इण्डोनेशिया: टीकाकरण की 'धीमी रफ़्तार व वैश्विक एकजुटता के अभाव' से गहराया कोविड संकट
इण्डोनेशिया में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अधिकारी वैलेरी जूलिएण्ड ने कहा है कि धनी देशों द्वारा वैक्सीनों की जमाखोरी, टीकाकरण की धीमी रफ़्तार और वैश्विक एकजुटता का अभाव, ये कुछ ऐसी वजहें हैं जिनकी वजह से देश कोविड-19 महामारी की बुरी तरह चपेट में हैं.
यूएन न्यूज़ ने इण्डोनेशिया में रैज़ीडेण्ट कोऑर्डिनेटर वैलेरी जूलिएण्ड से देश में वर्तमान हालात पर बात की और ये भी जानना चाहा कि इण्डोनेशिया के अनुभव से कौन से सबक़ लिये जा सकते हैं.
इण्डोनेशिया में मौजूदा हालात क्या हैं?
दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों की तरह, इण्डोनेशिया को पिछले कुछ समय तक कोविड-19 के बदतर स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने में सफलता मिली थी. शारीरिक दूरी सम्बन्धी उपाय कुछ रूपों में लम्बे समय से लागू हैं. अक्टूबर 2020 में यहाँ कार्यभार ग्रहण करने के बाद, मैंने अधिकाँश सहकर्मियों से स्क्रीन पर ही मुलाक़ात की है और जकार्ता के ‘कुख्यात’ ट्रैफ़िक जाम से पूरी तरह बची रही हूँ.
इसके बावजूद, स्वास्थ्य से इतर, महामारी के अन्य प्रभाव स्पष्टता से दिखाई देते हैं. इण्डोनेशिया ने पिछले एक दशक में निर्धनता के विरुद्ध लड़ाई में असाधारण प्रगति दर्ज की है, मगर कोविड-19 ने उन महत्वपूर्ण उपलब्धियों को ठेस पहुँचाई है. अन्य स्थानों की तरह, कोविड-19 का आर्थिक बोझ विषमतापूर्वक ढँग से महिलाओं व हाशिएकरण का शिकार अन्य समूहों पर पड़ा है.
इण्डोनेशिया में यूएन की रैज़ीडेण्ट कोऑर्डिनेटर वैलेरी जूलिएण्ड. लेकिन मई महीने के बाद से, स्वास्थ्य संकट गहरा होता चला गया है. कोविड-19 के नए मामले पिछले महीने पाँच गुना तक बढ़े हैं. 17 जुलाई को, इण्डोनेशिया में एक दिन में भारत और ब्राज़ील, दोनों से ज़्यादा संक्रमण के नए मामले सामने आए. इस वजह से अनेक समाचार माध्यमों ने इसे कोविड-19 का एशिया में नया गढ़ क़रार दिया. और 21 जुलाई को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि अब तक देश में साढ़े 77 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है. इण्डोनेशिया में अब तक कुल 30 लाख मामलों की पुष्टि हो चुकी है, जो कि भारत में महामारी की शुरुआत से अब तक दर्ज तीन करोड़ 10 लाख मामलों से कहीं कम है.
मगर, फिर भी भारत में वसंत ऋतु के दौरान संक्रमणों में आए त्रासदीपूर्ण उछाल के साथ तुलनाएँ की गई हैं. कुछ इलाक़ों में, अस्पतालों में भारी भीड़ और उन पर भीषण बोझ होने की वजह से मरीज़ों को मजबूरन लौटाना पड़ा. इन हालात में स्वैच्छिक समूहों ने ऑक्सीजन टैण्क और ताबूत का इन्तज़ाम करने में संगठित प्रयास किये हैं.
क्या वजह रही कि हालात इतनी जल्द ख़राब हो गए?
इसकी अनेक वजहें रही हैं. संक्रमण में उछाल की एक बड़ी वजह, ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला डेल्टा वैरिएंट है, और हम पूरे क्षेत्र में और अनेक अन्य देशों में मामलों की संख्या बढ़ती हुई देख रहे हैं. मगर गहराई तक नज़र डालें तो, इस महामारी के दौरान सामूहिक बुद्धिमता का अभाव रहा है. एक देश में हुई लापरवाहियों को दूसरे देशों में भी दोहराया गया है. वैश्विक अनुभव दर्शाता है कि फैलाव पर नियंत्रण पाने में सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को सख़्ती से लागू किया जाना महत्वपूर्ण है. साथ ही, इन उपायों को वायरस के संचारण के सम्बन्ध में सटीक जानकारी के अनुरूप संचालित करना होगा. भारत में ऐसा नहीं हुआ.
हम जो इण्डोनेशिया में देख रहे हैं, वो आंशिक रूप से, संक्रमण की ऊँची दर के दौरान सामूहिक आयोजनों और यात्राओं का नतीजा है. इसके साथ-साथ, टीकाकरण को तेज़ी से आगे नहीं बढ़ाया गया है. 17 जुलाई तक, इण्डोनेशिया की 27 करोड़ आबादी में से, हर 100 व्यक्तियों में से छह को कोविड-19 वैक्सीन की दोनों ख़ुराकें मिली हैं. बुज़ुर्ग और अन्य निर्बल समूहों में टीकाकरण का स्तर कम है.
इण्डोनेशिया के पास, कोविड-19 टीकों की अपेक्षाकृत अच्छी आपूर्ति हुई है – ये कोवैक्स पहल के तहत भी हुई है जिसे यूएन स्वास्थ्य एजेंसी और यूनीसेफ़ द्वारा समर्थन प्राप्त है – और क्षेत्र के अन्य देशों से यह आगे है. मगर, न्यायसंगत वैक्सीन वितरण के लिये यूएन महासचिव की पुकार के बावजूद वैश्विक स्तर पर एकजुटता का अभाव रहा है.
धनी देशों ने वैक्सीनों की जमाखोरी की. यह जितना दुखद है, इण्डोनेशिया निश्चित रूप से उतनी बुरी परिस्थितियों में नहीं है. निम्न आय वाले देशों में महज़ 1.1 फ़ीसदी लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक ख़ुराक ही मिल पाई है.
क्या इण्डोनेशिया में फैलाव अपने चरम पर है, या फिर हालात बदतर हो सकते हैं?
यह चिन्ताजनक स्थिति है. महामारी पर जवाबी कार्रवाई के तहत, भारत द्वारा राष्ट्रव्यापी पूर्ण तालाबन्दी किये जाने के बाद, हमने देखा कि मामलों में कमी आने में लगभग दो हफ़्तों का समय लगा था.
इण्डोनेशिया ने जुलाई की शुरुआत में, जावा और बाली में आवाजाही पर सख़्त पाबन्दियाँ लगाई हैं, और उसके बाद से इन प्रतिबन्धों का दायरा बढ़ाया है.
मगर अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर आवाजाही पर सख़्त पाबन्दी या तालाबन्दी को लागू नहीं किया गया है, जैसा कि अन्य देशों ने इन हालात में किया है.
यह कहना मुश्किल है कि हम चरम पर कब पहुँचेंगे, लेकिन संक्रमण अब भी बढ़ रहे हैं.
इण्डोनेशिया की सरकार ने प्रतिदिन 10 लाख लोगों के टीकाकरण का संकल्प लिया है. इसके अलावा, अस्पतालों में 40 फ़ीसदी ग़ैर-कोविड बिस्तरों को कोविड बिस्तरों में बदला जा रहा है.
अन्य हस्तक्षेपों के अलावा, सरकार देश के सबसे निर्धन लोगों के लिये, चिकित्सा समर्थन पैकेज वितरित करने के लिये प्रयारसत है, ताकि मामूली लक्षण वाले लोगों को अस्पताल जाने की ज़रूरत ना पड़े.
ये सभी उपाय महत्वपूर्ण हैं.
मगर अन्य देशों में अनुभव साबित करते हैं कि आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबन्ध, टीकाकरण, संक्रमितों के सम्पर्क में आए लोगों का पता लगाना व परीक्षण करना, और उपचार इस वायरस की रोकथाम करने के सर्वोत्तम उपाय हैं.
संयुक्त राष्ट्र, इण्डोनेशिया को कोविड-19 पर जवाबी कार्रवाई में किस प्रकार से मदद दे रहा है?
स्वास्थ्य के नज़रिये से, संयुक्त राष्ट्र तकनीकी व कार्रवाई संचालन के सम्बन्ध में समर्थन मुहैया करा रही है.
यूएन ने रोकथाम पर प्रयास केंद्रित किये हैं, इसलिये हम परीक्षण क्षमता के लिये मदद करते हैं – उपकरणो, प्रोटोकॉल व प्रशिक्षण के सिलसिले में.
कोवैक्स पहल के तहत, हमने अब तक एक करोड़ 62 लाख ख़ुराकों की खेप यहाँ लाने में मदद की है.
हम उनके वितरण में भी सहायता प्रदान कर रहे हैं, क्योंकि 17 हज़ार द्वीपों के इस द्वीप-समूह में कोल्ड चेन की व्यवस्था जटिल है.
हमने संचार व्यवस्था में भी काफ़ी हद तक ऊर्जा झोंकी है – स्वास्थ्य प्रोटोकॉल, वैक्सीन, और भ्रामक सूचनाओं का मुक़ाबला करने में. इसके अलावा, स्वास्थ्य क्षेत्र से इतर, उन लोगों को भी समर्थन प्रदान कर रहे हैं, जो कोविड-19 से प्रभावित हुए हैं.
इसमें महामारी के आर्थिक प्रभावों के बारे में भी परामर्श सुनिश्चित किया जा रहा है.
यूएन की अनेक एजेंसियाँ, इण्डोनेशिया की निर्धनतम आबादियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं.
उदाहरणस्वरूप, हमने सामाजिक संरक्षा पैकेज और आपदा पर जवाबी कार्रवाई का ज़रूरत के अनुरूप संस्करण तैयार करने पर काम किया है, ताकि दूरदराज़ के इलाक़ों में रह रहे लोगों तक भी पहुंचा जा सके.
महिला सशक्तिकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र संस्था - यूएन वीमैन कोविड-19 के महिलाओं पर विषमतापूर्ण आर्थिक व सामाजिक असर के प्रति जागरूकता का प्रसार कर रही है.
ग़ौरतलब है कि महिलाएं, इण्डोनेशिया में लगभग दो तिहाई सूक्ष्म, लघु व मध्यम आकार के उद्यमों को सम्भालती हैं.
इसके अलावा, लिंग-आधारित हिंसा में आए उभार से निपटने के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं, जिनमें इण्डोनेशिया सहित दुनिया में अन्य क्षेत्रों में तालाबन्दी के दौरान उछाल आया है.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, स्थानीय निकायों के साथ मिलकर, शरणार्थियों को टीकाकरण कार्यक्रमों के दायरे में लाने के लिये प्रयास कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, कोविड-19 से बच्चों पर हुए तात्कालिक व दीर्घकालीन असर को दूर करने के प्रयासों को समर्थन दे रहा है.
इसके तहत, पढ़ाई-लिखाई जारी रखने, सामाजिक संरक्षण को मज़बूती देने, और बाल संरक्षा व निर्बलताओं के सम्बन्ध में चिन्ताओं का समाधान ढूँढने की कोशश हो रही है.
इण्डोनेशिया में घटनाक्रम से वैश्विक स्तर पर कौन से सबक़ लिये जा सकते हैं?
कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें एक देश तक ही सीमित रखा जा सकता है. मगर जब बात वायरस की आती है, तो वे सीमाओं को नहीं पहचानते, और ना ही धनी व निर्धन देशों के बीच भेद करते हैं.
अगर हम एक ऐसा कोश (Cocoon) बनाएँ जहाँ हम सुरक्षित महसूस करें, मगर उसके बाहर अव्यवस्था हो तो हम ज़्यादा लम्बे समय तक सुरक्षित महसूस नहीं कर सकते.
मेरे लिये यह महामारी दर्शाती है, जिसका ज़िक्र पर्यावरणविद दशकों से करते आ रहे हैं: हम एक देश में जो कुछ करत हैं, उसका असर दूसरे में होता है,
चूँकि हम एक पारिस्थितिकी तंत्र, एक पृथ्वी को साझा करते हैं.
एक भी ऐसा पर्यावरणविद नहीं है जिसे हवाई यात्राएँ घटाने के सम्बन्ध में सरकारों को समझाने में सफलता मिली हो. इसके बावजूद, कोविड-19 ने वैश्विक वायु परिवहन का चक्का जाम कर दिया.
महामारी ने हमें साथ मिलकर काम करने के लिये, हमें सीमित रहने के लिये, रहन-सहन के तरीक़ों में बदलाव लाने के लिये मजबूर किया है, जिनके बारे में हाल के दिनों तक सोचा भी नहीं जा सकता था.
लेकिन टीकाकरण के मामले में, कोवैक्स सुविधा अच्छा काम कर रही है, लेकिन वैश्विक एकजुटता का अभाव कभी-कभी दिख रहा है.
मेरा मानना है कि इण्डोनेशिया में जिस तरह के हालात हैं, उसकी एक वजह ये भी है. यह यूएन की दोहराई हुई सी बात लगती है कि हम सभी इसमें एक साथ हैं. मगर कोविड-19 के मामले में यह कितना स्पष्ट है.
महामारी ने हमें सिखाया है कि हमारे जीने के तौर-तरीक़ों में अभूतपूर्व बदलावों को लाना सम्भव है.
सवाल यह है कि क्या हम उन सबक़ को लागू करने जा रहे हैं, जिनके सीखने के लिये हमने इतनी बड़ी क़ीमत को चुकाया है।
श्रेय- संयुक्त राष्ट्र समाचार
Created On :   26 July 2021 7:50 PM IST