Coronavirus In India: भारत की मुसीबतें बढ़ी, कुल संक्रमितों में से 80 फीसदी बिना लक्षण वाले, जानें क्यूं खतरनाक होते हैं एसिम्प्टोमैटिक
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने सोमवार को कहा कि कोरोना वायरस के 100 में से 80 मामले ऐसे सामने आए हैं, जिनमें कोई लक्षण देखने को नहीं मिला या हल्के लक्षण दिखे हैं। बता दें कि दिल्ली में 20 अप्रैल से लॉकडाउन में दी जाने वाली छूट को दिल्ली सरकार ने फिलहाल रोक दिया है। इसके पीछे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई कारण गिनाए। उनमें से एक- दिल्ली में बिना लक्षण वाले कोरोना मरीजों का मिलना भी है। ऐसे मामले केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे राज्यों से भी सामने आ रहे हैं। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, असम, राजस्थान जैसे दूसरे राज्यों ने भी इस तरह के मामले सामने आने की बात स्वीकार की है। बताया जा रहा है कि इस तरह के मरीज मिलना भारत के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि ऐसे मरीजों को पता ही नहीं होता है कि वे संक्रमित हो चुके हैं। इससे कोविड-19 वायरस के फैलने की संभावना ज्यादा रहती है। इस लिहाज से भारत में एसिम्प्टोमैटिक (बिना लक्षण) कोरोना मामले डाक्टरों के लिए नया सिर दर्द बन गए हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के महामारी विज्ञान प्रमुख रमन गंगाखेडकर ने जोर देकर कहा कि 100 में से 80 लोगों में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि लोगों को लॉकडाउन नियमों का पालन करना चाहिए और सामाजिक दूरी बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा, इस तरह लोग निकट संपर्क में नहीं आएंगे।स्वास्थ्य निकाय की इस टिप्पणी ने चिंता जरूर बढ़ा दी है। क्योंकि ऐसे लोग भी हो सकते हैं, जिन्हें अभी तक लक्षण नहीं दिखने की वजह से पता ही नहीं चल पाया हो कि वह कोरोना संक्रमित है।
रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि ऐसे मरीजों ने उनकी चिंता और ज्यादा बढ़ा दी है। प्रेस कांफ्रेंस में संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली ने कोविड-19 टेस्ट ज्यादा करना शुरू किया है। एक दिन में हुए 736 टेस्ट रिपोर्ट में से 186 लोग कोरोना पॉजिटिव निकले। ये सभी "एसिम्प्टोमैटिक" मामले हैं। यानी इनमें कोरोना के कोई लक्षण मौजूद नहीं थे। किसी को बुखार, खासी, सांस की शिकायत नहीं थी। उनको पता ही नहीं था कि वो कोरोना लेकर घूम रहे हैं। ये और भी खतरनाक हैं। कोरोना फैल चुका है और किसी को पता भी नहीं चलता कि वो कोरोना के शिकार हो चुके हैं।
भारत में अब तक 559 लोगों की मौत, कुल मामले 17,656
बता दें कि भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित मामलों की संख्या बढ़कर 17,656 हो गई है और इस महामारी की चपेट में आकर 559 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सोमवार को यह जानकारी दी। इनमें से कोविड-19 के कुल 14,255 सक्रिय मामलें हैं और 2841 लोग स्वस्थ्य हो चुके हैं और इन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज किया जा चुका है। एक व्यक्ति अन्य देश चला गया है और 559 लोगों की मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, महाराष्ट्र इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बना हुआ है। यहां 4203 लोग इस महामारी से संक्रमित हैं। इसके बाद दिल्ली में कुल 2003 और गुजरात में कुल 1851 मामले सामने आए हैं।
संक्रमण कब-कब फैल सकता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना संक्रमण फैलने के तीन रास्ते हो सकते हैं।
- सिम्प्टोमैटिक- ये वो लोग होते हैं, जिनमें कोरोना के लक्षण देखने को मिले और फिर उन्होंने दूसरों को इसे फैलाया। ये लोग लक्षण दिखने के पहले तीन दिन में लोगों को कोरोना फैला सकते हैं।
- प्री सिम्प्टोमैटिक- वायरस के संक्रणम फैलाने और लक्षण दिखने के बीच भी कोरोना का संक्रमण फैल सकता है। इसकी समय सीमा 14 दिन की होती है, जो इस वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड भी है। इनमें सीधे तौर पर कोरोना के लक्षण नहीं दिखते, लेकिन हल्का बुखार, बदन दर्द जैसे लक्षण शुरुआती दिनों में दिखते हैं।
- एसिम्प्टोमैटिक- इस तरह के केस में किसी तरह के लक्षण नहीं होते, लेकिन वो कोरोना पॉजिटिव होते हैं और संक्रमण फैला सकते है।
दुनिया के बाकी देशों में भी एसिम्प्टोमैटिक मामले देखने को मिले हैं, लेकिन भारत में इनकी संख्या थोड़ी ज्यादा है।
ऐसे मरीज चुनौती क्यों है?
बीबीसी के अनुसार बेंगलुरू के राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के संस्थान के डॉ सी. नागराज ने दावा किया है कि दुनियाभर में इस तरह के एसिम्प्टोमैटिक कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या करीब 50 फीसदी के आसपास है। डॉ. नागराज के अनुसार इन मरीजों में जो गौर करने वाली है वो है इन मरीजों की उम्र। उनके 5 में से 3 मरीज 30-40 साल की उम्र के हैं, चौथा मरीज 13 साल का है और पांचवे मरीज की उम्र 50 से ऊपर की है।
ऐसे मामलों से निपटने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए:सरकार
केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के अनुसार हमें इस तरह के मामलों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग हॉटस्पॉट एरिया में रह रहे हैं और बुजुर्ग हैं, हाई रिस्क में हैं, उन्हें अपने टेस्ट कराने चाहिए। उसी तरह से जो लोग एसिम्प्टोमैटिक हैं, लेकिन कोरोना पॉजिटिव लोगों के सम्पर्क में आए हैं, उन्हें खुद को सेल्फ आईसोलेट करना चाहिए। जरूरत पड़े तो हमसे सम्पर्क करें, उन्हें अस्पताल में रखने की जरूरत होगी तो हम वो भी सुविधा उन्हें देंगे।
इसलिए भारत की चिंता बढ़ी
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार डॉ. नागराज के बताया कि भारत अन्य देशों के मुकाबले में युवा लोगों की जनसंख्या ज्यादा है और उन्हीं में कोरोना संक्रमण ज्यादा फैल रहा है। यही वजह है कि भारत को इस नए ट्रेंड से चिंतित होने की जरूरत है। 4 अप्रैल को केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़े के अनुसार देश में 20 से 49 की उम्र के बीच के 41.9 प्रतिशत लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। 41 से 60 साल की उम्र वाले करीब 32.8 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव मिले। इन आकड़ों से साफ है कि देश में युवा ही कोरोना के संक्रमण की चपेट में ज्यादा आ रहे हैं।
इम्यून सिस्टम अच्छा होना भी लक्षण नहीं दिखने का एक कारण
डॉ. नागराज के मुताबिक इसके पीछे की एक वजह ये भी हो सकती है कि भारतीय की इम्यून सिस्टम दूसरे देश के नागरिकों के मुकाबले ज्यादा बेहतर है, इसलिए भारतीयों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखते और फिर भी कोरोना के मरीज होते हैं। वहीं राजस्थान के सवाई मानसिंह अस्पताल के एमएस डॉ एमएस मीणा के अनुसार भारतीयों का रहन-सहन, भोगौलिक स्थितियां इसके लिए जिम्मेदार है। हमारा प्रदेश गर्म है, हम गर्म खाना खाते हैं, गर्म पेय पीते हैं, इस वजह से हमारे यहां एसिम्प्टोमैटिक मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। उनके मुताबिक कोरोना वायरस हीट सेंसेटिव है।
लक्षण दिखने के पहले लोगों को संक्रमित करना शुरू कर देता है पॉजिटिव
बीबीसी के अनुसार मेडिकल जरनल नेचर मेडिसिन में 15 अप्रैल को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 का मरीज लक्षण दिखने के 2-3 दिन पहले ही लोगों को संक्रमित करना शुरू कर सकता है। उन्होंने 44 फीसदी मामलों में ऐसा पाया है। पहला लक्षण दिखने के बाद, दूसरों को संक्रमित करने की क्षमता भी पहले के मुकाबले कम होती है। नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस रिपोर्ट में 94 मरीजों के टेस्ट सैम्पल लिए गए थे। उन पर की गई शोध से ही उन्हें इस बात का पता चला। डॉ नागराज के मुताबिक भारत को एसिम्प्टोमैटिक मामलों पर अपनी अलग रिसर्च भी करनी चाहिए, ताकि इससे ठोस जानकारी निकाल कर उस पर सरकार अमल कर सके। इससे ये भी पता चल पाएगा, कि हमें कोरोना हॉटस्पॉट के बाहर भी ऐसे एसिम्प्टोमैटिक लोगों के टेस्ट करने की जरूरत है या नहीं।
रैपिड टेस्टिंग और पूल टेस्टिंग से ऐसे मामलों को पकड़ने में मदद मिलेगी
डॉ. मीणा के अुनसार जब किसी मरीज में कोई लक्षण नहीं होगा, तो वो अपना टेस्ट भी नहीं कराएंगे, तो इन्हें पता ही नहीं चलेगा और ये कोरोना फैलाते चले जाएंगे। डॉ. मीणा का कहना है कि जो भी आदमी बाहर जाता है, उसे टेस्ट कराना चाहिए। जैसे ही लोगों को पता चलता है कि जिनके सम्पर्क में आए हैं वो कोरोना पॉजिटिव है, उनको खुद आगे आकर टेस्ट कराना चाहिए। डॉ. नागराज और डॉ. मीणा दोनों का कहना है कि रैपिड टेस्टिंग और पूल टेस्टिंग से ऐसे मामलों को पकड़ने में थोड़ी मदद जरूर मिलेगी, लेकिन युवा लोगों को भी खुद का ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत हैं।
Created On :   20 April 2020 9:30 PM IST
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