पन्ने पलटते, ज़िंदगियाँ बदलते: मुस्कान अहिरवार ने कैसे बनाई 4000+ किताबों वाली लाइब्रेरी

भोपाल के अरेरा हिल्स स्थित दुर्गानगर बस्ती। रोज़मर्रा की जद्दोजहद से भरी संकरी गलियाँ। इन्हीं गलियों के बीच एक छोटी-सी लाइब्रेरी खड़ी है, जिसके बोर्ड पर रंग-बिरंगे अक्षरों में लिखा है—“किताबी मस्ती।” अंदर कदम रखते ही किताबों से भरी अलमारियाँ और बच्चों की खिलखिलाहट यह एहसास दिलाती है कि यह जगह अब बस्ती का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। लेकिन इसकी शुरुआत बेहद साधारण रही।
साल 2016 में, यह लाइब्रेरी एक कच्चे घर के बरामदे से शुरू हुई थी। तब नौ साल की बच्ची मुस्कान अहिरवार ने अपने दोस्तों के साथ 121 किताबें इकट्ठी कीं और मोहल्ले के बच्चों के लिए छोटे-छोटे रीडिंग सेशन शुरू किए। किताबें बाँटना और कहानियाँ सुनाना उस समय महज़ एक कोशिश थी, लेकिन धीरे-धीरे यह बच्चों के लिए नई दुनिया की खिड़की बन गई।
आज वही बरामदा 4,000 से अधिक पुस्तकों वाली जीवंत लाइब्रेरी में बदल चुका है। हर शाम पाँच से सात बजे तक सौ से ज़्यादा बच्चे यहाँ आते हैं। शुरुआत बातचीत से होती है—बच्चे अपनी परेशानियाँ साझा करते हैं, दिनभर के अनुभव सुनाते हैं और फिर किताबों पर चर्चा में जुट जाते हैं। सिविल सेवा के अभ्यर्थी और स्वयंसेवक बच्चों को पढ़ाते हैं और तकनीक तथा एआई टूल्स की मदद से पढ़ाई को और रोचक बनाते हैं।
संघर्ष से सफ़र तक
मुस्कान का यह रास्ता आसान नहीं था। बचपन में पिता का निधन, घर की तंगहाली और समाज का शुरुआती अविश्वास—इन सबके बीच उसने यह ज़िम्मेदारी खुद निभाई। बरामदे में किताबें सजाना, पढ़ाई का माहौल बनाना, फिर उन्हें समेटना, रजिस्टर में दर्ज करना, और यह सुनिश्चित करना कि कोई बच्चा किताब लेने से हिचके नहीं—इन सब कामों में उसकी लगन झलकती थी। बच्चों को मोबाइल छोड़कर किताबों की ओर मोड़ना भी किसी चुनौती से कम नहीं था।
आधिकारिक सहयोग और नई उड़ान
बदलाव तब आया जब मध्य प्रदेश के राज्य शिक्षा केंद्र ने मुस्कान के काम को सराहा। उन्होंने पास ही स्थायी जगह उपलब्ध कराई और इस मॉडल को अन्य बस्तियों में लागू किया। इसके बाद देश-विदेश से किताबें आने लगीं, नए स्वयंसेवक जुड़े और ‘किताबी मस्ती’ एक बड़े आंदोलन का हिस्सा बन गई। अमेरिका के कौंसल जनरल एडगार्ड डी. कांगन जैसे विशिष्ट अतिथि भी यहाँ पहुँचे और इस पहल की तारीफ़ की।
हाल ही में आयोजित शिक्षाग्रह अवॉर्ड्स 2025 में मुस्कान अहिरवार को युवा नेता (स्पेशल मेन्शन) के रूप में सम्मानित किया गया। केवल 17 साल की उम्र में मुस्कान 4000 किताबों की इस लाइब्रेरी का संचालन कर रही हैं, जहाँ रोज़ 100 से अधिक बच्चे आते हैं।
मुस्कान कहती हैं—“जब इस तरह का पुरस्कार मिलता है, तो लोगों को हमारे काम के बारे में पता चलता है, नेटवर्क बढ़ता है। इसी कारण से बेंगलुरु की एक संस्था ने हमसे संपर्क किया और हमारी लाइब्रेरी के लिए 1000 किताबें दान कीं। शिक्षालोकम से जो राशि हमें प्राप्त हुई है, हम उसे पूरी तरह लाइब्रेरी के विकास में ही निवेश करेंगे।”
किताबों से आगे की दुनिया
आज ‘किताबी मस्ती’ सिर्फ़ एक लाइब्रेरी नहीं, बल्कि सामुदायिक केंद्र बन चुकी है। यहाँ त्यौहार और जन्मदिन मनाए जाते हैं, नाटक होते हैं और बच्चे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना सीखते हैं। पढ़ाई-लिखाई से परे वे अब डिग्री और करियर की ओर बढ़ने का सपना देखने लगे हैं। कई बच्चों के लिए यह जगह कठिन घरेलू हालात से निकलने का सुरक्षित सहारा है।
दुर्गानगर से निकलकर अब यह मॉडल राज्य की अन्य बस्तियों में भी अपनाया जा रहा है। शिक्षा-समानता पर केंद्रित आंदोलन ‘शिक्षाग्रह’ के सहयोग से मुस्कान का सपना और फैल रहा है। शिक्षाग्रह का उद्देश्य हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुँचाना है, और ‘किताबी मस्ती’ इसका सशक्त उदाहरण है।इस साल के शिक्षाग्रह अवॉर्ड्स 2026 के लिए नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। विजेताओं की घोषणा फरवरी 2026 में की जाएगी।
121 किताबों से शुरू हुई यह यात्रा आज पूरे समुदाय के लिए उम्मीद और हिम्मत की मिसाल बन चुकी है।
मुस्कान अहिरवार की कहानी यह याद दिलाती है कि बदलाव हमेशा बड़े साधनों से नहीं, बल्कि छोटे कदम और अटूट विश्वास से शुरू होता है।
बस्ती के दिल में, ‘किताबी मस्ती’ आज भी पन्ने पलट रही है, दिमाग खोल रही है और बच्चों के लिए उज्ज्वल भविष्य की राह रोशन कर रही है।
Created On :   5 Sept 2025 1:21 PM IST