अमेरिका से लाला हरदयाल का क्रांति का ऐलान

Lala Hardayal announces revolution from America
अमेरिका से लाला हरदयाल का क्रांति का ऐलान
नई दिल्ली अमेरिका से लाला हरदयाल का क्रांति का ऐलान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से संस्कृत स्नातक, 1905 में ऑक्सफोर्ड से दो छात्रवृत्तियां, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन और संस्कृत के प्रोफेसर, गदर अखबार के पीछे की ताकत, जिसने अमेरिका में भारत की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं को व्यक्त किया,  बहुमुखी प्रतिभाशाली क्रांतिकारी। ये हैं लाला हरदयाल जिन्होंने खुली आंखों से आजाद भारत का सपना देखा।

एक शानदार वक्ता के रूप में जाने जाने वाले, जब पंजाब के प्रवासियों में से एक ने सुझाव दिया कि हरदयाल को आमंत्रित किया जाए, तो बैठक में भारत में ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने के लिए एक नई एलान-ए-जंग का आगाज हुआ।

इतिहासकार और गदर आंदोलन के विशेषज्ञ प्रो. हरीश पुरी ने आईएएनएस को बताया कि बैठक ने कई नए रास्ते खोले। उपस्थित लोगों ने महसूस किया कि लोग धन दान करने, दूसरों को शिक्षित करने और देश के लिए कुछ करना चाहते हैं।

इस समय तक, विनायक दामोदर सावरकर ने द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस पुस्तक लिखी थी, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद होने के बाद, मदन लाल ढींगरा सहित विदेशों में प्रवास करने वाले कई युवा क्रांतिकारियों को यह विश्वास दिलाने के लिए प्रेरित किया कि एक सशस्त्र विद्रोह ही देश को आजाद करने का एकमात्र तरीका है।

14 अक्टूबर, 1884 को जन्मे हरदयाल ने सुझाव दिया कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय लोगों को शिक्षित करना जरूरी है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, वह प्रशांत तट पर भारतीय अप्रवासियों को शिक्षित करने के लिए उर्दू और गुरुमुखी में एक साप्ताहिक पत्र के संपादक बने। इसका नाम गदर रखा गया, जिसका अर्थ है विद्रोह।

ये सभी एक साथ रहते थे, लेख लिखा और समाचार पत्र प्रकाशित किया। ये सब सशस्त्र विद्रोह की तैयारी करने के लिए था। इन लोगों के ब्रिटिश भारतीय सेना में संबंध थे। प्रो पुरी बताते हैं, आइडिया ये था कि सात से दस वर्षों की तैयारी के बाद 1917/1920 में एक विद्रोह किया जाय। हालांकि, ब्रिटिश खुफिया को पता था कि क्या हो रहा है क्योंकि ये लोग खुलकर बात कर रहे थे। एक समय, ऐसा लगता था कि ब्रिटिश सरकार अधिक जानती थी उनके बारे में।

मार्च 1914 तक, अमेरिकी सरकार ने वाशिंगटन डी.सी. में ब्रिटिश राजदूत के प्रभाव में, हरदयाल को गिरफ्तार कर लिया। यह आशंका थी कि उन पर अराजकता फैलाने का मुकदमा चलाया जाएगा।  इसके अलावा, जब 23 दिसंबर, 1912 को दिल्ली में बसंत कुमार विश्वास ने लॉर्ड हाडिर्ंग पर बम फेंका था, तो दिल्ली षडयंत्र मामले के एक आरोपी, भाई परमानंद के चचेरे भाई, भाई बालमुकुंद थे।

प्रो. पुरी कहते हैं : जमानत मिलने पर वह गायब हो गए और चुपचाप जेनेवा चले गए। उसके बाद, उसका वास्तव में गदर आंदोलन से कोई संबंध नहीं था। बाद में, उनके विचारों में परिवर्तन आया। उसने एक लेख लिखा जिसमें तर्क दिया गया कि एशिया को आने वाले लंबे समय तक ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा चाहिए क्योंकि उन्होंने जर्मनी और तुर्की की स्थिति देखी थी और महसूस किया कि अंग्रेज कहीं अधिक सभ्य थे। 1919 में वो जर्मनी में गिरफ्तार कर लिए गए। उस समय हरदयाल पूरी तरह बदल चुके थे और उसके बाद उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता चला।

बेशक, वह विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दे रहे थे। वह एक ईमानदार, मेहनती व्यक्ति थे, जो एक बहुत ही सरल जीवन जीते थे और जो कुछ भी करते थे उसके लिए प्रतिबद्ध थे। प्रो. पुरी का मानना है कि स्कूली किताबों में क्रांतिकारियों की भूमिका को व्यापक रूप से शामिल करना महत्वपूर्ण है, लेकिन चेतावनी दी कि हमें मिथक बनाने के बारे में सतर्क रहने की जरूरत है।

प्रोफेसर बताते हैं: विश्वसनीय ऐतिहासिक साक्ष्य और शोध के अभाव में, उनकी बहादुरी के इर्द-गिर्द बहुत सारी कहानियां भी गढ़ी गई हैं। इसलिए, लोगों को प्रामाणिक संसाधनों और ब्रिटिश पुस्तकालयों से तथ्य एकत्र करने होंगे। यदि आप कुछ कहना चाहते हैं तो वो पौराणिक कथाओं पर आधारित नहीं होना चाहिए।  उन लोगों के प्रति उनकी भावनात्मक प्रतिबद्धता के आधार पर बहुत कुछ मनगढ़ंत कहा गया है। आज के बच्चों को सब कुछ पता होना चाहिए, टुकड़ों में नहीं।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने क्रांतिकारियों की देशभक्ति तो ठीक थी, लेकिन हिंसा उन्हें परेशान करती थी। वो कहते हैं: उनका मानना था कि हर किसी का अपना विचार है कि अच्छा कौन है। महात्मा गांधी इस बात से चिंतित थे कि आप उन लोगों को मार सकते हैं जो अच्छा नहीं कर रहे हैं। एनसीईआरटी की किताबों में इतिहास पर बहस छिड़ने के बावजूद, प्रो. पुरी का कहना है कि वे उत्कृष्ट हैं और उन्हें लिखने में काफी काम किया गया है।

 

आईएएनएस

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Created On :   31 July 2022 12:00 PM GMT

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