सप्तमी को 'कालरात्रि', दूर भागते हैं भूत-पिशाच, आसान नहीं इनका पूजन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मां दुर्गा की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। जो कि इस बार 27 सितंबर बुधवार को है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
माता के नाम
इन्हें मां काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में से एक हैं।
नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश
माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। बुरी शक्तियां उनके आगमन से पलायन करते हैं।
आसान नहीं पूजन
इनका पूजन आसान नहीं है। इनका पूजन साधकों को किसी विशेषज्ञ की सलाह और मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। थोड़ी भी चूक अनिष्टकारी सिद्ध हो सकती है। हालांकि इनके आगमन से बुरी शक्तियों का नाश होता है इसलिए इन्हें शुभकारी नाम से भी जाना जाता है। इन्हें गुड़ अत्यंत प्रिय है इसलिए इनके पूजन में मुख्य रूप से गुड़ माता को अर्पित करना चाहिए।
माता का स्वरूप
देवी कालरात्रि का शरीर का रंग काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं। इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में खड़क और एक हाथ में लोहे का वज्र धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। कालरात्रि के श्वास लेने पर मुंह से आग निकलती हैं। इनके स्वररूप को जितनी भयंकर बताया गया है। वरमुद्रा में हाथ होने की वजह से उन्हें उतना ही ममतामयी भी कहा गया है।
कालरात्रि मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः।


Created On :   26 Sept 2017 12:40 PM IST