प्रबुद्ध भारत पत्रिका की 125वीं वर्षगांठ पर बोले पीएम मोदी- भारत ने कोरोनाकाल में दूसरे देशों को मदद की, यही प्रबुद्ध भारत की संकल्पना

India is following Swami Vivekananda in empowering poor, says PM Modi
प्रबुद्ध भारत पत्रिका की 125वीं वर्षगांठ पर बोले पीएम मोदी- भारत ने कोरोनाकाल में दूसरे देशों को मदद की, यही प्रबुद्ध भारत की संकल्पना
प्रबुद्ध भारत पत्रिका की 125वीं वर्षगांठ पर बोले पीएम मोदी- भारत ने कोरोनाकाल में दूसरे देशों को मदद की, यही प्रबुद्ध भारत की संकल्पना

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को स्वामी विवेकानंद द्वारा शुरू की गई पत्रिका प्रबुद्ध भारत की 125वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि जब तक गरीबों का विकास नहीं होगा तब तक देश का विकास नहीं हो सकता। अगर गरीब बैंकों तक नहीं पहुंच सकते तो बैंकों को गरीबों तक पहुंचाया जाए। यही जन धन योजना ने किया। अगर गरीब स्वास्थ्य सेवाओं तक नहीं पहुंच सकते तो स्वास्थ्य सेवाओं को गरीबों तक पहुंचाया जाए, यही आयुष्मान भारत योजना ने किया है।

पीएम मोदी ने कहा, स्वामी विवेकानंद भारत को प्रबुद्ध बनाना चाहते थे। वे गरीबों के लिए कल्याण और उत्थान पर ध्यान देते थे। स्वामी विवेकानंद के फोकस में दरिद्र नारायण थे। पीएम ने कहा,  गरीबों के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है। पीएम ने कहा विवेकानंद के सिद्धातों पर चलते हुए कोरोना काल के दौरान हमने न सिर्फ समस्या का देखा, बल्कि उसका समाधान निकाला। हमने न सिर्फ पीपीई किट का प्रोडक्शन किया, बल्कि दुनिया की फॉर्मेसी बन गए। भारत कोरोना वैक्सीन विकसित करने में सबसे आगे रहा। हम इस क्षमता का इस्तेमाल दुनिया के दूसरे देशों को मदद करने में कर रहे हैं। असल मायने में यही प्रबुद्ध भारत की संकल्पना है।

पीएम मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने इस पत्रिका का नाम प्रबुद्ध भारत रखा, क्योंकि वो इसके जरिए भारत की भावना व्यक्त करना चाहते थे। बता दें कि "प्रबुद्ध भारत" पत्रिका भारत के प्राचीन आध्यामिक ज्ञान के संदेश को प्रसारित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम रही है। इसका प्रकाशन चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) से शुरू किया गया था जहां से दो साल तक इसका प्रकाशन होता रहा। 

पत्रिका "प्रबुद्ध भारत" का प्रकाशन चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) से साल 1896 में शुरू हुआ, जहां दो सालों तक इसका प्रकाशन जारी रहा जिसके बाद यह अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ। बाद में अप्रैल 1899 में पत्रिका के प्रकाशन का स्थान उत्तराखंड में मायावटी स्थित अद्वैत आश्रम में स्थानांतरित कर दिया गया था और तब से यह लगातार प्रकाशित हो रही है। 

Created On :   31 Jan 2021 11:29 AM GMT

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