भारत की सिलिकॉन वैली फेफड़ों की बीमारी की राजधानी बनने के कगार पर : पर्यावरणविद

Indias Silicon Valley on verge of becoming lung disease capital: Environmentalist
भारत की सिलिकॉन वैली फेफड़ों की बीमारी की राजधानी बनने के कगार पर : पर्यावरणविद
बेंगलुरु भारत की सिलिकॉन वैली फेफड़ों की बीमारी की राजधानी बनने के कगार पर : पर्यावरणविद
हाईलाइट
  • बेंगलुरु की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है

बेंगलुरु। बेंगलुरु, जिसे भारत की सिलिकॉन वैली के रूप में जाना जाता है, को आज भी इसके हरित आवरण के लिए सराहा जाता है और बहुत से लोग अभी भी नहीं जानते कि कभी यह वातानुकूलित शहर हुआ करता था। यहां सालभर ठंडा मौसम रहता था। लेकिन पर्यावरणविदों को आशंका है कि यह शहर अब हवा की खराब गुणवत्ता के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बेंगलुरु में वायु गुणवत्ता की निगरानी ठीक से नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि पिछले पांच वर्षो में बेंगलुरु में 25,000 से 30,000 पेड़ काटे गए हैं, इसलिए खतरनाक तत्वों को हटाने वाली हरियाली खो गई है।

पर्यावरणविद् और पूर्व नौकरशाह ए.एन. यलप्पा रेड्डी ने आईएएनएस को बताया कि बेंगलुरु की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है।

उन्होंने कहा, लगभग 60 से 70 प्रतिशत बच्चों में फेफड़ों से संबंधित समस्याएं होती हैं। उन्हें स्टेरॉयड दिए जाते हैं जो उन्हें मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर देगा। इन घटनाओं की को लेकर कोई भी चिंतित नहीं है। यह सरकार के एजेंडे में भी नहीं है और चिंता भी नहीं देखी जाती है।

बेंगलुरु में 16 लाख पौधे लगाने वाले सस्टेनेबल एनवायरनमेंट डेवलपमेंट ट्रस्ट (एसईडीटी) चलाने वाली प्रकृति प्रसन्ना ने भी आईएएनएस को बताया कि बेंगलुरु में हवा की गुणवत्ता बिल्कुल भी अच्छी नहीं है।

उन्होंने कहा, नई दिल्ली प्रतिदिन 14,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है और हैदराबाद 2,400 टन। कब्बन पार्क, लालबाग वनस्पति उद्यान के रूप में बेंगलुरु में छोड़ी गई हरियाली के लिए धन्यवाद। यह बेंगलुरु में प्रतिदिन 1,400 टन कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करती है।

प्रकृति प्रसन्ना ने कहा, बेंगलुरु के हर ट्रैफिक सिग्नल पर हवा की स्थिति की रीडिंग करवाने की योजना है। संकेतक लगाए जा रहे हैं। लोगों को जंक्शन पर ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर का पता चल जाएगा। कर्नाटक के सहयोग से एक ऐप तैयार किया जा रहा है। स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (केओनिक्स) मौजूदा वायु स्थितियों के कारण होने वाले नुकसान का विश्लेषण करेगा।

उन्होंने कहा कि सेंसर को संकेतकों के अनुकूल बनाना होगा और अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो दो से तीन महीने में यह काम करने लगेगा।

यलप्पा रेड्डी ने चिंता व्यक्त की कि रीडिंग देने वाले उपकरण वहां नहीं लगाए गए हैं, जहां लोगों की आवाजाही और वाहनों का ट्रैफिक अधिक है। पूरा पूवार्नुमान तीन से चार कंप्यूटरों पर निर्भर करता है।

वे सही आकलन नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि बेंगलुरु की वायु गुणवत्ता वाहनों के आवागमन और भवन निर्माण के साथ-साथ कचरा जलाने से प्रभावित है।

उन्होंने कहा, ये सभी मिलकर सॉलिड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) पर काम करेंगे। पार्टिकुलेट मैटर फेफड़ों में चला जाता है और यह बाहर नहीं निकलेगा और श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा करेगा। इससे ब्रोंकाइटिस और यहां तक कि फेफड़ों का कैंसर भी होगा।

उन्होंने बताया कि सरकार कूड़ा-करकट और कूड़े के पत्तों को जलाने से रोकने के लिए कड़े कानून और दंड ला सकती है। भवन निर्माण को विनियमित करने के लिए नियम भी बनाए जाने चाहिए। हालांकि, प्रदूषक प्रतिरक्षा का आनंद लेते हैं और अधिकारियों को स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव की परवाह नहीं है।

यल्लप्पा रेड्डी ने कहा कि आगामी दीपावली त्योहार निश्चित रूप से बेंगलुरु में वायु गुणवत्ता को एक नए निम्न स्तर पर धकेल देगा। लोगों के पास पैसा है और बाजार में घातक केमिकल वाले चीन से आए बेहद महंगे पटाखे हैं। लेकिन, ऐसा लगता है कि सरकार को प्रदूषण की फिक्र नहीं है।

वहीं, प्रकृति प्रसन्ना ने कहा, पटाखे जरूरी नहीं हैं। दिवाली रोशनी का त्योहार है, दीया जलाने के माध्यम से मनाया जाता है, पटाखे फोड़ने से नहीं। पटाखे जलाने की परंपरा को चीन द्वारा व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया गया है। हरे पटाखे उन्हीं रसायनों से बनाए जा रहे हैं। सरकार को पटाखे फोड़ने पर 100 प्रतिशत प्रतिबंध लगाना चाहिए।

भूविज्ञान की सेवानिवृत्त प्रोफेसर और ज्ञानभारती परिसर में बायो पार्क की समन्वयक टी.जे. रेणुका प्रसाद ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निष्कर्ष और पूवार्नुमान संदिग्ध प्रतीत होते हैं। संबंधित विभाग हमेशा एक गुलाबी तस्वीर पेश करता है।

उन्होंने कहा कि बेंगलुरु शहर में शुरू से ही एलर्जी के तत्व रहे हैं। हरियाली कम होने से अब यह और बढ़ गया है। आईटी उद्योग के विकास ने बेंगलुरु में 60,000 से 70,000 पिकअप और ड्रॉप वाहन जोड़े हैं। इसके अलावा, कार चलाने वाला एक अकेला व्यक्ति प्रतिष्ठा का विषय बन गया है।

प्रोफेसर रेणुका प्रसाद ने कहा कि बेंगलुरु को पहले एक वातानुकूलित शहर के रूप में जाना जाता था। बेंगलुरु में मौसम इतना अच्छा था कि हमारे घरों में पंखे लगाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। वायु की गुणवत्ता जल निकायों के रासायनिक निपटान से प्रभावित होती है। एक बार पानी वाष्पित हो जाने पर यह हवा में घुलता है और सांस के जरिए हमारे शरीर में चला जाता है। रासायनिक इनपुट दिन-ब-दिन बढ़ रहा है जो चिंता का विषय है। रासायनिक उत्पादन या तो जमीन में जा रहा है या वाष्पित हो रहा है, दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं।

बेंगलुरु विश्वविद्यालय के ज्ञानभारती परिसर में पौधरोपण और हरियाली बढ़ाए जाने के कारण परिसर में तापमान किसी भी समय बेंगलुरु से दो से तीन डिग्री कम रहता है।

 

 (आईएएनएस)

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Created On :   8 Oct 2022 1:30 PM GMT

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