खरमास से बना पुरुषोत्तम मास, श्रीकृष्ण ने अपने चरणों में दिया स्थान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शास्त्रों, पुराणों और वेदों में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि जिसे कहीं स्थान नही मिलता भगवान स्वयं उसे अपनी शरण में ले लेते हैं। ऐसी ही कुछ कथा मलमास, खरमास या अधिकमास की, जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।
भगवान विष्णु काे बतायी अपनी व्यथा
पुराणों में खरमास, अधिकमास या मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा का वर्णनन है। इसके अनुसार स्वामी विहीन होने के कारण अधिकमास को मलमास कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दुखी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे अपना दुख बताया। इस भगवान विष्णु उन्हें अपने ही अवतार श्रीकृष्ण के पास गोलोक लेकर गए। जहां मोरमुकुट, वैजयंती माला धारण कर श्रीकृष्ण स्वर्ण जड़ित सिंहासन पर बैठे थे। वहां मलमास ने अपनी व्यवथा श्रीकृष्ण को बताई और कहा कि मेरा कोई स्वामी नही है और इसी वजह से खरमास में कोई भी मांगलिक कार्य नही होता। मुझे अनादर का सामना करना पड़ता है।
श्रीकृष्ण ने कहा, आज से मैं स्वयं तुम्हारा स्वामी हूं...
खरमास की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा, आज से मैं स्वयं तुम्हारा स्वामी हूं। तुम सदा ही मेरे चरणों में वास करोगे। श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं तुम्हें अपना नाम देता हूं अब से कोई तुम्हारी निंदा नही करेगा। अब से मलमास को जगत में पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाएगा। जिस गोलोक धाम में पद को पान के लिए मुनि, ज्ञानी कठोर तप करते हैं वह इस माह में अनुष्ठान, पूजन और पवित्र स्नान से प्राप्त होगा। भगवान की बात सुनकर खरमास अति प्रसन्न हुआ और तब से उसे पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा। अधिक पुरुषोत्तम मास में की गई साधना हमें ईश्वर के निकट ले जाती है। विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, नींव-पूजन, गृह-प्रवेश आदि सांसारिक कार्य निषिद्ध हैं, किंतु अनुष्ठान पूजा आदि करने पर गाेलाेक धाम प्राप्त हाेता है।

Created On :   15 Dec 2017 9:03 AM IST