यमला-पगला के बाद सनी-बॉबी ने फिर मचाया धमाल, फिल्म 'Poster Boys' का रिव्यू
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सन् 2014 में बनी मराठी फिल्म की रिमेक पोस्टर ब्वॉयज तीन सामान्य व्यक्तियों विनय शर्मा (बॉबी देओल), अर्जुन (श्रेयस तलपड़े) और जगावर (सनी देओल) के जीवन पर आधारित है, जिनकी व्यवस्थित जिंदगी में उस समय नाटकीय मोड़ आ जाता है, जब उनकी फोटो स्वास्थ्य विभाग की गलती से पुरुष नसबंदी के प्रचार वाले एक पोस्टर में छप जाती हैं। इस घटना के बाद तीनों का जीवन असामान्य हो जाता है। वे अपने परिवार और समाज के बीच मजाक का पात्र बन जाते हैं। समाज में उनका जमकर मजाक उड़ाया जाने लगता है। स्थिति यहां तक जा पहुंचती है कि कोई उनसे संबंध नहीं रखना चाहता। एक तरह का सामाजिक बहिष्कार झेलते हुए वे अपने आपको बेहद अपमानित और अकेला महसूस करते हैं।
फिल्म सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों को हास्य से माध्यम से जनता के बीच लाने का एक सफल प्रयास साबित होती है। सरकारी प्रचार अभियान में बिना अनुमति उनके चित्रों के इस्तेमाल के बाद सामाजिक स्तर पर हास्य का पात्र बने तीनों लोग एक साथ मिल कर न्याय के लिए संघर्ष शुरू करते हैं। यह फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित मराठी फिल्म "पोश्टर बॉयज़" का ही हिंदी रीमेक है, जिसने अपने मूल रूप में अच्छा कारोबार किया था। सरकारी कामकाज को कितनी गंभीरता से किया जाता है, फिल्म में इसको मनोरंजक तरीके से दिखाया गया है। फिल्म में जगह-जगह प्रशासन, समाज और सरकार के ऊपर जमकर कटाक्ष किया गया है। लंबे समय बाद सनी देओल और बॉबी देओल की टीम को "पोस्टर ब्वॉयज" के रूप में देखना दर्शकों को पसंद आएगा।
फिल्म में चौधरी जगावर बने सनी देओल जब एक जगह सुरंग में फंस जाते हैं, तो वह अपने कपड़े उतारने का निर्णय लेते हैं, तो कपड़े उतारने की यह क्रिया, दर्शकों के सामने सनसनीखेज परिस्थिति और विरोध दोनों के रूपक के रूप में सामने आती है। फिल्म जनसंख्या विस्फोट और परिवारों में पुरुष संतान की चाह जैसे समाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करते हुए दर्शकों को इन पर गंभीरता से विचार करने को बाध्य करती है। तलपड़े निर्देशित इस फिल्म में -इसने तो मीटर ही कटवा दिया जैसे-संवाद सुनते ही आपको बरबस रोहित शेट्टी की याद आ जाएगी। सन 2013
में यमला पगला दीवाना में एक साथ काम करने के बाद बाबी और सनी इस फिल्म में एक साथ नजर आए हैं। सनी देओल और बाबी देओल का अभिनय दर्शकों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं छोड़ता। कोई नयापन नहीं होने की वजह से फिल्म की कमड़ी दर्शकों को उबऊ लगे, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। फिल्म का गीत संगीत और फोटोग्राफी सामान्य है। फिल्म का कथानक भी एक दशक पहले बनने वाली फिल्मों की तरह है, जिसे बेहद कमजोर तकीके से उठाया गया है। कई स्थानों पर हास्य पैदा करने के चक्कर में स्थिति फूहड़ता की हो जाती है। इस फिल्म को आज ही प्रदर्शित किया गया है। देखना है कि इसे दर्शकों का कितना समर्थन मिलता है।
Created On :   8 Sept 2017 11:42 PM IST