वाल्मीकि जयंती 2017 : आदिकवि को पहले ही पता चल गई थी रामायण की यह घटना

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महाकाव्य रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह 5 अक्टूबर को है। महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। दरअसल, दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वो दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता हैं इसलिए ही महर्षि भी वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हें आदिकवि भी कहा जाता है।
दिया आश्रय
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार उनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। हालांकि इनके जन्म के संबंध कोई खास प्रमाण नहीं मिलता। भगवान श्रीराम के द्वारा सीता के परित्याग के बाद महर्षि वाल्मीकि ने ही उन्हें अपने आश्रम में आश्रय दिया था।
लव-कुश को सुनाया
कहा जाता है कि महर्षि ने वाल्मीकि रामायण की रचना पहले ही कर दी थी, जिसे उन्होंने लव-कुश को भी काव्यबद्ध करके सुनाया था, लेकिन रामायण का वह अध्याय जिसमें सीता पृथ्वी में समाहित होती हैं लव-कुश को नहीं बताया था। मान्यता है कि महर्षि को इसका भी पूर्वाभास हो गया था।
द्रवित हुए महर्षि
एक बार महर्षि वाल्मीक एक क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन थाए तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी। इस श्लोक की रचना उन्होंने सबसे पहले लयबद्ध कर संस्कृत में की थी।
भील जनजाति में पालन पोषण
ऐसा भी कहा जाता है कि वे ब्रम्हा के पुत्र थे किंतु उन्हें किसी ने चुरा लिया था जिसके बाद उनका पालन-पोषण भील जनजाति में हुआ और उनका नाम रत्नाकर रखा गया। वे अपने परिवार के पालन पोषण के लिए लूटपाट करने लगे, किंतु एक दिन नारद जी के कहने पर उन्होंने प्रभु की आराधना का मार्ग अपनाया।

Created On :   5 Oct 2017 9:42 AM IST