कालाष्टमी मुहूर्त, कालभैरव के साथ होगी देवी काली की पूजा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रतिमाह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मां काली के पूजन का विधान हैं। कालाष्टमी के दिन ही कालभैरव का जन्म हुआ था, कालभैरव का ये स्वरूप भगवान शिव को समर्पित है। इनकी पूजा से नकारात्मक शक्तियां प्रभावहीन हो जाती हैं। भूत-प्रेत का भय नही रहता। किसी तरह का जादू टोना भी बेअसर होता है। कालभैरव और मां काली दोनों का ही पूजन नकारात्मक ऊर्जा को निकट आने से रोकता है। कालाष्टमी को कालभैरव के साथ ही देवी काली की भी उपासना की जाती है।
भगवान शंकर के दो रुप हैं एक बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। एक ओर जहां बटुक भैरव भक्तों को सौम्य प्रदान करते हैं वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने के लिए प्रचंड दंडनायक कहलाते हैं।
मध्यरात्रि में शंख, नगाड़ा, घंटा आदि से भैरव की आरती
कालभैरव और मां काली दोनों का ही पूजन अत्यंत कठिन है। हालांकि दोनों का ही पूजन इस दिन करना विशेष फलदायी बताया गया है। कालभैरव की पूजा में 16 तरह की विधियों का प्रयोग किया जाता है। मंत्रोच्चार के साथ मध्यरात्रि में शंख, नगाड़ा, घंटा आदि से भैरव की आरती करना उत्तम होता है।
राहु की शांति के लिए भी पूजा
मासिक कालाष्टमी सोमवार 8 जनवरी को दोपहर 2.50 के बाद मध्यांह व्यापिनी अष्टमी तिथि प्रारंभ हो रही है। कालाष्टमी की रात्रि भक्त जागरण भी करते हैं। यदि आप राहु से परेशान हैं तो इस दिन राहु की शांति के लिए भी पूजा करने से निश्चित ही राहत प्राप्त होती है।
कालाष्टमी पर स्नान करने के बाद पूरे दिन व्रत धारण कर मध्यरात्रि में धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों के तेल को पूजा में शामिल करना चाहिए। कालभैरव को ये अतिप्रिय हैं। आप पापड़ भी शामिल कर सकते हैं। कालभैरव के साथ देवी कालिका का भी व्रत इस दिन रखा जाता है, किंतु पूजा विधि अलग-अलग है, जो कि सामान्यतः विशेषज्ञ के मार्गदर्शान में ही करना उचित बताया गया है। पूजा के वक्त व्रती को भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र आदि का पाठ करने से अनेक समस्याओं का निवारण होता है।

Created On :   6 Jan 2018 8:16 AM IST