महाराष्ट्र मामले में दायर याचिका हो सकती है निरस्त, नहीं है संवैधानिक आधार : कानूनी विशेषज्ञ

Petition filed in Maharashtra case may be canceled, there is no constitutional basis: legal expert
महाराष्ट्र मामले में दायर याचिका हो सकती है निरस्त, नहीं है संवैधानिक आधार : कानूनी विशेषज्ञ
महाराष्ट्र मामले में दायर याचिका हो सकती है निरस्त, नहीं है संवैधानिक आधार : कानूनी विशेषज्ञ

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में शनिवार को अचानक राज्यपाल की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को उप मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने सामूहिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका की लिस्टिंग में सामान्यत: अनेक दिन लग जाते हैं लेकिन अर्जेंसी के आधार पर इस याचिका को शनिवार रात में ही रजिस्ट्री का अप्रूवल मिल गया। आज अवकाश के दिन याचिका पर विशेष बेंच द्वारा सुनवाई हो रही है। संविधान से जुड़े मामलों के जानकार व सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता ने आईएएनएस से कहा कि याचिका का संवैधानिक आधार नहीं है। जिससे यह खारिज हो सकती है।

विराग गुप्ता ने कहा कि यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है जिसमें दो महत्वपूर्ण प्रार्थना की गई हैं। पहली प्रार्थना के अनुसार राज्यपाल द्वारा फडणवीस को 23 नवंबर को मुख्यमंत्री बनाया जाना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत असंवैधानिक है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किया जाना चाहिए। दूसरी प्रार्थना के अनुसार शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के महाविकास आघाडी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल बुलाएं, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है। दूसरी प्रार्थना में किसी भी संवैधानिक प्रावधान के उल्लंघन का जिक्र नहीं किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यदि किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है तो वह सुप्रीम कोर्ट में न्याय के लिए आ सकता है। मूल अधिकारों के तहत समानता, जीवन और अभिव्यक्ति के महत्वपूर्ण मामले आते हैं। संविधान की ²ष्टि से देखा जाए तो तीन पार्टियों द्वारा गठबंधन सरकार बनाने के लिए दायर की गई याचिका निरस्त होने योग्य है।

राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी जाती है जो कि कानूनी व्यक्ति माने जाते हैं । लेकिन इन तीनों पार्टियों द्वारा महा विकास आघाडी गठबंधन का याचिका में जो जिक्र किया गया है उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है । चुनावों के पहले शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। पिछले सप्ताह ही शिवसेना के सांसद संजय राउत ने कहा था कि वे औपचारिक तौर पर एनडीए से अभी अलग नहीं हुए हैं इसलिए संसद में उनकी सीट में बदलाव नहीं होना चाहिए।

राज्यपाल द्वारा शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए अलग-अलग आमंत्रित किया गया था। उस समय भी महाविकास आघाडी गठबंधन का कोई जिक्र नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की मीटिंग बुलाए बगैर कार्य संचालन नियम 12 के तहत राष्ट्रपति शासन हटाने की मंजूरी कैसे दी। राज्यपाल ने फडणवीस द्वारा दिए गए समर्थन पत्रों की जांच क्यों नहीं की ऐसे अनेक सवालों के जवाब जरूरी हैं लेकिन उनसे प्रोसीजर्स का उल्लंघन होता है ना कि मूल अधिकारों का। संविधान के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी के नेता को राज्यपाल ने सरकार बनाने का मौका देकर 30 नवंबर को बहुमत साबित करने के लिए कहा है।

कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी के पास यदि बहुमत है तो फडणवीस की सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाएगी। विधानसभा की कार्रवाई निष्पक्षता से हो इसके लिए कर्नाटक की तर्ज पर याचिकाकतार्ओं द्वारा कार्यवाही के सीधे प्रसारण की मांग की जा सकती है। लेकिन याचिका के मुख्य मांगों में यह नहीं है कि फडणवीस द्वारा विश्वास मत सिद्ध करने की वजह नए मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा में फ्लोर टेस्ट किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने से पहले, महाविकास आगाढी द्वारा राज्यपाल के सम्मुख सरकार बनाने का दावा भी पेश नहीं किया गया तो फिर संविधान के समानता के सिद्धांत का उल्लंघन कैसे हुआ? सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका में सुनवाई के बाद आदेश पारित करने के बावजूद मुख्य सुनवाई के समय यह संवैधानिक सवाल जरूर खड़ा होगा कि याचिकाकर्ता यदि कानूनी व्यक्ति भी नहीं है तो संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका पर सुनवाई कैसे की जा सकती है ?

 

Created On :   24 Nov 2019 6:00 AM GMT

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