लद्दाख में 15,000 फीट की ऊंचाई पर सेना के जवानों ने किया योगाभ्यास

लद्दाख में 15,000 फीट की ऊंचाई पर सेना के जवानों ने किया योगाभ्यास
Army soldiers did yoga at an altitude of 15000 feet in Ladakh.
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सेना की अल्टीमेट फोर्स की यूनिट ने हनले वेधशाला में लद्दाख के दूरदराज के इलाकों में 15,000 फीट की ऊंचाई पर योग का आयोजन किया, जो दुनिया में सबसे ऊंचे स्थानों में से एक है। भारतीय सेना ने लद्दाख के ऊंचे पहाड़ों, ग्लेशियर, मैदानी इलाकों समेत देश भर में 100 से अधिक स्थानों पर योग आसन कर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया।

वहीं चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023 के अवसर पर एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी, वायु योद्धाओं और उनके परिवार के सदस्यों के साथ वायु सेना स्टेशन, नई दिल्ली में एक योग सत्र में भाग लिया। चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मनोज पांडे ने सेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों व विशिष्ट विदेशी हस्तियों के साथ दिल्ली कैंट स्थित करिअप्पा ग्राउंड में योगासन किया।

सेना के मुताबिक सद्भाव और शांति के लिए योग के संदेश के साथ, भारतीय सेना ने देश भर में 106 स्थानों पर 9वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया -- उत्तर में सियाचिन ग्लेशियर और लद्दाख से, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्र, दक्षिण में इंदिरा पॉइंट से लेकर पश्चिम में कच्छ और थार तक। भारतीय सेना ने कहा कि सेना अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को सभी के बीच शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाती है। सेना का मानना है कि योग स्वयं की, स्वयं के माध्यम से, स्वयं तक की यात्रा है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्वदेशी तकनीक से तैयार एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत पर कोच्चि में नौसैनिकों के साथ योगासन किए। रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत की इस ऐतिहासिक विरासत को भले ही संयुक्त राष्ट्र ने 9 वर्ष पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी, लेकिन योग का अंतरराष्ट्रीयकरण आज से सदियों पहले हो चुका है। विश्व के विभिन्न हिस्सों में, खासकर पूर्वी हिस्से में जापान, वियतनाम, चीन, तिब्बत जैसे देशों में योग लंबे समय से अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराता आया है।

आईएनएस विक्रांत पर मौजूद रहे रक्षा मंत्री के मुताबिक यहां योग का अर्थ सिर्फ कुछ आसनों से नहीं है, बल्कि योग इससे कहीं अधिक व्यापक है। योग का संबंध कर्म, ज्ञान और भक्ति से भी है। इसी केरल की धरती से सातवीं शताब्दी में जगतगुरू आदि शंकराचार्य निकले, जिन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा, पूरे भारत में योग-संस्कृति के विकास के लिए लगाया।

उन्होंने कहा कि योग तो युगों-युगों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का एक अभिन्न अंग बना हुआ है। हम ऐसे देश के निवासी हैं, जहां अपनी योग साधना के रूप में हमारे ऋषि और मनीषी हमारे समक्ष एक अमूल्य विरासत छोड़ कर गए हैं। हमारे यहाँ तो योग को मानव सभ्यता जितना प्राचीन माना गया है।

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Created On :   21 Jun 2023 10:22 AM GMT

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