लाइफ स्टाइल में लाएं बदलाव तो कभी नहीं होंगी ये बीमारियां

A balance and discipline lifestyle will stay away these diseases
लाइफ स्टाइल में लाएं बदलाव तो कभी नहीं होंगी ये बीमारियां
लाइफ स्टाइल में लाएं बदलाव तो कभी नहीं होंगी ये बीमारियां


डिजिटल डेस्क । अनहेल्दी लाइफस्टाइल और उटपटांग खाने की आदत आपकी हेल्थ पर सबसे ज्यादा असर डालती है। जिस वजह कई तरह की बीमारियां और एलर्जीस होती है। ये बीमारियां न तो संक्रमण से फैलती हैं, न ही अनुवांशिक होती हैं, हां अनुवांशिक कारक इनमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। शारीरिक सक्रियता की कमी, तनाव के बढ़ते स्तर, नींद की कमी, जंक फूड के सेवन और गैजेट्स के बढ़ते चलन से जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पहले इन बीमारियों को वयस्कों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब ये तेजी से युवाओं को ही नहीं, बच्चों को भी अपना शिकार बना रही हैं। बैलेंस्ड और डिसीप्लिन लाइफस्टाइल न केवल इनसे बचा जा सकता है, बल्कि अगर आप अपनी खराब जीवनशैली और किन्हीं अन्य कारणों से इनकी चपेट में आ जाएं तो अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाकर इन्हें नियंत्रित भी किया जा सकता है। आज हम आपको बताएंगे कि वो कौनसी बीमारियां है जो आपको गलत लाइफस्टाल की वजह से हो सकती है।

 

 

हार्ट डीजीज

कोई भी असमानता, जो हार्ट की मांसपेशियों और रक्त नलिकाओं की दीवार को प्रभावित करती है, उसे हृदय रोग कहा जा सकता है। धूम्रपान, डाइबिटीज और कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर इनका खतरा बढ़ा देता है। विश्व में हार्ट डीजिज से पीड़ित लोगों में भारत का नंबर पहला है। हमारे देश में 5 करोड़ लोग डीजिज से पीड़ित हैं। इनसे मरने वाले 30-40 प्रतिशत लोग 34 से 64 आयु वर्ग के होते हैं। 

लक्षण 

-छाती में बेचैनी और भारीपन महसूस होना। 

-छाती में दर्द के साथ सांस फूलना। 

-अत्यधिक पसीना आना।

-लगातार चक्कर आना, थकान या कमजोरी। 

लापरवाही का नतीजा

जब एक बार दिल बीमार हो जाता है तो उसकी कार्यप्रणाली लगातार कम होती जाती है और वह उतना रक्त पंप नहीं कर पाता, जितनी हमारे शरीर को आवश्यकता होती है। एक स्थिति ऐसी आती है, जब यह काम करना लगभग बंद कर देता है। जब हृदय पूरी तरह खराब हो चुका हो, तब उसे प्रत्यारोपित कराना ही एकमात्र विकल्प होता है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि हृदय मिलना अत्यंत कठिन है।

इलाज 

- अपना रक्तदाब नियंत्रित रखें। 

- अपना भार औसत रखें।

- संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें।

-अपने भोजन में नमक की मात्रा कम करें।

-धूम्रपान और शराब का सेवन बंद करें।

-तनाव न लें।

 

 

टाइप 2 डाइबिटीज 

डाइबिटीज तब होती है, जब अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या जब शरीर प्रभावकारी तरीके से अपने द्वारा स्रावित उस इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाता। इंसुलिन एक हार्मोन है, जो रक्त की शर्करा को नियंत्रित रखता है। अनियंत्रित डाइबिटीज के कारण रक्त में शर्करा का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं।    

लक्षण

-प्यास अधिक लगना। 

-बार-बार पेशाब आना। 

-तेजी से वजन घटना या बढ़ना।

-खाने के बाद भी भूख लगना। 

-थकान महसूस करना।

लापरवाही का नतीजा

डाइबिटीज की सबसे गंभीर बात यह है कि यह बीमारी नहीं, बल्कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम है, जो कई बीमारियों का घर है। इससे शरीर का हर अंग प्रभावित होता है। अगर समय रहते इसका पता नहीं चल पाए और इसे नियंत्रित नहीं किया जाए तो किडनी फेल होने, ब्रेन स्ट्रोक, रेटिनोपैथी, हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

इलाज 

- डाइबिटीज जीवनशैली से जुड़ी एक लाइलाज बीमारी है। इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता।

- खनपान को नियंत्रित कर, नियमित रूप से एक्सरसाइज और उचित दवाओं के सेवन से नियंत्रित किया जा सकता है। 

- रोजाना नियत समय पर खाना खाएं। दिन में तीन बार मेगा मील खाने की बजाय छह बार मिनी मील खाएं। इससे रक्त में शुगर के स्तर में अत्यधिक उतार-चढ़ाव नहीं होगा। 

 

 

हाई ब्लड प्रेशर 

हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर में धमनियों में रक्तदाब बढ़ जाता है, जिससे हृदय को रक्त नलिकाओं में रक्त के संचरण के लिए सामान्य से अधिक परिश्रम करना पड़ता है। हृदय जितना ज्यादा रक्त पंप करेगा और धमनियां जितनी संकरी होंगी, ब्लड प्रेशर उतना ही ज्यादा होगा। एक सर्वे के अनुसार भारत के महानगरों के लगभग 25 प्रतिशत लोग हाइपरटेंशन से ग्रस्त हैं। तनाव, मोटापा, खानपान की गलत आदतें उच्च रक्तदाब के प्रमुख रिस्क फैक्टर्स माने जाते हैं।

लक्षण

-तेज सिरदर्द। 

-सिर में भारीपन। 

-कमजोरी महसूस होना। 

-चिड़चिड़ापन। 

-नींद न आना।

लापरवाही का नतीजा

उच्च रक्तदाब का स्थायी उपचार संभव नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है। रक्त का दाब बढ़ने से हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, किडनी और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

इलाज 

- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें।

- संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें।

- घर का बना सादा खाना खाएं, जंक फूड और बाहर के खाने से बचें।

- अपने भोजन में नमक की मात्रा कम रखें।

- अधिक से अधिक फल और सब्जियों का सेवन करें।

 

 

डिप्रेशन

तेज रफ्तार जिंदगी में हर कोई काम, सफलता, पैसे और पद के पीछे भाग रहा है। संबंधों में भी अब पहले जैसी मधुरता नहीं रही। लोग आत्मकेंद्रित हो गये हैं, जिससे अकेलापन बढ़ा है। खानपान की आदतें बदल गई हैं। स्लीप पैटर्न भी गड़बड़ा गया है। इनके कारण मस्तिष्क पर हमेशा एक दबाव बना रहता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। पूरे विश्व में अवसाद और दूसरे मानसिक रोगों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में 20-25 फीसदी युवा डिप्रेशन के शिकार हैं।

लक्षण

-लोगों से कटे-कटे रहना।

-नींद न आना।

-चिड़चिड़ा और आक्रामक व्यवहार।

-आत्मविश्वास की कमी।

-किसी काम में मन न लगना।


लापरवाही का नतीजा

लक्षणों को नजरअंदाज करने से अवसाद की समस्या गहरी हो सकती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। हिंसक प्रवृत्ति और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के अनुसार युवा लोगों में मौत की सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है और आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन है।

इलाज

- स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, जिसमें एक्सरसाइज, पोषक भोजन, पर्याप्त नींद शामिल हो तथा शराब, धूम्रपान और दूसरी नशीली चीजों के लिए कोई स्थान न हो।

- प्राथमिकताएं तय करें। अपनी क्षमता से अधिक कार्य न करें और नियमित रूप से ब्रेक लेने का निर्णय लें।

- गैजेट्स के साथ कम से कम समय बिताएं। 

- सामाजिक रूप से सक्रिय रहें।

- मानसिक शांति के लिए ध्यान करें।

Created On :   21 Jan 2018 9:36 AM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story