रोहतांग: अटल टनल का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया निरीक्षण, आज पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन

Defense Minister Rajnath Singh Arrives In Manali Himachal Pradesh
रोहतांग: अटल टनल का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया निरीक्षण, आज पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन
रोहतांग: अटल टनल का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया निरीक्षण, आज पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन
हाईलाइट
  • 26 मई 2002 को इसकी आधारशिला रखी गई थी
  • 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। समुद्र तल से करीब दस हजार फुट की ऊंचाई पर बनी अटल टनल (रोहतांग टनल) पूरी तरह बनकर तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण अटल टनल का हिमाचल प्रदेश के रोहतांग में उद्घाटन करेंगे। लोकार्पण से एक दिन पहले शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शुक्रवार दोपहर को सेना के हेलीकॉप्टर से मनाली पहुंचे। उनके साथ केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद रामस्वरूप शर्मा और मंत्री गोविंद ठाकुर मौजूद थे। रक्षा मंत्री का सीसे हेलीपैड पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्वागत किया। इसके बाद रक्षा मंत्री ने अटल टनल रोहतांग का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने BRO के अधिकारियों से टनल को लेकर जानकारी हासिल की।

सीमा सड़क संगठन (BRO) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने रक्षा मंत्री को अटल सुरंग की मुख्य विशेषताओं और रणनीतिक महत्व की इस परियोजना के उद्घाटन से जुड़ी तैयारियों के बारे में जानकारी दी। इससे पहले मुख्यमंत्री ने मोदी द्वारा संबोधित किए जाने वाले कुल्लू जिले के सोलांग और लाहौल-स्पीति जिले के सिसु में रैली स्थलों का दौरा किया और तैयारियों का जायजा लिया। मोदी शनिवार को रोहतांग में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सभी-मौसम के लिए खोली जाने वाली अटल सुरंग का उद्घाटन करेंगे। यह दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है।

9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग है
प्रधानमंत्री कार्यालय के एक बयान में कहा गया है कि समारोह सुबह 10 बजे आयोजित किया जाएगा। अटल सुरंग मनाली और लेह के बीच की दूरी को 46 किलोमीटर तक कम करती है और यात्रा के समय को भी चार से पांच घंटे कम कर देती है। यह 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग है, जो कि मनाली को पूरे साल लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इससे पहले घाटी हर साल लगभग छह महीने तक भारी बर्फबारी के कारण अन्य हिस्सों से कट जाती थी।

26 मई 2002 को इसकी आधारशिला रखी गई थी
इस टनल को बनाने का एतिहासिक फैसला तीन जून 2000 को लिया गया था, जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। 26 मई 2002 को इसकी आधारशिला रखी गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 दिसंबर 2019 को इस टनल का नाम दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अटल टनल रखने का फैसला किया था।

अटल टनल की वह बाधा, जिसे दूर करने में लगे 1400 दिन
टनल निर्माण की राह में आई उस बाधा को दूर करने के लिए दुनिया के शीर्ष विशेषज्ञों और सर्वश्रेष्ठ तकनीक का सहारा लेना पड़ा। BRO के मार्गदर्शन में वह बाधा तो दूर हो गई, साथ ही साथ टनल पूरा होने का लक्ष्य भी 1400 दिन आगे बढ़ गया। पहाड़ी के अंदर से जब टनल की राह निकाली जा रही थी तो वहां एक छोटे से सुराख के जरिए पानी का तेज बहाव मिला। टनल पर लगे इंजीनियर उसे बंद करने का प्रयास करते, मगर उसका मुंह चौड़ा होता चला गया। एक बार तो ऐसा लगा जैसे सब कुछ बह जाएगा। लेकिन, BRO भी हिम्मत कहां हारने वाला था। भले ही चार साल लगे, खर्च बढ़ा, लेकिन अटल टनल तैयार हो गई।

पहाड़ी के अंदर वाटर चैनल ने बढ़ाई मुसीबत
कर्नल सूरजपाल सिंह सांगवान, जो कि अब जम्मू-कश्मीर में NHIDCL पीएमयू अखनूर के प्रोजेक्ट पर बतौर जीएम (पी) काम कर रहे हैं, वे अटल टनल की साइट पर 2012 से 2015 के बीच कार्यरत रहे थे। उन्होंने बताया कि BRO ने इस प्रोजेक्ट पर तेजी से काम शुरू किया था। काम आगे बढ़ रहा था कि बीच में पहाड़ी के अंदर एक वाटर चैनल निकल आया। हालांकि शुरू में वह तो एक छोटे से छेद की भांति था, लेकिन बाद में वहां से पानी ने ऐसी तेजी पकड़ी कि उसे रोक पाना मुश्किल हो गया। साइट पर जितने भी इंजीनियर थे, सब हैरान रह गए। हर एक इसी चिंता में डूबा था कि पानी का बहाव कैसे बंद हो। विश्व के कई देशों से तकनीकी एक्सपर्ट बुलाए गए। उपकरण और केमिकल भी लाना पड़ा।

4 साल रुका रहा काम
बतौर सांगवान, पानी का बहाव इतना तेज हो चुका था कि उस पर लगाई गई हर सील टूट रही थी। बांध साइट पर जिस केमिकल और सीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है, उसकी मदद से छेद बंद करने की कोशिश की गई, लेकिन वह तरीका भी कामयाब नहीं हो सका। हाई तकनीक की मदद से चैनलाइज का काम शुरू हुआ। विदेशों से लाए गए केमिकल का इस्तेमाल करने से पहले वहां पानी के नीचे वेल्डिंग तकनीक के जरिए छेद बंद करने की मुहिम शुरू हुई। इसमें कामयाबी मिल गई। पानी का तेज बहाव बंद हो गया। कुछ दिन तक देखा गया कि वहां पानी का रिसाव या नमी जैसा कोई लक्षण नहीं दिख रहा है, इसके बाद इंजीनियरों ने आगे बढ़ना शुरू किया। यही वजह थी, जिसके चलते टनल का निर्माण कार्य चार साल आगे सरक गया।

टनल के भीतर 80 किलोमीटर प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार तय
सुरंग को समुद्र तल से 3,000 मीटर (10,000 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी में आधुनिक तकनीक के साथ बनाया गया है। इस टनल में हर रोज तीन हजार कार और डेढ़ हजार ट्रक गुजर सकेंगे। टनल के भीतर 80 किलोमीटर प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार तय की गई है। टनल के भीतर सेमी ट्रांसवर्स वेंटिलेशन सिस्टम होगा। यहां किसी भी आपात स्थिति से निपटने की तमाम व्यवस्था भी की गई है। टनल के भीतर सुरक्षा पर भी खास ध्यान दिया गया है। दोनों ओर एंट्री बैरियर रहेंगे। हर डेढ़ सौ मीटर पर आपात स्थिति में संपर्क करने की व्यवस्था होगी। हर 60 मीटर पर आग बुझाने का संयंत्र होगा। इसके अलावा हर ढाई सौ मीटर पर दुर्घटना का स्वयं पता लगाने के लिए सीसीटीवी का इंतजाम भी किया गया हैं। यहां हर एक किलोमीटर पर हवा की क्वालिटी जांचने का भी इंतजाम है।

Created On :   2 Oct 2020 3:14 PM GMT

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