Film Review: एंथॉलॉजी फिल्म Lantrani , कटाक्ष के साथ गुदगुदाती भी है
- फ़िल्म समीक्षा : लंतरानी
- कलाकार ; जॉनी लीवर, जिशु सेनगुप्ता, जितेंद्र कुमार, निमिषा सजयन, बोलोरामदास
- जॉनर: कॉमेडी, ड्रामा | अवधि: 1:39 घंटे
- निर्माता: प्रणय गर्ग , पीयूष दिनेश गुप्ता | निर्देशक: कौशिक गांगुली, गुरविंदर सिंह, भास्कर हजारिका
- रिलीज ; ज़ी5 | रेटिंग ; 3. 5 स्टार्स
डिजिटल डेस्क : सिनेमा में कुछ अलग करने का प्रयास हमेशा से होता रहा है मगर बहुत कम फ़िल्म मेकर इस मामले में सफल हो पाते हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म ZEE 5 पे स्ट्रीम हो रही फिल्म लंतरानी कामयाब कोशिशों में गिनी जाने लायक है। एक ही फ़िल्म में तीन कहानियों का मनोरंजन देने वाली यह फ़िल्म बेहतरीन ढंग से बनाई गई है और ऐसा इसलिए भी हुआ है क्योंकि इस फिल्म को तीन नेशनल अवॉर्ड विनर डायरेक्टर्स ने निर्देशित किया है
लंतरानी एक एंथॉलॉजी फिल्म है जो तीन अलग कहानियों को एक साथ दिखाती है। फ़िल्म देश के उन छोटे कस्बों और गांवों के अनुभव को दर्शाती है जहां लोग अपनी जीविका के लिए कुछ अविश्वसनीय उपाय करते हैं। इससे जो कॉमेडी क्रिएट होती है वो देखने लायक है। इस फ़िल्म के लेखक दुर्गेश सिंह हैं जिन्होंने लोकप्रिय वेब सीरीज गुल्लक भी लिखी हैं
फ़िल्म के टाइटल लंतरानी के अर्थ की बात की जाए तो इसका मतलब ऊंची ऊंची हांकना होता है मुंबईया भाषा में इस ऊँचा फेंकना भी कहते हैं । इसी बात को कहानी के माध्यम से पेश किया गया है।
लंतरानी फिल्म में तीन कहानियां हुड़ हुड़ दबंग, धरना जारी है और सैनेटाइज्ड समाचार के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। हालांकि इन अलग अलग कहानियों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है मगर फिर भी स्टोरी की बुनियाद में लंतरानी अवश्य है और यही बात इसके टाइटल को जस्टिफाई करती है।
फ़िल्म की पहली स्टोरी 'हुड़-हुड़ दबंग' एक पुलिस वाले और एक अपराधी की कहानी है। जॉनी लीवर ने एक सिपाही की भूमिका निभाई है जो अपने साथ एक आरोपी को पेशी के लिए ले जाता है। 30 मिनट की इस कहानी में जीवन और सोसाइटी के विभिन्न पहलुओं को हास्य और व्यंग्य के रंग में दर्शाया गया है।
फ़िल्म की दूसरी कहानी 'धरना जारी है' एक महिला प्रधान और उनके पति की कुछ मांगो के बारे में है, जिनको लेकर डिस्ट्रिक्ट के डिवेलपमेंट ऑफिसर के कार्यालय के सामने उनका धरना जारी है।
फ़िल्म की तीसरी कथा 'सैनिटाइज्ड न्यूज' में मीडिया की दुनिया को और इस क्षेत्र में काम करने वाले जर्नलिस्ट की मजबूरी को दर्शाया गया है। तीनों स्टोरीज अलग अलग ढंग से हकीकत को बहुत ही व्यंग्यात्मक रूप से दर्शाती हैं। सीन इतने सिचुएशनल क्रिएट किए गए हैं कि आप हंसते हंसते कुछ दर्द भी अनुभव करेंगे और यही इस सिनेमा की बहुत बड़ी खूबी है।
फिल्म एंटरटेन तो करती ही है ये सोचने के लिए भी मजबूर करती है। केवल 30-32 मिनट में अलग अलग 3 कहानियां इतनी खूबसूरती से पिरोई गई हैं कि कहीं बोरियत महसूस नहीं होती। हर स्टोरी में एक सटायर है, कुछ सवाल उठाए गए हैं, और यह प्रश्न आपके ज़ेहन में जैसे बैठ जाते हैं।
अभिनय की बात करें तो जॉनी लीवर ने अपने अभिनय से सबसे अधिक प्रभावित किया है। इसमे वह लाउड होने से बचे हैं और बड़ी नेचुरल एक्टिंग की है। वहीं चमन बहार एवं पंचायत सीरीज से मशहूर हुए अभिनेता जितेंद्र कुमार उर्फ जीतू भइया ने भी अपनी अदाकारी का एक बार फिर लोहा मनवाया है। जितेंद्र कुमार और मलयालम फिल्मों की अभिनेत्री निमिषा सजायन ने गांव के गरीब वर्ग से सम्बंध रखने वाले लोगों का चरित्र बेहतरीन ढंग से अदा किया है। जिसू सेनगुप्ता, भगवान तिवारी और बोलोराम दास ने भी अपने रोल को यादगार बनाया है।
फ़िल्म का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट इसका निर्देशन है। इस सिनेमा की फर्स्ट स्टोरी 'हुड़-हुड़ दबंग' का निर्देशन बंगाली फिल्मों के विख्यात निर्देशक कौशिक गांगुली ने किया है। उन्होंने अपने आधे घण्टे के काम मे लगता है कि तीन घण्टे की मेहनत दिखा दी है। फ़िल्म व्यंग्य के भाव मे बड़ी बात कह जाती है।
पंजाबी सिनेमा के महान डायरेक्टर गुरविंदर सिंह ने फ़िल्म की सेकन्ड स्टोरी 'धरना जारी है" का निर्देशन कमाल का किया है। नीची जाति के एक प्रधान परिवार की कहानी को जिस ढंग से उन्होंने पेश किया है वो तारीफ के काबिल है।
असम सिनेमा के नामी निर्देशक भास्कर हजारिका ने तीसरी कहानी निर्देशित की है। कोविड के हालात में फाइनैंशियल प्रॉब्लम का सामना कर रहा एक चैनल कैसे उन परिस्थितियों से निकलने के प्रयास में अपने आदर्श से समझौता करता है, पर्दे पर ये दिखाने का ढंग बड़ा ही निराला और सराहनीय है।
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Created On :   12 Feb 2024 6:36 PM IST