इमरजेंसी के विरोध में बीजेपी 25 जून को मनाएगी ‘ब्लैक डे’

BJP to Observe 1975 Emergency Anniversary as Black Day on June 25
इमरजेंसी के विरोध में बीजेपी 25 जून को मनाएगी ‘ब्लैक डे’
इमरजेंसी के विरोध में बीजेपी 25 जून को मनाएगी ‘ब्लैक डे’

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बीजेपी ने इमरजेंसी की वर्षगांठ को "ब्लैक डे" के रूप में मनाने का फैसला किया है। बीजेपी 25 जून को ब्लैक डे मनाकर 1975 में लागू की गई इमरजेंसी का विरोध करेगी। ब्लैक डे के प्रोग्राम में करीब 25 केंद्रीय मंत्रियों सहित बीजेपी के कई बड़े नेता शामिल होंगे। 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार में देश में इमरजेंसी की घोषणा की गई थी। 26 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक भारत में इमरजेंसी लागू थी।

 

 

देश के अलग-अलग हिस्सों में बीजेपी मनाएगी "ब्लैक डे" 

देश के अलग-अलग हिस्सों में बीजेपी ब्लैक डे मनाएगी। इस दौरान बीजेपी के मंत्री, नेता और कार्यकर्ता आम लोगों को इमरजेंसी के बारे में बताएंगे कि किस तरह इमरजेंसी के दौरान लोगों पर अत्याचार किए गए थे। इस दौरान न्यायपालिका से लेकर मीडिया तक का दमन किया गया। बीजेपी हमेशा से ही इमरजेंसी के मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हमला करती रही है।

 

 

राष्ट्रपति की साइन के बाद लागू की गई थी इमरजेंसी

इमरजेंसी के इस आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 और 26 जून की रात को साइन किया था, जिसके बाद पूरे देश में इमरजेंसी लागू हो गई थी। अगली सुबह इंदिरा गांधी ने रेडियो पर पूरे देश को बताया था कि राष्ट्रपति जी ने देश में आपातकाल की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ इंदिरा गांधी ने ये भी कहा था कि इससे डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन तब तक पूरे देश में गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो चुका था।

 

एक लाख से ज्यादा लोगों की हुई थी गिरफ्तारी

इमरजेंसी लागू होते ही 26 जून की सुबह तक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। दरअसल इमरजेंसी ने इंदिरा गांधी की सरकार को असीमित अधिकार दे दिए थे। इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन के रूम में वो लिस्ट बन रही थी जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था। ये लिस्ट संजय गांधी और ओम मेहता बना रहे थे। मीसा कानून और DIR के तहत देश में करबी 1 लाख 11 हजार लोगों को जेल में डाल दिया गया था।

 

 

आम नागरिकों से लेकर मीडिया के अधिकारों का हनन

इमरजेंसी के वक्त प्रेस की फ्रीडम पर भी हमला किया गया था। दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई थी। कई अखबारों ने खुलकर इमरजेंसी का विरोध भी किया था। आम नागरिकों के सारे अधिकार रद्द कर दिए गए थे। देश में होने वाले सभी संसदीय और विधानसभा चुनावों पर रोक लगा दी गई थी। कुछ राज्यों की सरकारों को गिराकर वहां के नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था।


 

26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रही इमरजेंसी

संविधान की धारा 352 के तहत 26 जून 1975 को देश में इमरजेंसी की घोषणा की गई थी। जयप्रकाश नारायण ने इसे भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कहा था। इस दौरान राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, जिनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फ़र्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे।

 

 

1971 का चुनाव बनी थी इमरजेंसी की वजह

ऐसा माना जाता है कि इलाहावबाद हाई कोर्ट का एक फैसला इमरजेंसी की वजह था। हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था। कोर्ट ने उन पर 6 सालों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इंदिरा गांधी ने 1971 के लोकसभा चुनाव में राजनारायण को हराया था, लेकिन चुनाव के 4 साल बाद राजनारायण ने चुनावी नतीजों को कोर्ट में चुनौती दे दी थी। 

 

26 जून 1975 को इमरजेंसी की घोषणा की गई 

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर 6 साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया, लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को इमरजेंसी लागू करने की घोषणा कर दी।


 

Created On :   19 Jun 2018 3:58 AM GMT

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