फिल्म समीक्षा 'द ताज स्टोरी: ताज महल या तेजो महालय का तथ्यपरक जवाब ढूंढती फिल्म, परेश रावल का शानदार अभिनय

शिक्षा पद्धति, सरकार और पुरातत्व विभाग से कई तार्किक सवाल करती एक जबरदस्त फिल्म
- मूवी रिव्यू: द ताज स्टोरी
- कलाकार: परेश रावल, जाकिर हुसैन, अमृता खानविलकर, नमित दास, स्नेहा वाघ, शिशिर शर्मा, अखिलेंद्र मिश्रा, ब्रिजेंद्र काला
- निर्देशक: तुषार अमरीश गोयल
- निर्माता: सीए सुरेश झा
- बैनर: स्वर्णिम ग्लोबल सर्विसेज प्रा. लिमिटेड
- अवधि : 2 घंटा 40 मिनट
- रिलीज की तारीख: 31 अक्टूबर 2025
- भाषा: हिंदी
- सेंसर: ए
- रेटिंग : 4 स्टार
आजादी के 12 वर्ष बाद सन् 1959 में पुरातत्व विभाग के कुछ अधिकारी ताजमहल के नीचे मरम्मत का काम देखने गए थे। वहाँ पर उन्होंने जो देखा वह चौंकाने के साथ ही बड़े सवाल खड़े करने वाला था। इसी तथ्य पर आधारित है स्वर्णिम ग्लोबल सर्विसेज प्रा. लिमिटेड के बैनर तले बनी हिन्दी फिल्म 'द ताज स्टोरी' की कहानी जो 31 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। तुषार अमरीश गोयल द्वारा निर्देशित और सीए सुरेश झा द्वारा निर्मित इस बहुचर्चित फिल्म में बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार परेश रावल मुख्य भूमिका में हैं। आइए इस रिव्यू में समझते हैं कैसी है फिल्म 'द ताज स्टोरी' ? देखनी चाहिए या नहीं
कहानी:
फिल्म की कहानी शुरू होती है आगरा स्थित ताजमहल के परिसर में जहां कुछ गाइड टूरिस्टों को अपनी लच्छेदार बातों और पैंतरों से अट्रैक्ट करने की कोशिश करते हैं। विष्णु दास (परेश रावल) और उनके पुत्र (नमित दास) भी ताजमहल में रजिस्टर्ड गाइड हैं जो यह काम अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए वर्षों से करते आ रहे हैं। एक दिन एक पत्रकार अपनी डॉक्यूमेंट्री के लिए विष्णु दास का विडिओ इंटरव्यू करती है लेकिन जो सवाल उस लड़की ने विष्णु से पूछे उन सवालों का विष्णु दास ठीक ठीक जवाब नहीं दे पाए। उनको उस लड़की के सवाल सोने नहीं देते और एक दिन शराब के नशे में विष्णु अपने दोस्तों के बीच कह देते हैं कि ताज महल शाहजहाँ ने नहीं बनवाया था। किसी ने चुपके से उनकी विडिओ बना लिया और वायरल कर दिया। विष्णु और उनके बेटे को गाइड एसोसिएशन ने सस्पेंड कर दिया। विष्णु ने पीआईएल डालने का फैसला कर लिया लेकिन वकील ने कहा बिना एविडेंस के पीआईएल नहीं डाल सकते। इसके लिए विष्णु ने टाइम लिया और दिन रात एक कर के रिसर्च आधारित विद्वानों द्वारा लिखित पुस्तकें और तथ्य इकट्ठे किए और फाइनली पीआईएल डाल दी गई। कोर्ट में पेशी हुई, विष्णु के सामने हाई कोर्ट के जाने माने वकील खड़े थे लेकिन विष्णु जी ने अपना मुकदमा खुद लड़ने का फैसला किया। और जज द्वारा पूछे जाने पर कि उन्होंने यह पीआईएल क्यों डाली जब पहले से ऐसी 6 पीआईएल को कोर्ट कचरे एक डब्बे में डाल चुका है? इसपर विष्णु ने कहा उन्होंने 3 सवाल पूछने के लिए कोर्ट आने का रास्ता चुना। पहला - विष्णु ने आर्टिकल 226 के तहत आर्किऑलॉजिकल डिपार्ट्मन्ट से सवाल किया कि ताजमहल शाहजहां ने ही बनवाया था इसका क्या प्रमाण है ? दूसरा - एजुकेशन बोर्ड से सवाल किया कि ताजमहल का इतिहास किस आधार पर लिखा गया और किस आधार पर पढ़ाया जा रहा है ? तीसरा - गवर्नमेंट से सवाल किया कि ताजमहल के अंदर नीचे के कमरों में ऐसा क्या है जिसे छुपाया जा रहा है? फिल्म की आगे की कहानी इन्हीं तीनों सवालों के जवाब ढूंढने और जवाब ढूंढने की कवायद में उत्पन्न हुए ड्रामे, सस्पेंस, रोमांच और कौतूहल से भरी हुई है जो दर्शकों के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है। तीनों पेचीदे सवालों के जवाब क्या विष्णु जी को मिल पाएंगे ? यह जानने के लिए आपको देखनी होगी यह फिल्म जो 2 घंटे 40 मिनट में आपको मनोरंजन और एवीडेन्स का एक्स्ट्रा डोज देगी।
अभिनय:
फिल्म में बॉलीवुड के एक से बढ़कर एक दिग्गज और मंझे हुए कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय के दम पर फिल्म के कथानक को बेहतरीन ढंग से परदे पर दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है। परेश रावल, विष्णु दास की मुख्य भूमिका में जँच रहे हैं और अपने चिरपरिचित अंदाज में जिस प्रकार से उन्होंने एक गाइड की भूमिका निभाई और उसके बाद कोर्ट में बहस के दौरान अपने हाव भाव, डायलॉग डेलीवेरी और टाइमिंग से दर्शकों के मन को जीत लेंगे। जाकिर हुसैन ने प्रतिपक्षी वकील के भूमिका बेहद शानदार तरीके से निभाया है। अन्य कलाकारों में अमृता खानविलकर, नमित दास, स्नेहा वाघ, शिशिर शर्मा, अखिलेंद्र मिश्रा, ब्रिजेंद्र काला और बाकी के सभी कलाकारों ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ पूरा न्याय किया है।
निर्देशन और लेखन:
फिल्म के निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने फिल्म मे छोटी छोटी बारीकियों का बखूबी खयाल रखा है जिससे कहानी में लूप होल्स नजर नहीं आते और कथानक के स्तर पर काफी मजबूत दिखाई पड़ती है। एक बेहद विवादित मुद्दे को एक तर्कसंगत कहानी के रूप में जरूरी तथ्यों और तर्कों के साथ प्रस्तुत किया गया है जो दर्शकों को कन्विंसिंग लगने के साथ ही मनोरंजक भी लगेगा। कहानी को बखूबी रिसर्च और तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है । ऐसी तथ्य और तर्क आधारित फिल्में अक्सर कम मनोरंजक और बोरिंग हो जाती हैं लेकिन यह फिल्म इस मामले में बाकी फिल्मों से अलग है, निर्देशक और लेखक ने की मेहनत साफ दिखाई पड़ती है। फिल्म की कहानी इतनी कसी हुई और रफ्तार के साथ आगे बढ़ती है कि दर्शक टकटकी लगा के पूरी फिल्म देखता है।
क्यों देखें?
ताज महल या तेजो महालय? शाहजहां ने बनवाया या नहीं ? जो पढ़ाया जा रहा है क्या वह सही है या गलत? लगभग इन्ही सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करती यह फिल्म दर्शक को तार्किक तरीके से सोचने की प्रेरणा देती है। यह फिल्म सिखाती है कि कुछ झगड़े सिर्फ गलती की स्वीकारोक्ति से भी समाप्त हो सकते हैं। एक हाई टेंशन ड्रामा फिल्म होने के बावजूद फिल्म में कुछ डायलॉग्स ऐसे हैं जो सहज ही दर्शकों के होंठों पर मुस्कान ला देंगे जैसे परेश रावल कोर्ट में कहते हैं 'ताज महल में बने कमरों में गौशाला भी हैं तो क्या शाहजहाँ गउभक्त था?'
'फर्श पर स्वास्तिक और अन्य हिन्दू धर्म से संबंधित चिन्ह मिलते हैं तो क्या शाहजहाँ सनातनी था ?'
कोर्ट में हुई बहस काफी तथ्यपरक और सच्चाई के करीब लगती है और ऐसे सवाल उठाती है जो अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है। शिक्षा और सिलेबस को लेकर हुई बहस काफी ज्ञानवर्धक और आज की शिक्षा पद्धति पर सवाल उठाती है। गाइड विष्णु दास ने कोर्ट में अपने सवालों और मजबूत तर्क से विपक्ष को धराशायी कर दिया, उनके तर्क काफी कन्विन्सींग लगते हैं और सच्चाई के करीब दिखाई पड़ते है। फिल्म का मैक्सिमम पार्ट कोर्ट रूम में बीतता है लेकिन इतना दिलचस्प है कि एक पल के लिए भी निगाने इधर उधर नहीं होती।
Created On :   31 Oct 2025 5:01 PM IST












