ढहती विरासत को बचाने की उम्मीद के साथ फरीदकोट शाही विरासत की लड़ाई हुई समाप्त
चंडीगढ़, 5 जून (आईएएनएस)। फरीदकोट के अंतिम शासक रहे महाराजा हरिंदर सिंह बराड़ के वंशजों को मिलने वाली संपत्ति को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है।
हरिंदर सिंह बराड़ अपने पीछे अरबों रुपये की संपत्ति छोड़कर गए हैं, जिनमें दिल्ली के कोपरनिकस मार्ग पर स्थित फरीदकोट हाउस भी शामिल है। हाईकोर्ट ने उनके वंशजों के पक्ष में फैसला सुनाया और उनके बीच संपत्ति का बंटवारा करते हुए करीब 30 वर्षों से अधिक समय से चल रहे इस विवाद का निपटारा कर दिया है।
बराड़ की संपत्ति में दिल्ली में दो फरीदकोट हाउस हैं, जिनमें पहला दिल्ली के इंडिया गेट के पास स्थित फरीदकोट हाउस और दूसरा राजनयिक एन्क्लेव में स्थित है। इसके अलावा फरीदकोट में राज महल और किला मुबारक भी बड़ी संपत्तियां है। चंडीगढ़ में मणि माजरा में सूरजगढ़ किला और शिमला में मशोबरा में फरीदकोट एस्टेट संपत्ति भी है। यह सभी देखरेख के अभाव में बुरी स्थिति में हैं।
तत्कालीन शासक बराड़ विमान, मोटरबाइक और महंगी कारों के शौकीन थे। उनका जब 1989 में निधन हो गया तो उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति महारवाल खेवाजी ट्रस्ट के लिए छोड़ दी, जिसकी अध्यक्षता उनकी तीन बेटियों में से एक कोलकाता की रहने वाली दीपिंदर कौर ने की।
अब 547 पन्नों के फैसले में हाईकोर्ट के न्यायाधीश राज मोहन सिंह ने फैसला सुनाया कि महाराज के भतीजे के साथ, उनकी दो जीवित बेटियों चंडीगढ़ निवासी अमृत कौर (88) और दीपिन्दर कौर को महाराजा की संपत्ति मिलेगी।
बराड़ की सबसे बड़ी बेटी अमृत कौर ने 1992 में उस वसीयत को चुनौती दी थी, जिसमें एसेट्स के केयरटेकर के रूप में एक ट्रस्ट का हक था, जिसमें पंजाब के फरीदकोट में किला मुबारक भी शामिल था। इसके अलावा इसमें कृषि क्षेत्र और अस्तबल, चंडीगढ़ के पास पांच एकड़ में फैला एक किला, शिमला के पास मशोबरा में संपत्ति, जहां उनकी एक बेटी 2003 में मर गईं थीं, शामिल थी।
इसके अलावा ट्रस्ट तीन विमानों का संरक्षक होने के साथ ही स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के लॉकरों में रखे करोड़ों रुपये के प्राचीन आभूषण और दो दर्जन विंटेज कारें जिनमें रोल्स-रॉयस, ग्राहम, बेंटले और जगुआर शामिल हैं, का भी कस्टोडियन था।
किले सहित अधिकांश ऐतिहासिक संरचनाएं जर्जर हो चुकी हैं।
जिस समय वसीयत में हेरफेर हुई थी, उस समय महाराजा बराड़ अवसाद में थे, क्योंकि उनके एकमात्र कुंवारे बेटे हरमोहिंदर सिंह की मृत्यु हो गई थी। वसीयत बनाने के काम को उनके बेटे की मौत के आठ महीने बाद एक जून 1982 को अंजाम दिया गया था।
अब हाईकोर्ट की ओर से आए फैसले में प्रॉपर्टी की हिस्सेदारी कर दी गई है। दोनों बेटियों को 37.5 फीसदी हिस्सा और महाराजा के भाई कंवर मंजीत इंदर सिंह के परिवार को 25 फीसदी हिस्सा देने का फैसला सुनाया गया है।
इससे पहले 25 जुलाई, 2013 को चंडीगढ़ में एक सत्र अदालत ने कहा था कि नौकरों और वकीलों द्वारा वसीयत जाली बनाई गई थी। अदालत ने तब अमृत कौर और दीपिन्दर कौर को 20,000 करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिकाना हक देने की बात कही थी।
ताजा निर्णय के साथ हल किया गया प्रमुख मुद्दा यह रहा कि क्या तत्कालीन शासक को अपने पूर्वजों से संपत्ति विरासत में मिली थी या उन्हें खुद अधिग्रहित किया गया था।
बता दें कि फरीदकोट संपत्ति पर अधिकार का दावा करने वाला पहला मुकदमा राजा हरिंदर के छोटे भाई, कंवर मंजीत इंदर सिंह बराड़ ने अप्रैल 1992 में दायर किया था। उन्होंने कहा था अगर किसी राजा की मृत्यु हो जाती है और उनके बेटे की भी मुत्यु हो जाती है तो ऐसे में शाही परिवार के सबसे बड़े जीवित पुरुष सदस्य को संपत्ति विरासत में मिलनी चाहिए।
इतिहासकार सुभाष परिहार ने अपनी पुस्तक एक सिख राज्य की वास्तुकला विरासत : फरीदकोट में लिखा है कि फरीदकोट राज्य वास्तुकला की एक शैली का प्रतिनिधित्व करता है, जो पंजाब के राज्यों में 19वीं शताब्दी के दौरान फला-फूला।
फरीदकोट के शासकों ने विभिन्न कलाकृति के साथ ही हवेलियों और प्रशासनिक एवं शैक्षिक भवनों के साथ किलों व महलों का निर्माण किया था।
Created On :   5 Jun 2020 4:01 PM IST