हवा में 'जहर': प्रदूषण से बचने के लिए दिल्ली सरकार की नई तरकीब, कृत्रिम वर्षा कराने की तैयारी, जानिए आखिर कैसे कराया जाता है आर्टिफिशियल बारिश?

प्रदूषण से बचने के लिए दिल्ली सरकार की नई तरकीब, कृत्रिम वर्षा कराने की तैयारी, जानिए आखिर कैसे कराया जाता है आर्टिफिशियल बारिश?
  • दिल्ली की हवा में जहर!
  • प्रदूषण को रोकने के लिए कृत्रिम वर्षा का सहरा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली और आस-पास के इलाकों में लगातार धुंध छाए हुए हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद हवा की गुणवत्ता में सुधार होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, जो सबके लिए चिंता का सबब बना हुआ है। प्रदूषण का स्तर लगातार खतरनाक बने होने के कारण लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अब दिल्ली सरकार आर्टिफिशियल बारिश कराने की तैयारी में है।

दिल्ली सरकार के मुताबिक, 20 नवंबर के आसपास क्लाउड सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश का प्रयास किया जाएगा ताकि प्रदूषण से थोड़ी राहत मिल सके। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब देश में किसी खास जगह कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी हो रही हो ऐसा पहले भी भारत में हो चुका है।

क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग कृत्रिम वर्षा कराने वाला मेथट है। आर्टिफिशियल बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग एक प्रकार से मौसम में बदलाव का वैज्ञानिक तरीका है। इसके जरिए कृत्रिम वर्षा कराई जाती है। जिसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और उनसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़े जाते हैं। जिसकी वजह से बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं, जमने के बाद यही पानी बारिश के रूप में जमीन पर गिरती हैं लेकिन यह तभी संभव है जब वायुमंडल में पहले से पर्याप्त मात्रा में बादल मौजूद हो और हवा में नमी हो।

आर्टिफिशियल बारिश पर क्या बोले गोपाल राय?

दिल्ली की सरकार में पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने आईआईटी कानपूर के वैज्ञानिकों के साथ एक अहम मीटिंग की। जिनसे वैज्ञानिकों ने बताया कि, कृत्रिम वर्षा तभी हो सकती है जब वातावरण में बादल या नमी मौजूद हो।

गोपाल राय ने बैठक के बाद बताया कि, विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि ऐसी स्थितियां 20-21 नवंबर के आसपास विकसित हो सकती हैं। हमने वैज्ञानिकों से इस संबंध में एक प्रस्ताव तैयार करने को कहा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जाएगा।

इन राज्यों में कराया जा चुका है कृत्रिम बारिश

कृत्रिम बारिश भारत के लिए नई बात नहीं है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के मुताबिक, भारत में सबसे पहले कृत्रिम बारिश साल 1951 में टाटा फर्म द्वारा पश्चिमी घाट पर जमीन आधारित सिल्वर आयोडाइड जनरेटर के इस्तेमाल करके किया गया था। इसके बाद कर्नाटक में तीन बार (2003, 04, 2019), आंध्र प्रदेश (2008), महाराष्ट्र (2004), तमिलनाडु (1983, 1993, 94) में कृत्रिम बारिश कराया जा चुका है। इन राज्यों में बारिश कराने का मुख्य कारण सूखा रहा ताकि फसलों को बचाया जा सके। बीते वर्ष ही आईएमडी ने करीब 30 जगहों पर सफल तरीके से कृत्रिम बारिश करा चुकी है।

पांच साल पहले ही मिल चुकी है परियोजना को मंजूरी

दिल्ली से धुंध की छाया हटाने के लिए आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने क्लाउड सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश कराने का प्रोजेटक्ट तैयार किया था। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इस परियोजना को मंजूरी मिल चुकी है। इस प्रोजेक्ट के लिए राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी के एक विमान को हायर किया गया है, जो बादलों में उड़ कर सिल्वर आयोडाइड को इंजेक्ट कर सके ताकि बर्फ के क्रिस्टल बना सके ताकि वो बादल बने। बादल बनने के बाद ये सघन हो और सघन के बाद संघनित होकर बारिश में परिवर्तित हो जाए, जिससे वायुमंडल में मौजूद धूल हट जाए और आसमान साफ हो जाए। जानकारी के लिए बता दें कि, इस परियोजना को मंजूरी साल 2018 में मिल गई थी लेकिन विमान की मौजूदगी न होने की वजह से ये प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका।

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी कई सालों से क्लाउड सीडिंग पर प्रयोग कर रहा है। संस्थान ने ये प्रयोग नागपुर, सोलापुर, जोधपुर और वाराणसी के आसपास करा चुका है। इन प्रयोगों की सफलता दर 60-70% तक रही है। हालांकि, यह स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों, हवा में नमी की मात्रा और बादलों की उपस्थिति पर निर्भर करता है।

Created On :   9 Nov 2023 9:53 AM GMT

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