न्यायाधीशों से इंदिरा जयसिंह का आग्रह, क्या सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का होगा लाइव प्रसारण ?

Indira Jaising urges judges, will the Supreme Court proceedings be broadcast live?
न्यायाधीशों से इंदिरा जयसिंह का आग्रह, क्या सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का होगा लाइव प्रसारण ?
नई दिल्ली न्यायाधीशों से इंदिरा जयसिंह का आग्रह, क्या सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का होगा लाइव प्रसारण ?
हाईलाइट
  • सामाजिक और राजनीतिक न्याय

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य जजों को पत्र लिखकर सार्वजनिक और संवैधानिक महत्व के मामलों की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने और अदालती कार्यवाही का स्थायी रिकॉर्ड रखने का आग्रह किया है।

सीनियर एडवोकेट जयसिंह ने कहा कि राष्ट्रीय महत्व के कई मामले, जिनमें ईडब्ल्यूएस कोटा, हिजाब प्रतिबंध, नागरिकता संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं शामिल हैं, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इसी पर उन्होंने 2018 के फैसले के अनुसार मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि, सूचना की स्वतंत्रता का प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार और न्याय तक पहुंच का अधिकार है। आगे उन्होंने कहा, प्राथमिक ज्ञान का कोई विकल्प नहीं है। विशेष रूप से उस युग में जिसे फर्जी खबरों के रूप में जाना जाता है। इसलिए, वास्तविक समय की जानकारी की तत्काल जरुरत है।

इसके साथ उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रभाव डाला कि भारत के संविधान की धारा 129 के तहत, सुप्रीम कोर्ट रिकॉर्ड की अदालत है और इसलिए उसने सभी पर वकीलों द्वारा दिए गए तर्कों का रिकॉर्ड रखने के लिए कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने का अनुरोध किया। ये भी कहा कि अदालत का अपना चैनल होना चाहिए और इस बीच वो अपनी वेबसाइट के साथ-साथ यूट्यूब पर भी कार्यवाही शुरू कर सकता है। हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के अंतिम कार्य दिवस पर औपचारिक पीठ के समक्ष कार्यवाही को जनता के लिए लाइव-स्ट्रीम किया गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी कार्यवाही को लाइव-स्ट्रीमिंग करने का ये अब तक का पहला और एकमात्र उदाहरण है।

जयसिंह ने अपने पत्र में आगे कहा, हम ऐसे समय से गुजर रहे हैं जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय में महान राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा, बहस और फैसले लिए जा रहे हैं। कुछ उदाहरण जैसे, 103 वें संशोधन की संवैधानिक वैधता को वर्तमान में चुनौती दी जा रही है। जिसमें भेदभाव वाली जातियों के लिए सामाजिक और राजनीतिक न्याय के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता है और क्या सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा में आरक्षण विशुद्ध रूप से आर्थिक आधार पर किया जा सकता है। उन्होंने अपने पत्र में कहा, आरक्षण के क्षेत्र में भी जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण और मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण देने के मुद्दे से संबंधित दो अन्य मामले हैं।

 

आईएएनएस

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Created On :   16 Sept 2022 9:00 PM IST

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