झारखंड में नहीं चला घर-घर रघुवर का नारा

Raghuvars slogan did not go from house to house in Jharkhand
झारखंड में नहीं चला घर-घर रघुवर का नारा
झारखंड में नहीं चला घर-घर रघुवर का नारा

नई दिल्ली, 23 दिसम्बर (आईएएनएस)। झारखंड में घर-घर मोदी की तर्ज पर गढ़ा गया घर-घर रघुवर का नारा नहीं चला। प्रदेश में रघुवर सरकार के प्रति लोगों के असंतोष को शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं भांप पाए क्योंकि इस असंतोष के आगे मोदी मैजिक भी बेअसर चला गया।

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले प्रदेश (2000 में झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद) के पहले मुख्यमंत्री हैं, लेकिन सोमवार को आए विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा की हार उनकी सरकार की विफलता बताती है।

विकास के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने वाली भाजपा को प्रदेश के मतदाताओं ने नकार दिया है। आर्थिक विषयों के जानकार बताते हैं कि दास का विकास सिर्फ जुमले में सुनाई देता था और विज्ञापनों में दिखता था, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर ध्यान ही नहीं दिया।

वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि झारखंड में भाजपा की हार अहंकार की प्रवृत्ति का नतीजा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में धमाकेदार जीत हासिल करने के बाद पहले महाराष्ट्र और अब झारखंड में सत्ता से बेदखल हो गई है। हरियाणा में भी मुश्किल से क्षेत्रीय दल के सहयोग से पार्टी सत्ता में आई है।

रांची विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जयप्रकाश खरे ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, कांग्रेस हो या भाजपा, सभी पार्टियों ने हाईकमान कल्चर अपना लिया है। कांग्रेस की तरह भाजपा भी इस कल्चर को अपना चुकी है, इसलिए भाजपा के लिए यह एक संदेश है कि वह हाईकमान कल्चर से बचे।

भाजपा ही हार के राजनीतिक कारणों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, आजसू के साथ गठबंधन टूटना भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण है, क्योंकि प्रदेश की विविधता को देखते हुए गठबंधन की राजनीति ही चल सकती है जिसको पहचान कर विपक्षी दलों ने महागठबंधन (झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन) किया। वहीं, टिकट बंटवारा भी एक बड़ा कारण है।

डॉ. खरे ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों पर जो सरकार ध्यान नहीं देगी उसे इसी तरह का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि रघुवर दास की सरकार ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और पैरा-शिक्षकों पर लाठी लार्च करवाया, जिससे गांव-गांव और घर-घर में सरकार के प्रति असंतोष का माहौल था।

उन्होंने बताया कि रघुबर दास की अहंकार की प्रवृत्ति से आम लोग से लेकर अधिकारी तक नाखुश थे। उन्होंने बताया कि इस सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर ठेकेदारी को बढ़ावा दिया जबकि रोजगार पैदा करने के लिए कोई काम नहीं किया।

उन्होंने कहा, रांची स्थित रिम्स (राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) तक में डॉक्टरों की बहाली नहीं हुई। शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर सरकार ने सिर्फ विज्ञापन प्रकाशित किया, हकीकत में इन दोनों क्षेत्रों में कोई काम नहीं हुआ।

अधिकारी ने बताया कि इस चुनाव में गांव से लेकर शहर तक बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा था।

एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि इस सरकार के दौरान मॉब लिंचिंग की घटना से भी लोग नाराज थे। उन्होंने कहा कि यह सरकार झारखंड के सामाजिक ताना-बाना को नहीं समझ पाई जिससे आदिवासी के साथ-साथ दूसरे समुदाय में भी असंतोष था। अगर अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जाता तो भाजपा बेहतर स्थिति में रहती।

उन्होंने कहा कि सरकार जिस विकास की बात करती थी वह शहरों तक ही सीमित थी, गांव विकास से महरूम था। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार से लोगों को जो उम्मीद थी उसे पूरा करने में यह सरकार विफल साबित हुई।

Created On :   23 Dec 2019 1:30 PM

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