Protest in Nepal: नेपाल में अंतरिम सरकार बनाने की रेस में इस महिला का नाम शामिल, जानिए कौन?

नेपाल में अंतरिम सरकार बनाने की रेस में इस महिला का नाम शामिल, जानिए कौन?
  • नेपाल में सोशल मीडिया बैन मामले में हो रहा विरोध
  • ओली ने प्रधानमंत्री पद से दिया इस्तीफा
  • सुशीला कुर्की की बन सकती है अंतरिम सरकार

डिजिटल डेस्क, काठमांडू। नेपाल में सोशल मीडिया बैन मामले में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे किया है। इसके बाद से ही अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने के लिए चर्चाएं शुरू हो गई। जानकारी मिली है कि इस रेस में सुशीला कार्की का नाम शामिल है। बात दें कि सोशल मीडिया मामले में देश में हाहाकर मचा हुआ है। शासकीय आवास जलाए जा रहे हैं। संसद भवन को आग के हवाले कर दिया गया। ऐसे में जानते है कि सुशीला कार्की कौन है?

नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की रह चुकी है। उनका जन्म 7 जून, 1952 को मोरंग जिले के बिराटर नगर में हुआ था। कार्की ने मोरंग कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। इसके बाद वे उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में राजीति शास्त्र में मास्टर्स डिग्री हासिक करने चली गई। उसके बाद वह नेपाल पहुंचकर त्रिभुवन यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की।

कानून की पढ़ाई पूरी होने के बाद कार्की ने साल 1979 में वकालत शुरू की। उन्हें साल 2007 को सीनियर एडवोकेट की उपाधी मिली। इसके बाद 2009 में उन्हें नेपाल सुप्रीम कोर्ट का अधिवक्ता न्यायाधीश बनाया गया। फिर इसके अगले साल यानी 2010 में स्थायी रूप से न्यायाधीश बना दिया गया। उन्होंने 11 जुलाई 2016 से 6 जून 2017 तक नेपाल की मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।

बताया जाता है कि उनके कार्यकाल के दौरान भ्रष्ट्राचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए। वे न्यायाधीस रहते कई अहम फैसले दिए हैं। इनमें महिलाओं और बच्चों का नागरिकता देने का अधिकार, पुलिस नियुक्तियों में नियमितता लाना, फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और भ्रष्टाचार से जुड़े मामले शामिल है।

साल 2017 में अलग-अलग राजनीतिक दलों ने उनपर पूर्वाग्रह और कार्यपालिका में हस्तक्षेप के आरोप लगाए थे, इसके लिए उन्होंने महाभियोग प्रस्ताव का सामना भी करना पड़ा, लेकिन जन समर्थन और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण उस प्रस्ताव को वापस ले लिया गया था।

सुशीला कार्की सेवानिवृत्त होने के बाद दो किताबे लिखी। उनकी पहली किताब 'न्याय' है, इसमें उन्होंने अपने जीवन, न्यायिक संघर्षों और राजनीतिक दबाव की कहानी लिखी थी। वहीं, उनकी दूसरी किताब 'कारा' जो एक उपन्यास है, इसमें उन्होंने अपनी हिरासत से जुड़े किस्से और महिलाओं के सामाजिक संघर्षों को लोगों के सामने पेश किया।

Created On :   10 Sept 2025 2:29 AM IST

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