शीतला अष्टमी : शीतला माता व ठंडा खाने की परंपरा से जुड़ा वैज्ञानिक रहस्य
डिजिटल डेस्क, भोपाल। शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, इसमें शीतला माता का व्रत और पूजन का विधान है। शीतला अष्टमी साल में दो बार आती है। इस बार मार्च के बाद शीतला अष्टमी का व्रत 08 अप्रैल रविवार को है। यह पर्व कुछ जगहों पर सप्तमी तिथि के दिन भी मनाया जाता है, जिसे शीतला सप्तमी के नाम से जाना जाता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सालभर के दौरान अलग-अलग ऋतुओं में होने वाले बदलावों की वजह से होने वाले घातक रोगों को अपने ज्ञान और अनुभव से पहचानकर धार्मिक परंपराओं में बीमारियों के उपचार और शमन के अचूक उपाय जोड़े। ये उपाय मनुष्य को धर्म से जोड़कर तन के साथ ही मन को भी संयमित और अनुशासित रहना सिखाते हैं। ऐसे ही रोगों में चेचक रोग का प्रकोप खासतौर पर गर्मी के मौसम में देखा जाता है। इसे भारतीय समाज में माता या शीतला के नाम से भी जाना जाता है
शीतला अष्टमी से जुड़ी ठंडा भोजन खाने की अनोखी परंपरा
शीतला अष्टमी पर साल में एक बार ठंडा भोजन खाने की परंपरा है। इस परंपरा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। इसके पीछे मकसद है चेचक रोग से बचाव। दरअसल इस रोग का संबंध माता के गर्भ से होता है, जिसके मुताबिक जब बच्चा माता के गर्भ में होता है तब उसकी नाभि माता के हृदय से एक रक्त नली से जुड़ी होती है। उसी से उसका पोषण भी होता है। यही स्थान इस रोग का मुख्य केन्द्र माना जाता है। गर्भ से बाहर आने के बाद अनियमित खान-पान और मौसम के बदलाव से इसी रक्त में दोष पैदा होने से चेचक रोग होता है। खासतौर पर गर्मी के मौसम में इसका प्रकोप ज्यादा होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुराणों में माता के सात मुख्य रूप बताए गए हैं। ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी और चामुण्डा। इनमें से स्वभाव के अनुसार किसी माता को सौम्य और किसी माता को उग्र माना जाता है। इस रोग में कौमारी, वाराही और चामुण्डा का प्रभाव भयानक माना जाता है। इस रोग के दौरान असंयम और लापरवाही बरतने पर रोगी नेत्र, जीभ के साथ ही शरीर से हमेशा के लिए असहाय हो जाता है।
चेचक रोग होने पर करें ये उपाय
- चेचक रोग के दौरान रोगी बेचैन हो उठता है, जिसे संक्रमण से बचाने के लिए सूप हिलाकर उसे ठंडक दी जाती है।
- नीम के पत्तों में औषधीय गुण होते हैं, जो फोड़ों को सड़ने नहीं देते।
- कलश में ठंडा पानी भरकर रखा जाता है और रोगी को ठंडा पानी भरकर पिलाया जाता है जिससे उसे ठंडक मिलती है।
- चेचक रोग होने के बाद जब शरीर पर दाग पड़ जाते हैं तो उनमें गधे की लीद लगा देने से चेचक के दाग हल्के हो जाते हैं।
Created On :   7 April 2018 9:47 AM IST