जानिए पूजा की समाप्ति पर क्यों करते हैं शांतिपाठ

डिजिटल डेस्क, भोपाल। हिंदू धर्म में वैदिक मंत्र केवल धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा नहीं होते बल्कि इनका सकारात्मक प्रभाव आस-पास के वातावरण और व्यक्ति के दैनिक जीवन पर भी होता है। इसके लिए हर मंत्र के बाद तीन बार ऊं शांतिः का उच्चारण किया जाता है। कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ या जाप करने के बाद तीन बार शांति: शांति: शांति: कहकर उसे समाप्त किया जाता है।
ये तो हम सभी जानते हैं कि शांतिपाठ हर मंत्र के बाद किया जाता है, पर क्यों किया जाता है ये बहुत कम ही लोग जानते होंगे। आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे कि हर मंत्र के उच्चारण या पूजा-पाठ के बाद शातिः तीन बार क्यों कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार जीवन में आने वाली समस्याएं मुख्य रूप से तीन स्त्रोतों से उत्पन्न होती है।
आधिदैविक स्त्रोत : इस श्रोत के कारण वो अदृश्य, दैवीय या प्राकृतिक घटनाएं घटती हैं जिस पर आम मनुष्य का बिल्कुल नियंत्रण नहीं होता, जैसे - भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी आदि।
आधिभौतिक स्त्रोत : इस स्त्रोत से आपके आस-पास अनहोनियां होती हैं जैसे - दुर्घटनाएं, प्रदूषण, अपराध आदि।
आध्यात्मिक स्त्रोत : यह आपकी शारीरिक और मानसिक समस्याओं का कारण बनता है जैसे - रोग, क्रोध, निराशा, दुख आदि।
इन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान के विधान बताए गए हैं। उस अनुष्ठान के दौरान पुरोहित "त्रिवरम् सत्यमं" पर अमल करते हैं जिसका अर्थ है कि तीन बार कहने से कोई भी बात सत्य हो जाती है। यही कारण है कि हम अपनी बात पर विशेष जोर डालने के लिए उसे तीन बार दोहराते हैं।
किसी मंत्र के बाद "शांति:" शब्द का तीन बार उच्चारण करने का उद्देश्य यह है कि हम ईश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं कि किसी विशेष कार्य का उत्तरदायित्व निभाते समय या हमारे रोजमर्रा के कामकाज में इन तीनों प्रकार से जीवन में बाधाएं उत्पन्न न हों। इतना ही नहीं, उच्चारण के समय तीन अलग-अलग लोगों को संबोधित किया जाता है।
- पहली बार उच्च स्वर में दैवीय शक्ति को संबोधित किया जाता है।
- दूसरी बार कुछ धीमे स्वर में अपने आस-पास के वातावरण और व्यक्तियों को संबोधित किया जाता है।
- तीसरी बार बिल्कुल धीमे स्वर में स्वयं को संबोधित किया जाता है।
Created On :   11 May 2018 10:26 AM IST