क्यों और कैसे हुआ था तुलसी-शालिग्राम का विवाह ?   

Why and how did the marriage of Tulsi-Shaligram?know the stroy
क्यों और कैसे हुआ था तुलसी-शालिग्राम का विवाह ?   
क्यों और कैसे हुआ था तुलसी-शालिग्राम का विवाह ?   

डिजिटल डेस्क । हर हिंदू घर में एक तुलसी का पौधा रहता है। तुलसी में जल चढ़ना, दिया लगाना उसकी देख-भाल करना ये एक अनिवार्य प्रक्रिया है। तुलसी सबसे पवित्र पौधों में से एक है। इसे जल, भोजन, पूजा और किसी भी स्थान को पवित्र करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है,लेकिन कभी आपने सोचा है कि तुलसी की उत्पत्ती कैसे और कहां से हुई। क्यों तुलसी को इतना पवित्र माना जाता है? चलिए आज हम आपको बताते हैं तुलसी की कहानी।

 

तुलसी की कहानी

तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी। जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी। जब वो बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में राक्षस राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था। वृंदा विष्णु भक्त के साथ बड़ी ही पतिव्रता स्त्री भी थी वो सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ तब जलंधर युद्ध पर जाने लगा तो वृंदा ने कहा - स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करती रहूंगी और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, तब तक मैं अपना संकल्प नहीं छोडूंगी। 

जलंधर तो युद्ध में चला गया,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई, उनके इस व्रत के प्रभाव से देवता भी राक्षसराज जलंधर को जीत ना सके। यहां तक की देवों के देव महादेव भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे, तब सभी देवी-देवता हारने लगे तो विष्णु जी के पास गए। सभी देवगण ने विष्णु जी से प्रार्थना की तो विष्णु जी कहने लगे कि, वृंदा मेरी एक परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता। तब फिर देवता बोले - भगवन इस के अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी सहायता कर सकते है। तब विष्णु भगवान ने वृंदा के पति जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए तब जैसे ही वृंदा ने अपने पति को आते देखा, वे तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया,जैसे ही वृंदा का संकल्प टूटा, वैसे ही युद्ध में देवताओं ने उसके पति जलंधर को मार दिया और उसका सर धड़ से अलग कर दिया,जालंधर का सर सीधा वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़ा है ये कौन है?

तब वृंदा ने पूछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वो कुछ ना कह सके। वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वो क्रोधित हो गई और उन्हें भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने (शालिग्राम पत्थर) श्राप दे दिया। तब सभी देवी-देवता हाहाकार करने लगे और लक्ष्मी जी भी विलाप करने लगी और प्रार्थना करने लगी तब वृंदा (तुलसी) जी ने भगवान को पुन: वैसा का वैसा ही कर दिया और वृंदा अपने पति का सर लेकर सती हो गई।

उनकी चिता भस्म से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से इस पौधे का नाम तुलसी होगा और मेरा एक रूप कला पत्थर भी रहेगा ,जिसे शालिग्राम के नाम से वृंदा (तुलसी) जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी पत्र के भोग स्वीकार नहीं करूंगा। तब से हर घर में तुलसी जी को स्थापित कर पूजा करने लगे और फिर तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुआ, ये दिन को देव-उठनी एकादशी और तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

 

शादी में आ रहीं बाधाएं होती हैं दूर

जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है। देवोत्थान एकादशी पर केवल तुलसी विवाह ही नहीं होता है। इस व्रत के शुभ प्रभाव से शादी में आ रही सारी रुकावटें दूर होने लगती हैं और शुभ विवाह का योग जल्दी ही बन जाता है। तब से तुलसी पत्र को धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व दिया जाता है। तुलसी के पौधे का उपयोग यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना और उपासना आदि में होता है। इसके अतिरिक्त तुलसी का उपयोग पवित्र भोग, प्रसाद आदि में किया जाता है| यहाँ तक भगवान के चरणामृत (जल) में भी तुलसी पत्र का उपयोग किया जाता है।

Created On :   28 Sept 2018 12:11 PM IST

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