चीन को बेचैन कर रही रूस और मध्य एशिया के साथ भारत की बढ़ती दोस्ती
- ग्रेटर यूरेशियन साझेदारी बनाना पुतिन की पहल का हिस्सा है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य एशियाई देशों के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी और रूस के साथ अटूट सौहार्द - दिसंबर में व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान अत्यधिक दिखाई देने वाला - चीन को बहुत परेशान कर सकता है। मास्को के कुछ शीर्ष रणनीतिक विशेषज्ञों को ऐसा लगता है।
पिछले 12 महीनों में नई दिल्ली ने यूरेशिया के भू-आबद्ध (लैंडलॉक्ड) क्षेत्रों के साथ अपने बंधन को मजबूत किया है, खासकर अफगानिस्तान में अशांति के बाद ऐसा देखने को मिला है।
यह क्षेत्र क्रेमलिन की पारंपरिक विदेश नीति की प्राथमिकता भी है और ग्रेटर यूरेशियन साझेदारी बनाना पुतिन की पहल का हिस्सा है।
जैसा कि इंडियानैरेटिव डॉट कॉम द्वारा रिपोर्ट किया गया है, भारतीय राजधानी की अपनी यात्रा से कुछ दिन पहले, पुतिन ने भारत को एक मजबूत स्वतंत्र एक बहुध्रुवीय दुनिया के केंद्रों (सेंटर्स ऑफ ए मल्टीपोलार्ड वल्र्ड) में से एक माना था, जिसमें एक विदेश नीति दर्शन और प्राथमिकताएं हैं, जो हमारे करीब हैं।
मध्य एशियाई देशों ने 19 दिसंबर को भारत-मध्य एशिया वार्ता की तीसरी बैठक के दौरान भारत और उनके देशों के बीच सभ्यता, सांस्कृतिक, व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को रेखांकित करते हुए रूसी नेता का अनुसरण किया था।
यही नहीं, मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों ने भारत को अपना रणनीतिक साझेदार कहा और वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि वे भारत के विस्तारित पड़ोसी बने रहेंगे और मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के देशों के बीच व्यापक सहयोग को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए, जिसे भारत अधिकतम सहायता देने को तैयार है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ये घटनाएं आश्चर्यजनक रूप से बीजिंग को असहज करने के लिए काफी हैं।
रूसी दैनिक नेजाविसिमाया गजेटा के साथ एक साक्षात्कार में, रूसी रक्षा विश्लेषक रुस्लान पुखोव, जो मॉस्को स्थित सेंटर फॉर एनालिसिस ऑफ स्ट्रैटेजीज एंड टेक्नोलॉजीज के निदेशक भी हैं, ने कहा कि भारत के राजनयिक प्रयासों की तीव्रता और मध्य एशिया में रूस के साथ उसकी बातचीत निश्चित रूप से बीजिंग को खुश नहीं करेगी।
पुखोव ने कहा, आखिरकार, गरीब देश किसी भी शर्त पर चीन से ऋण लेने के लिए सहमत होने के लिए मजबूर हैं, यहां तक कि कर्ज में होने के जोखिम पर भी। और अब पीआरसी के पास एक प्रतियोगी प्रतीत होता है।
रक्षा विशेषज्ञ ने माना कि भारत की महत्वाकांक्षा रूस के लिए भी कुछ असुविधा का कारण बन सकती है, मगर दिल्ली मास्को की स्थिति को बिल्कुल भी कमजोर नहीं करना चाहती।
उन्होंने कहा, लेकिन मध्य एशियाई शासन, जो आर्थिक और सैन्य रूप से मास्को पर निर्भर है, अब पैंतरेबाजी के लिए जगह है। वे हमारे साथ सौदेबाजी कर सकते हैं।
हालांकि, सूत्र इंडियानैरिटव डॉट कॉम को बताते हैं कि इस क्षेत्र के साथ भारत का जुड़ाव रूसी हितों को ध्यान में रखते हुए होगा।
नई दिल्ली और मॉस्को ने 2030 तक व्यापक सैन्य-तकनीकी सहयोग का वादा किया है, दोनों मध्य एशिया में सैन्य उपकरणों के संयुक्त निर्माण पर एक साथ काम करेंगे, जिससे सभी भागीदारों को लाभ होगा।
इसके अलावा, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के विपरीत, ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास के माध्यम से एक इंटर-कनेक्टेड यूरेशिया होने और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) के माध्यम से भूमि से जुड़े यानी लैंडलॉक्ड क्षेत्र के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए नई दिल्ली के प्रयास भारत के अंतर्राष्ट्रीयतावाद पर प्रकाश डालते हैं। यह दुनिया को हमेशा एक परिवार के रूप में देखने का भारत का नजरिया भी पेश करता है।
जबकि बीजिंग बीआरआई के माध्यम से कई मध्य एशियाई देशों में प्रवेश कर रहा है, वहीं स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) के सदस्य विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से बढ़ती चीनी उपस्थिति से असहज हो गए हैं।
दूसरी ओर, भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि वाणिज्य की आधुनिक धमनियों के निर्माण के लिए कनेक्टिविटी परियोजनाओं को अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सबसे बुनियादी सिद्धांत का पालन करना चाहिए और यह चीज संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए होनी चाहिए।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान सबसे आगे है। यह भी महत्वपूर्ण है कि कनेक्टिविटी निर्माण वित्तीय व्यवहार्यता और स्थानीय स्वामित्व के आधार पर एक सहभागी और सहमतिपूर्ण अभ्यास रहे। उन्हें अन्य एजेंडा की सेवा नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने यह बात पिछले अक्टूबर में कजाकिस्तान की राजधानी नूर-सुल्तान में एशिया में बातचीत और विश्वास निर्माण उपायों के सम्मेलन (सीआईसीए) की छठी मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए कही थी।
तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परि²श्य में, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान जैसे देशों ने इस क्षेत्र के सतत और स्थिर विकास में भारत की भूमिका की सराहना की है।
इस महीने के अंत में गणतंत्र दिवस पर और भारत और मध्य एशियाई राज्यों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30 वीं वर्षगांठ के समय विशेष अतिथि के रूप में इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों की यात्रा भी 2022 की शुरूआत में एक नई ऊंचाई को चिह्न्ति कर सकती है।
(यह आलेख इंडियानैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत लिया गया है)
अतीत शर्मा
(आईएएनएस)
Created On :   4 Jan 2022 10:30 PM IST