नक्सल प्रभावित चतरा जिले में अफीम की खेती रोकने के लिए ड्रोन की मदद से चलेगा अभियान

Drone-assisted campaign to stop opium cultivation in Jharkhands Chatra
नक्सल प्रभावित चतरा जिले में अफीम की खेती रोकने के लिए ड्रोन की मदद से चलेगा अभियान
झारखंड नक्सल प्रभावित चतरा जिले में अफीम की खेती रोकने के लिए ड्रोन की मदद से चलेगा अभियान

डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड के नक्सल प्रभावित चतरा जिले में बड़े पैमाने पर हो रही अफीम की खेती रोकने के लिए पुलिस अब ड्रोन की मदद लेगी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे लेकर राज्य पुलिस की ओर तैयार की गयी एक व्यापक कार्य योजना को हरी झंडी दे दी है। यह माना जा रहा है कि चतरा जिले में इस वर्ष लगभग चार हजार एकड़ इलाके में अफीम पोस्त की खेती हुई है। विगत कई वर्षों से पुलिस ने अभियान चलाकर हजारों एकड़ में अफीम की तैयार फसल नष्ट भी की है, लेकिन इसके बावजूद जंगलवर्ती इलाकों में अफीम के धंधे को पूरी तरह रोक पाना मुमकिन नहीं हो पाया है।

इस बार राज्य पुलिस ने अफीम की खेती और कारोबार के खिलाफ जो कार्य योजना तैयार की है, उसके पहले चरण में ग्रामीणों को इसकी खेती और कारोबार से दूर करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। जिले भर के तमाम पूजा पंडालों में जिला पुलिस-प्रशासन की ओर से पोस्टर लगाकर लोगों को बताया गया कि अफीम की खेती और कारोबार कानूनन जुर्म है। इस जुर्म में पुलिस की ओर से की जानेवाली कठोर कार्रवाई और कानूनन दी जाने वाली सजा के बारे में लोगों को अवगत कराया गया। वन विभाग ने भी दुर्गा पूजा के मेलों और सार्वजनिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के जरिए सरकार की ओर से इस आशय की सूचनाएं प्रसारित की। बताया गया कि अब ड्रोन के जरिए पूरे इलाके की निगरानी शुरू की जा रही है और ऐसे में अफीम की अवैध खेती करने वाले लोग पुलिस-प्रशासन की निगाह से नहीं बच पायेंगे। इस जागरूकता अभियान के पोस्टर की लांचिंग मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते एक अक्टूबर को चतरा जिले के इटखोरी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान की थी।

चतरा के एसडीपीओ अविनाश कुमार ने आईएएनएस को बताया कि अक्टूबर के पहले हफ्ते में जिले की उपायुक्त अंजलि यादव और पुलिस अधीक्षक राकेश रंजन की अगुवाई में जिले भर के पुलिस अफसरों, वन विभाग के अधिकारियों, बीडीओ और सीओ के साथ बैठक कर अफीम की खेती और तस्करी पर अंकुश लगाने के अभियान की कार्ययोजना साझा की थी। सांसद, विधायक और पंचायतों के प्रतिनिधियों को भी इस कार्ययोजना से जोड़ा गया है और हर स्तर पर यह कोशिश की जा रही है कि जिले में किसी भी स्थान पर अफीम की खेती न होने दी जाये। इसके बाद जिलों के सभी थानों में स्थानीय प्रभावशाली लोगों के साथ बैठक की जा रही है। अफीम पोस्त की खेती के बदले गेंदा फूल और मेडिसिनल प्लांट की खेती से ग्रामीणों को जोड़ने की कोशिश भी इसी कार्ययोजना के तहत शुरू की गयी है। रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की मदद से इस तरह के पौधों की खेती के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।

बता दें कि चतरा जिले के कुंदा, प्रतापपुर, लावालौंग, गिद्धौर, कान्हाचट्टी, सिमरिया और इटखोरी में पिछले एक दशक के दौरान अफीम के धंधेबाजों ने अपने नेटवर्क का जबर्दस्त विस्तार किया है। कई इलाकों में ऐसे धंधेबाजों को नक्सलियों का संरक्षण भी मिला। नक्सल प्रभावित इलाकों में जहां पुलिस की आमदरफ्त कम होती है, वहां देखते-देखते नशे की फसल लहलहाने लगी। इस धंधे में देश के बड़े शहरों से लेकर नेपाल तक के ड्रग्स माफिया ने एंट्री पा ली। ड्रग्स माफिया ने तो अफीम की खेती करनेवालों को प्रति एकड़ फसल के एवज में चार से पांच लाख रुपये तक देने लगे और इसका नतीजा यह हुआ कि इजी मनी के चक्कर में सैकड़ों लोग इस धंधे से जुड़ गये।

चतरा के बाद झारखंड के कई दूसरे इलाकों में भी अफीम की खेती का ट्रेंड शुरू हुआ तो पुलिस की आंखें खुलीं और वर्ष 2016 से अफीम की फसलों को नष्ट करने का अभियान शुरू हुआ। पहली बार 2017 में अफीम की खेती के खिलाफ पुलिस ने जोरदार कार्रवाई शुरू की। उस वर्ष पुलिस ने लगभग डेढ़ हजार एकड़ खेत में लगी अफीम की खेती को नष्ट किया था। 2018 में 1144 एकड़ क्षेत्रफल में लगी फसल नष्ट की गयी थी। पिछले वर्ष भी 710.85 एकड़ की अफीम फसल को पुलिस ने खत्म कर दिया था। 2020 में भी पुलिस लगभग डेढ़ सौ एकड़ में लगी फसल नष्ट की गयी। इस वर्ष यानी 2021 में जून तक पूरे राज्य 2100 एकड़ इलाके में लगी अफीम की फसल नष्ट की जा चुकी है।

(आईएएनएस)

Created On :   16 Oct 2021 4:00 PM IST

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