आईएसआई के गिलगित-बाल्टिस्तान कदम के पीछे चीनी हाथ से अलगाववादी परेशान

Chinese hand behind separatists upset behind ISIs Gilgit-Baltistan move
आईएसआई के गिलगित-बाल्टिस्तान कदम के पीछे चीनी हाथ से अलगाववादी परेशान
आईएसआई के गिलगित-बाल्टिस्तान कदम के पीछे चीनी हाथ से अलगाववादी परेशान
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नई दिल्ली, 3 जुलाई (आईएएनएस)। पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को हड़पने का विवादास्पद प्रस्ताव, जो क्षेत्र की अर्ध-स्वायत्त स्थिति को बदलने के लिए है, वह पाकिस्तान की ओर से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को सुरक्षित करने में चीन की मदद करने के लिए लाया जा रहा है। सुरक्षा एजेंसियों ने सरकार को यह जानकारी दी है। भारत इस प्रस्तावित कदम का विरोध कर रहा है।

गिलगित-बाल्टिस्तान के संबंध में पाकिस्तान में चल रहे घटनाक्रम और भारत के खिलाफ काम करने वाले आतंकवादी नेताओं और अलगाववादियों की घटती भूमिका केवल आकस्मिक नहीं है। इसमें बड़ी रणनीतिक गहराई है और इसके चारों ओर सुरक्षा परिधि चीन के साथ प्रमुख भूमिका निभा रही है।

शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि संभवत: सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि एक दीर्घकालिक फोकस के साथ पाकिस्तानी मामलों में चीन का हस्तक्षेप बढ़ रहा है।

3,218 किलोमीटर का सीपीईसी चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग का एक ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसमें चीन लगभग 19 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च कर रहा है। यह प्रोजेक्ट विवादित क्षेत्र के पास ही है।

पिछले अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू एवं कश्मीर की विशेष स्थिति को केंद्रीय नियंत्रण में ला दिया। माना जाता है कि गिलगित-बाल्टिस्तान पर भारत के दावे को दोहराते हुए गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर आशंकाएं बढ़ गई हैं।

गिलगित-बाल्टिस्तान की स्वायत्त स्थिति को समाप्त करने के लिए इस्लामाबाद में तीन बैठकें हुईं। जैसी ये बैठकें पाकिस्तान में हो रही थीं, सुरक्षा एजेंसियों ने देखा कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन ने घुसपैठ शुरू कर दी।

सूत्रों ने कहा कि पिछले साल इस्लामाबाद में पहली बैठक हुई थी और इसकी अध्यक्षता पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों ने की थी। बैठक में गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में मिलाने संबंधी मुद्दे पर चर्चा के लिए पाकिस्तान स्थित कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को बुलाया गया था।

कश्मीरी अलगाववादियों ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अलगाववादियों का यह रवैया पाकिस्तानी सेना और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) को हजम नहीं हुआ।

इसके बाद, तीसरी बैठक फरवरी 2020 में हुई और इसकी अध्यक्षता पाकिस्तान के एक अन्य शीर्ष अधिकारी ने की। बैठक में पाकिस्तान के कानून मंत्री, पीओके के कानून मंत्री, पीओके के प्रधानमंत्री, गिलगित-बाल्टिस्तान के मुख्यमंत्री, हुर्रियत के दोनों गुटों के और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

बैठक में गिलगित-बाल्टिस्तान के इतिहास पर पाकिस्तान सेना द्वारा एक विस्तृत प्रस्तुति दी गई थी। जिसमें कहा गया था कि यह जम्मू एवं कश्मीर का हिस्सा कभी नहीं रहा था और इसे डोगरा महाराजा और ब्रिटिश ने जबरन इसे हड़प लिया था। हुर्रियत नेताओं ने इस विचार का समर्थन किया, लेकिन जेकेएलएफ के प्रतिनिधि और कश्मीर स्थित एसएएस गिलानी के प्रतिनिधि चुप रहे।

गिलानी के प्रतिनिधिन ने कथित तौर पर श्रीनगर से स्पष्टीकरण निर्देश लेने के बाद प्रस्ताव का विरोधर किया था।

सूत्रों ने कहा कि श्रीनगर स्थित 90 वर्षीय गिलानी ने इसका हर कीमत पर विरोध करने का निर्देश दिया था। उसके बाद गिलानी के प्रतिनिधि ने गिलगित-बाल्टिस्ताल के बारे में अन्य हुर्रियत नेताओं के निर्णय का समर्थन करने से इंकार कर दिया। गिलानी के प्रतिनिधिन ने कथित तौर कहा था कि गिलगित-बाल्टिस्तान को हड़प लेने से कश्मीर में आतंकवादी आंदोलन को नुकसान पहुंचेगा।

जेकेएलएफ के प्रतिनिधि ने भी प्रस्ताव पर चिंता जताई थी। सूत्रों ने कहा, बैठक को तब बिना किसी अंतिम निर्णय के स्थगित कर दिया गया।

Created On :   3 July 2020 11:30 PM IST

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