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फ्लैट बायर्स के लिए ‘सुप्रीम’ खबर, बिल्डर ने एग्रीमेंट के अनुसार फ्लैट नहीं दिया तो ब्याज समेत लौटाने पड़ेंगे पैसे

हाईलाइट
- SC ने बिल्डरों की मनमानी को अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस कहा
- समय से डिलीवरी नहीं हुई तो ब्याज के साथ देने होंगे पूरे पैसे
- डेवलपर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगर आप भी घर खरीदने की सोच रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आपके लिए बेहद अहम खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर खरीदार एक तरफा शर्त मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस इंदु मलहोत्रा की पीठ ने बुधवार को अपने फैसले में साफ कहा कि बिल्डर का एकतरफा करार और मनमानी अब नहीं चलेगी, क्योंकि जब घर खरीदार किस्तें या बकाया रकम देने में मजबूर होता है तो बिल्डर उस पर जुर्माना लगाता है और भुगतान करने को बाध्य करता है, लेकिन बिल्डर समय पर घर का पजेशन यानी कब्जा न दे तो उस पर जुर्माना क्यों नहीं? बिल्डर ने एग्रीमेंट के अनुसार फ्लैट नहीं देता है तो उसे ब्याज सहित पूरे पैसे लौटाने होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो-टूक कहा कि अगर समय पर खरीदार को करार की शर्तों के अनुसार घर नहीं मिलता है तो बिल्डर को पूरी जमा राशि 9 फीसदी ब्याज की रकम के साथ लौटाना होगा।
आदेश नहीं माना तो लगेगा 12 फीसदी ब्याज
SC ने मामले में बिल्डर के खिलाफ सख्त रुख दिखाते हुए कहा कि कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने की सूरत में घर खरीदार याचिकाकर्ता को पूरी राशि यानी 1 करोड़ 60 लाख रुपए 12 फीसदी ब्याज के साथ चुकाने होंगे। दिलचस्प बात ये है कि कोर्ट का ये फैसला डेवलपर की याचिका पर आया है, जिसमें उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के सामने थे 4 मुद्दे
- कब्जा देने के लिए 42 महीने की अवधि को कब से माना जाए, बिल्डिंग प्लान की मंजूरी के दिन से या फिर फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट मिलने के दिन से?
- क्या बिल्डर बायर एग्रीमेंट की शर्तें एक तरफा और बिल्डर के हित में हैं?
- क्या रेरा के होते हुए भी कोई घर खरीदार उपभोक्ता अदालत में जा सकता है?
- क्या प्रोजेक्ट में देरी होने को आधार बनाकर घर खरीदार एग्रीमेंट को रद्द कर अपने पैसे ब्याज समेत वापस ले सकता है?
दूसरे प्रोजेक्ट में बिल्डर दे रहा था घर
बिल्डर ने घर खरीदार को ऑफर दिया था कि वह दूसरे प्रोजेक्ट में घर ले ले, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये घर खरीदार की मर्जी पर निर्भर करता है, वह बिल्डर की बात मानने के लिए बाध्य नहीं है। इसे उपभोक्ता कानून 1986 के तहत गलत बताया गया और इस तरह की शर्त को एग्रीमेंट में डालने को धारा 2(1) (R) के खिलाफ बताया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि घर खरीदार रेरा के साथ-साथ उपभोक्ता अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकता है।
खरीदार मजबूर नहीं-SC
सुनवाई के दौरान बिल्डर ने घर खरीदार को ऑफर दिया था कि वह दूसरे प्रोजेक्ट में घर ले ले, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये घर खरीदार की मर्जी पर निर्भर करता है। वह बिल्डर की बात मानने को मजबूर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे उपभोक्ता कानून 1986 के तहत गलत बताया गया और इस तरह की शर्त को एग्रीमेंट में डालने को धारा 2(1) (R) के खिलाफ बताया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि घर खरीदार रेरा के साथ-साथ उपभोक्ता अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकता है।
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।