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Farmers Protest: सरकार के साथ फिर नहीं बनी बात, आंदोलन को तेज करने की तैयारी में जुटे किसान

हाईलाइट
- किसानों ने कहा- वैकल्पिक फार्मूला नामंजूर
- संयुक्त किसान मोर्चा की 10 को बैठक
- कानून पर अमल हुआ तो खेती के बाजार पर होगा कॉरपोरेट का कब्जा: AIKSSS
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन 44 दिन से जारी है। शुक्रवार को सरकार और किसानों के बीच वार्ता एक बार फिर बेनतीजा रही। सरकार ने कहा, कानून वापस नहीं लेंगे। किसानों ने कहा, कानून वापसी तक घर वापसी नहीं। अगली वार्ता 15 जनवरी को है। आठवें दौर की वार्ता में कितनी प्रगति हुई, यह 11 जनवरी को साफ हो पाएगा। सुप्रीम कोर्ट में उस दिन सुनवाई प्रस्तावित है। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि यदि सरकार की ओर से बताया जाएगा कि वार्ता प्रगति पर है, तो सुनवाई टाल सकते हैं। ऐसे में वार्ता की प्रगति पर ही 11 जनवरी की सुनवाई निर्भर करेगी।
वहीं कृषि कानूनों पर बात बनती नहीं देख किसान संगठनों ने आगे व्यापक गोलबंदी की तैयारी तेज कर दी है। इसके अंतर्गत देश भर में 13 जनवरी को कानून की प्रतियां जलाने, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस, 23 जनवरी को सुभाष जयंती और 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड की तैयारी है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSSS) ने किसानों के संघर्ष को खाद्यान्न सुरक्षा, पर्यावरण, वन संरक्षण और बीज संप्रभुता की रक्षा के संघर्ष से जोड़ दिया है।
कानून पर अमल हुआ तो खेती के बाजार पर होगा कॉरपोरेट का कब्जा: AIKSSS
समिति के वर्किंग ग्रुप ने बयान जारी कर कहा कि तीन खेती के कानून को रद्द कराने का ये संघर्ष बुनियादी रूप से पर्यावरण, नदियों, वन संरक्षण तथा देश की बीज संप्रभुता की रक्षा करने का भी संघर्ष बन गया है। अगर इन कानूनों का अमल हुआ तो कॉरपोरेट व विदेशी कंपनियां खेती के बाजार व कृषि प्रक्रिया पर कब्जा कर लेंगी और इन पर हमले बढ़ जाएंगे। वर्किंग ग्रुप ने कहा कि इस संघर्ष की जीत से देश को बहुत सारे फायदे होंगे, खासतौर से देश की खाद्यान्न सुरक्षा का।
कॉरपोरेट का हित गरीबों को खाना देने में नहीं है, बल्कि खेती से मुनाफा कमाने में है। यह भी कहा गया कि यह आंदोलन सक्रिय सांप्रदायिक ताकतों के हमलों के मुकाबले में जन एकता व सांप्रदायिक सद्भाव का केन्द्र बन रहा है। किसान संगठनों ने कहा कि सरकार द्वारा कानून वापस नहीं लेने के विरूद्ध लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है। इसके मद्देनजर वर्किंग ग्रुप ने 13, 18,23 व 26 जनवरी को व्यापक गोलबंदी की अपील की है।
किसानों ने कहा- वैकल्पिक फार्मूला नामंजूर
शुक्रवार की बैठक में भी सरकार ने कानून वापसी के बगैर संशोधन के कई विकल्प सुझाए। पिछले दरवाजे से पहल भी की। तीनों कानूनों की वापसी के बजाय आंदोलनकारी किसान संगठनों से विकल्पों पर प्रस्ताव की उम्मीद की। पंजाब-हरियाणा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ लिखित गारंटी, राज्यों को अधिकार, कमेटी के गठन के भरोसे का विकल्प। बदले में तीन कानूनों की वापसी की जिद छोड़ कुछ जरूरी संशोधन, जिन पर अब तक आपसी सहमति बन चुकी है। इन वैकल्पिक फॉर्मूले को भी किसान संगठनों ने सिरे से खारिज कर दिया।
संयुक्त किसान मोर्चा की 10 को बैठक
संयुक्त किसान मोर्चा रविवार को बैठक कर सरकार से बातचीत पर अगली रणनीति तय करेगा। किसान मोर्चा ने 26 जनवरी तक आंदोलन तय कर रखा है। इसकी तैयारी तेज कर दी गई है। इससे पहले सरकार से हुई बातचीत पर रविवार को आपसी चर्चा होगी। इस बीच लोहड़ी में कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने से लेकर पूरे पखवाड़े देश भर में जागरुकता अभियान जारी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई वार्ता की प्रगति पर निर्भर
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से इन कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी गई है। सरकार ने शुक्रवार की वार्ता के दौरान आंदोलनकारियों से कानूनों को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने को कहा। इसे किसान नेताओं ने नकार दिया। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से भले सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई की पहल न की गई, लेकिन इनसे जुड़े आठ किसान संगठन पक्षकार हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में आगे की सुनवाई अहम होगी।
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