38 साल पहले दुनिया से विदा हुए मोहम्मद रफी, लेकिन आज भी जिंदा है उनकी आवाज

38 साल पहले दुनिया से विदा हुए मोहम्मद रफी, लेकिन आज भी जिंदा है उनकी आवाज

डिजिटल डेस्क । 31 जुलाई, 1980 को मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि है, जिन्हे दुनिया रफी या रफी साहब के नाम से याद करती है। 38 साल पहले, आज के दिन, उन्होंने महज 55 वर्ष की उम्र में ही अपने चाहने वालो का साथ छोड़ दिया था। वो हिंदी सिनेमा के श्रेष्ठतम गायकों में से एक थे। उनकी आवाज़ आज भी हर संगीत की गहन समझ रखने वाले और "भूले बिसरे गीतों" से प्यार करने वाले संगीत प्रेमी के घर में गूंजती है। हिंदी सिनेमा पर उनका प्रभाव और हिंदी फिल्म गीत में उनके योगदान को कुछ सौ या हजार शब्दों में उल्लेखित नहीं किया जा सकता। उन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। त्रासदी यह है कि रफी की विरासत को संजो के रखने के लिए और विस्तारित करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया है। 

भाई ने पहचानी रफ़ी की कला

मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। ये तब बहुत ही कम उम्र के थे जब इनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया। इनके परिवार की संगीत में कोई विशेष रूचि नहीं थी। जब रफ़ी बहुत छोटे थे, तब इनका काफी वक्त बड़े भाई, मोहम्मद हमीद की नाई दुकान थी पर गुजरता था। कहा जाता है की, लगभग सात वर्ष की उम्र में, इन्हे गाने का शौक पैदा हुआ. बड़े भाई की नाई की दुकान के सामने से हर रोज़ एक फ़कीर गुज़रता था। रफ़ी को उसकी आवाज़ से ऐसा लगाव हुआ, की वो उस फ़कीर का रोज़ पीछा किया करते थे। धीरे धीरे उन्होंने उस फ़कीर की आवाज की नक़ल उतारनी शुरू कर दी। लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी और उनकी नक़ल की बहुत तारीफ करने लगे। लेकिन इससे, रफ़ी को केवल स्थानीय ख्यात ही मिली, इसके अलावा और कुछ नहीं मिला। जब इनके बड़े भाई ने रफ़ी में ये कला देखी तब उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा।

1944 में गाया गाया पहला गाना

मोहम्मद रफी की आवाज में कुछ जादू था, यहां तक ​​कि उस मधुर आवाज को पूजा भी जाता है। रफी वास्तव में एक ऐसे वर्सटाइल या बहुमुखी प्रतिभा के संगीतकार थे, जिन्होंने कई एक्टर्स को अपनी आवाज़ दी और कई फिल्मों को प्रसिद्धि तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। रफी साहब ने 1940 के दशक से अपने करियर की शुरुआत की। मोहम्मद रफ़ी का प्रथम गीत एक पंजाबी फ़िल्म गुल बलोच के लिए था जिसे उन्होने श्याम सुंदर के निर्देशन में 1944 में गाया। सन् 1946 में मोहम्मद रफ़ी ने बम्बई आने का फैसला किया। उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहले आप नाम की फ़िल्म में गाने का मौका दिया। नौशाद द्वारा सुरबद्ध गीत तेरा खिलौना टूटा (फ़िल्म अनमोल घड़ी, 1946) से रफ़ी को प्रथम बार हिन्दी जगत में ख्याति मिली। इसके बाद ये सफ़र कभी थमा ही नहीं। 1980 तक उन्होंने कुल 26,000 से ज्यादा गाने गाए। इनमें हिन्दी के अतिरिक्त गजल, भजन, देशभक्ति गीत, कव्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं। किशोर कुमार जो खुद एक बड़े गायक थे। उनके लिए भी फिल्मी पर्दे पर रफी साहब ने ही आवाज दी। किशोर कुमार के लिए रफी ने करीब 11 गाने गाये।

दिलीप कुमार, भारत भूषण तथा देवानंद जैसे कलाकारों के लिए गाने के बाद उनके गानों पर अभिनय करने वालो कलाकारों की सूची बढ़ती गई। शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, जॉय मुखर्जी, विश्वजीत, राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र इत्यादि कलाकारों के लिए रफ़ी की आवाज पृष्ठभूमि में गूंजने लगी। शम्मी कपूर तो रफ़ी की आवाज से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने अपने हर गाने में रफ़ी का इस्तेमाल किया।

उन्होंने राज कपूर और उसके बाद इस अभिनेता के ही बेटे, ऋषि कपूर के लिए गाया। दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, जितेन्द्र और अमिताभ बच्चन के ज्यादातर गाने रफी ​​ने गाए थे। उन्होंने सुपरस्टार, कैरेक्टर एक्टर, हास्य अभिनेताओं और महान किशोर कुमार के लिए भी गाया। एक दशक पहले, जब आउटलुक पत्रिका ने 20 सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म गीतों का चुनाव किया था, तो रफी का एक गीत "मन रे तू कहे न धीर धरे" ने इस लिस्ट में प्रथम स्थान पाया। 

जिन अभिनेताओं के लिए दी आवाज

अमिताभ बच्चन, अशोक कुमार, आइ एस जौहर, ऋषि कपूर, किशोर कुमार, गुरु दत्त, गुलशन बावरा, जगदीप, जीतेन्द्र, जॉय मुखर्जी, जॉनी वाकर, तारिक हुसैन, देव आनन्द, दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र, नवीन निश्छल, प्राण, परीक्षित साहनी, पृथ्वीराज कपूर, प्रदीप कुमार, फ़िरोज ख़ान, बलराज साहनी, भरत भूषण, मनोज कुमार, महमूद, रणधीर कपूर, राजकपूर, राज कुमार, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, विनोद मेहरा, विश्वजीत, सुनील दत्त, संजय खान, संजीव कुमार, शम्मी कपूर, शशि कपूर, किशोर कुमार।

उन्होंने हमेशा ही अपने हर गीत में सही मूड, सही भाव और सही अंदाज व्यक्त किया। यही वो प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे, जो हर मेलोडी को एकदम सटीक हरकत, सही मुरकी और सही आवाज के उतार-चढ़ाव के साथ प्रस्तुत किया करते थे, जिससे लोग उनके गीतों के दीवाने हो जाते थे। वह उपन्यास के हर बारीकी को समझते थे, हर लय के सूक्ष्म भेद को गहराई से समझ कर ही उसे बिना किसी तोड़ मरोड़ कर संगीत के सुरों में बांध देते थे।

मोहम्मद रफ़ी के कुछ लोकप्रिय गीत

ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा-1952)
ये है बॉम्बे मेरी जान (सी आई डी, 1957), हास्य गीत
सर जो तेरा चकराए, (प्यासा - 1957), हास्य गीत
हम किसी से कम नहीं* चाहे कोई मुझे जंगली कहे, (जंगली, 1961)
मैं जट यमला पगला
चढ़ती जवानी मेरी
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं, (गुमनाम, 1966), हास्यगीत
राज की बात कह दूं
ये है इश्क-इश्क
परदा है परदा
ओ दुनिया के रखवाले - भक्ति गीत
हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, (फिल्म-जागृति, 1954), देशभक्ति गीत
अब तुम्हारे हवाले - देशभक्ति गीत
ये देश है वीर जवानों का, देशभक्ति गीत
अपना आज़ादी को हम, देशभक्ति गीत
नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है,- बच्चो का गीत
रे मामा रे मामा - बच्चो का गीत
चक्के पे चक्का, - बच्चो का गीत
मन तड़पत हरि दर्शन को आज, (बैजू बावरा,1952), शास्त्रीय संगीत
सावन आए या ना आए (दिल दिया दर्द लिया, 1966), शास्त्रीय संगीत
मधुबन में राधिका, (कोहिनूर, 1960), शास्त्रीय
मन रे तू काहे ना धीर धरे, (फिल्म -चित्रलेखा, 1964), शास्त्रीय संगीत
बाबुल की दुआए, - विवाह गीत
आज मेरे यार की शादी है, - विवाह गीत

Created On :   31 July 2018 5:56 AM GMT

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