इस गांव में नहीं मनाई जाती होली, जानिए क्या है वजह

डिजिटल डेस्क, अमरावती। होली का त्योहार वैसे तो पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है लेकिन अमरावती जिले का एक गांव ऐसा है जहां होली नहीं मनाई जाती है। यह गांव है दर्यापुर जिले का पिंपलोद । इस गांव में न ही होली जलाई जाती है और न ही रंग खेला जाता है।
संतों की भूमि रही है अंबानगरी
अमरावती को संतों की भूमि के रूप में संपूर्ण राज्य में पहचाना जाता है। लेकिन इस संतभूमि में एक ऐसा गांव हैं जहां पर विगत 68 वर्षो से होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। बता दें कि अमरावती जिले मेेंं राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज, संत गाडग़ेबाबा जैसे अनेक संतों ने समाज प्रबोधन का कार्य किया है। अमरावती जिले में स्थापित पौराणिक मंदिरों का इतिहास भी काफी मायने रखता है। इतना ही नहीं यहां के ग्रामीण इलाकों की भी अपनी-अपनी प्रथाएं हैं, ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज और संत गाडग़ेबाबा के विचारों का अनुकरण किया जाता है। इनमें दर्यापुर तहसील में आनेवाले ग्राम पिंपलोद का भी समावेश है।
यह है वजह
संत श्री परशराम महाराज ने होली पूर्णिमा के दिन यानि 1951 में गांव में महासमाधि ली थीं। पिंपलोद ग्रामवासियों के लिए संत परशराम महाराज पूज्य थे। जिस दिन उन्होंने महासमाधि ली उसी दिन से ग्रामीणों ने होली त्यौहार नहीं मनाने का निर्णय लिया और अपने पूज्य महाराज का अभिवादन करने के लिए गांव में विशाल मंदिर की स्थापना की। पिंपलोद गांव अमरावती से 70 किलोमीटर और दर्यापुर से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर है। इस गांव की आबादी लगभग 6500 हजार के आसपास बतायी जाती है। कहा जाता है कि पिंपलोद गांव में संत श्री परशराम महाराज ने वर्ष 1932 से 1935 के दशक के दरमियान गांव में कदम रखे थे। यहां पर संत परशराम महाराज के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा थी। उनके चमत्कारों से लोग प्रभावित थे। साथ ही इस गांव में परशराम महाराज के मंदिर में गौतम बुद्ध, दत्तात्रय व पीर बाबा की दरगाह भी एक ही जगह पर दिखाई देती है। यही वजह है कि इस स्थान को एकता का प्रतीक भी बताया जाता है। संत परशराम महाराज का जन्म यानि प्रकट दिवस वैशाख पूर्णिमा के दिन वर्ष 1900 में हुआ। यह दिवस इसीलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही तथागत भगवान गौतम बुद्ध का भी जन्म हुआ था। जिसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन संत श्री परशराम महाराज का 1951 में निधन हुआ। जिसे 68 हो चुके हैं।
नहीं टूटी परंपरा
पिंपलोद ग्रामवासियों ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन अपने पूज्य महाराज के निधन के बाद से होली त्यौहार नहीं मनाने का संकल्प लिया आज भी यह परंपरा उन्होंने टूटने नहीं दी है। इस दिन गांव में पेड़ों की कटाई भी नहीं की जाती और रंग भी नहीं खेला जाता। एक बात तो तय है कि ग्रामवासियों के इस निर्णय से पर्यावरण की सुरक्षा भी हो रही है।
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Created On :   1 March 2018 11:18 AM IST