निर्भया कांड : पवन जल्लाद बेटी की शादी की खातिर मुजरिम लटकाने को बेताब (आईएएनएस विशेष)
- निर्भया कांड : पवन जल्लाद बेटी की शादी की खातिर मुजरिम लटकाने को बेताब (आईएएनएस विशेष)
मेरठ, 8 जनवरी (आईएएनएस)। हाल-फिलहाल देश में सही-सलामत मौजूद उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में रहने वाले पवन जल्लाद की खुशी का ठिकाना नहीं है, जबसे दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत ने निर्भया के कातिलों को एक साथ फांसी पर टांगने का डेथ-वारंट (सजा-ए-मौत का फरमान) जारी किया है।
आसमान की ओर दोनों हाथ जोड़कर पवन जल्लाद ईश्वर के साथ-साथ, तिहाड़ जेल प्रशासन और उत्तर प्रदेश जेल महानिदेशालय का बार-बार शुक्रिया अदा करता है, क्योंकि निर्भया के कातिलों को फांसी पर लटकाने की एवज में उसे एक लाख रुपये जैसी मोटी पगार (मेहनताना) जिंदगी में पहली देखने को मिलेगी। मेहनताने में हासिल इस रकम से पवन जल्लाद घर में क्वांरी बैठी 18 साल की बेटी की शादी कर देगा।
बकौल पवन जल्लाद, इस वक्त मैं 57 साल का हो चुका हूं। मैंने अपने जीवन में इससे पहले कभी, इतनी बड़ी रकम फांसी के बदले मेहनताने के रूप में मिलती हुई न देखी न सुनी। कहने को भले ही मैं देश में खानदानी जल्लाद क्यों न होऊं।
पवन ने कहा, मेरे परदादा लक्ष्मन जल्लाद थे। दादा कालू राम उर्फ कल्लू और पिता मम्मू भी पुश्तैनी जल्लाद थे। दादा ने रंगा-बिल्ला से लेकर इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह केहर सिंह तक को इसी तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया था। मगर वो जमाना औने-पौने मेहनताने का था। आने-जाने का खर्चा और जेल में एक दो रात अच्छे से रहने के इंतजाम से ही हमारे पुरखे सब्र कर लेते थे। आज महंगाई का जमाना है। पहले गरीब आदमी रोटी-नमक-प्याज खाकर जिंदगी बसर कर लेता था। आज प्यास देश में 150 रुपये किलो बिक रहा है।
दिल में दफन ये तमाम बेबाक बातें कहिए या फिर तमन्नाएं, बुधवार को आईएएनएस से एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पवन जल्लाद ने कहीं।
निर्भया के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाने को लेकर देश में और भी मौजूद एक दो जल्लादों में से कोई इतना बे-सब्र या बेताब नहीं है जितने आप? पूछने पर पवन जल्लाद ने बेबाकी से कहा, पांच बेटियां और दो बेटे मतलब 7 संतान जिस पिता के सहारे हों, इस महंगाई के जमाने में, सोचिये उसकी जरूरतों का आलम क्या होगा?
बिना कुछ पूछे ही पवन जल्लाद आईएएनएस के सामने धारा-प्रवाह बोलते चले गए, इन चारों को फांसी पर लटकाने की एवज में एक लाख रुपये एक साथ हाथ में आने की उम्मीद बंधी है। जैसा मीडिया में सुन रहा हूं। यूपी जेल महकमे ने भी मुझे अलर्ट रहने और जिला न छोड़ने को कहा है। इन रुपयों से घर में 18 साल की कुंवारी बैठी बेटी ब्याह (बेटी की शादी) दूंगा साहब। कुछ और जरूरत हुई पैसों की तो जैसे बाकी तीन बेटियों की शादी के लिए उधार लिया था, वैसे इसके लिए भी आपसदारी में कुछ लोगों से ले लूंगा। यह तो भगवान का शुक्रिया है कि दिल्ली की अदालत ने इन चारों को (निर्भया के हत्यारे) फांसी पर लटकाने का हुक्म सुना दिया। वरना जिंदगी अब बेजार सी लगने लगी है।
पवन जल्लाद ने दिल में छिपे दर्द को बेबाकी से बयान करने में कोई संकोच नहीं किया। आगे बोले, कई साल पहले भूमिया पुल (मेरठ) इलाके में पुश्तैनी मकान था। वह बारिश में ढह गया। उस दिन पत्नी मकान के मलबे में दब गई। बड़ी कोशिशों से उसे ढहे मकान के मलबे से निकाला गया, तभी से मैं अब मेरठ जिला प्रशासन से कांशीराम आवास योजना के तहत मिले एक छोटे से मकान में जिंदगी के दिन-रात जैसे-तैसे रो-पीटकर काट रहा हूं। तीन बड़ी बेटियों की शादी को उधार लिए 5-6 लाख रुपये अभी तक नहीं निपटे। नकद पर ब्याज और चढ़ता जा रहा है।
आईएएनएस के साथ दिल के गुबार निकालने बैठे पवन जल्लाद के मुताबिक, अब तो साहब बस 22 जनवरी 2020 का इंतजार है, ताकि मैं तिहाड़ जेल जाकर उन चारों को लटका कर अपना एक लाख मेहनताना तिहाड़ जेल अफसरों से ले सकूं।
पवन के मुताबिक, मुझे यूपी जेल विभाग से हर महीने 5 हजार रुपये मिलते हैं। जहां प्याज 150 रुपये किलो मिल रहा हो वहां सोचिये 8-9 लोगों के परिवार को क्या पांच हजार में सुबह-शाम की रोटी तक नसीब हो पाती होगी। कोई पुश्तैनी जमीन-जायदाद बाप-दादों के पास थी नहीं। जिसके सहारे बुढ़ापा कट जाए। अब सिर्फ कुछ उम्मीदें हैं तो निर्भया के हत्यारों की फांसी, तिहाड़ और यूपी जेल के अफसरों से।
पवन जल्लाद को पूरी उम्मीद है कि निर्भया के हत्यारों को फांसी लगने के बाद शायद यूपी और तिहाड़ जेल के अफसर खुश होकर कुछ इनाम-इकराम मेहनताने (एक लाख रुपये के अलावा) से अलग भी दे दें।
अब तक के जीवन में दी गई अंतिम फांसी के बारे में पूछे जाने पर पवन जल्लाद ने कहा, जहां तक मुझे याद है, वह समय 1988-89 का था। आगरा सेंट्रल जेल में बुलंदशहर के एक बलात्कारी और हत्यारे को दादा कालू राम जल्लाद के साथ लटकाने गया था। शायद उस जमाने में 200 रुपये मेहनताने में दादा को मिले थे। मैं यही सोचकर तब खुश था कि फोकट में ही सही, दादा के साथ कम से कम फांसी लगाना तो सीख रहा हूं।
Created On :   8 Jan 2020 11:30 PM IST