क्या दिवाली पर पटाखे जलाना प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक है?

Does burning firecrackers on Diwali reflect ancient Indian culture?
क्या दिवाली पर पटाखे जलाना प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक है?
क्या दिवाली पर पटाखे जलाना प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक है?

नई दिल्ली, 27 अक्टूबर (आईएएनएस)। रोशनी का पर्व दिवाली पर दीये जलाने की परंपरा शुरू होने के संबंध में कतिपय पौराणिक आख्यान मिलते हैं, लेकिन बारूद के खिलौने अर्थात पटाखे जलाकर खुशियां मनाने के संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है कि यह भारतीय सभ्यता-संस्कृति का परिचायक है।

ट्र इंडोलोजी के ट्विटर हैंडल पर एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहा गया कि पूर्वजों को यमलोक का मार्ग दिखाने के लिए दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है।

इस पर मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने आईएएनएस को बताया कि इसमें कहीं दो राय नहीं दिवाली अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है और इसका अध्यात्मिक महत्व भी है आकाशदीप जलाने और मिथिला में पितृकर्म के लिए ऊक चलाने की परंपरा है, लेकिन पटाखे जलाने की परंपरा भारतीय नहीं है। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत मुगल काल से हुई है, क्योंकि बारूद का आविष्कार चीन में हुआ और भारत में मुगलवंश के संस्थापक बाबर के आने के बाद ही देश में बारूद का इस्तेमाल होने लगा।

इतिहास के प्रोफेसर डॉ. रत्नेश्वर मिश्रा ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि भारत में युद्ध में तोप का इस्तेमाल सबसे पहले बाबर ने ही किया था जब उन्होंने 1526 में इब्राहिम लोदी को हरा कर भारत में अपनी सत्ता की नींव रखी।

हालांकि ट्र इंडोलॉजिस्ट के ट्वीट में कहा गया है कि बारूद का उपयोग भले ही मध्यकाल में शुरू हुआ लेकिन प्राचीन काल में भी भारत के लोग दिवाली पर आतिशबाजी के लिए शोरा यानी सॉल्टपीटर का इस्तेमाल करते थे।

इस पर डॉ. मिश्रा ने कहा कि इतिहास और मिथक के बीच एक पतली रेखा होती है, लेकिन मिथक भी इतिहास से ही निकलता है। उन्होंने कहा, मिथकीय आख्यान के अनुसार, पूर्वजों को रोशनी दिखाने के लिए आकाशदीप जलाने या अन्य विधियों की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, लेकिन बारूद के खिलौने जलाने की परंपरा मध्यकाल में ही शुरू हुई।

ट्र इंडोलोजी के ट्वीट पर पर कई लोगों ने प्रतिकिया देते हुए बिना पटाखे के दिवाली मनाने की बात कही है। बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला ने कहा, परंपरागत रूप से दिवाली का आतिशबाजी से कोई लेना-देना नहीं है। इस दिवाली मैंने अपने घर में सिर्फ दीये जलाने की योजना बनाई है।

आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण के बढ़ते खतरे के मद्देनजर पिछले साल दिवाली से पहले सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में सिर्फ हरित पटाखे बेचने की अनुमति प्रदान की थी। साथ ही, शीर्ष अदालत ने दिवाली पर पटाखे जलाने का समय भी निर्धारित कर दिया है। दिवाली पर लोगों को शाम आठ से दस बजे रात तक ही पटाखे जलाने की अनुमति दी गई है।

Created On :   27 Oct 2019 12:30 PM GMT

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