरंभ हो जाती है जो 9 दिनों तक चलता रहता है अर्थार्त नवमी तिथि तक गोगा देव का पूजन किया जाता है इसलिए इसे गोगा नवमी कहा जाता है।

गोगा देव महाराज से संबंधित एक किंवदंती के अनुसार गोगा देव का जन्म नाथ संप्रदाय के महायोगी श्री गोरक्षनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। योगी गोरक्षनाथ ने ही इनकी माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था जिसके प्रभाव से महारानी बाछल से गोगा देव (जाहरवीर) का जन्म हुआ था।

देश के कई राज्य और विशेष रूप से ये पर्व राजिस्थान में बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर बाबा जाहरवीर (गोगाजी) के अनुयायी अपने घरों में आपने ईष्टदेव गोगा जी की वेदी बनाकर अखंड ज्योति का जागरण कराते हैं तथा गोगा देव महाराज की शौर्य गाथा एवं जन्म कथा सुनते हैं। इस प्रथा को जाहरवीर का जोत कथा जागरण कहा जाता है। अनेक स्थानों पर आज के दिन मेले लगते हैं और शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। इस दिन गोगा जी को मानने वाले अपने घरों में जाहरवीर पूजा और हवन करके उन्हें खीर तथा मालपुआ का भोग लगाते हैं। भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर रोजमर्रा के कामों से निवृत्त होकर खाना आदि बना लेते है, फिर भोग के लिए खीर, चूरमा, गुलगुले आदि बना लेते हैं।

महिलाएं वीर गोगाजी महाराज की मिट्टी की बनी प्रतिमा लेकर आती हैं, फिर इनकी पूजा करती है। प्रतिमा लाने पर रोली, चावल से तिलक लगाकर बने हुए प्रसाद का भोग लगती है। कई स्थानों पर तो गोगा देव की घोड़े पर चढ़ी हुई वीर प्रतिमा होती है जिसका पूजन किया जाता है। गोगाजी के घोड़े के आगे पानी में गली हुई दाल रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों को जो रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं, वो गोगा नवमी के दिन खोलकर गोगा देवजी को चढ़ाई जाती है। इस दिन गोगाजी का प्रिय भजन गाया जाता है जो इस प्रकार है।

भादवे में गोगा नवमी आगी रे, भगता में मस्ती सी छागी रे,
गोगा पीर दिल के अंदर, थारी मैडी पे मैं आया,
मुझ दुखिया को तू अपना ले, ओ नीला घोड़े आले।
मेरे दिल में बस गया है गोगाजी घोड़ेवाला,
वो बाछला मां का लाला वो है, नीला घोड़े वाला,
दुखियों का सहारा गोगा पीर।


इस प्रकार के अनेक भजन और लोकगीत गाकर गोगा देव का गुणगान कर प्रसन्न किया जाता है। गोगा नवमी के संबंध में एक मान्यता ये भी है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्प का भय नहीं रहता है। और ऐसा माना जाता है कि वीर गोगा देव अपने भक्तों की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
 

Created On :   4 Sep 2018 6:26 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story