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उप्र : सरकारी मदद की आस में बाढ़ पीड़ित, राहत कोष खाली

बांदा, 30 सितम्बर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के सैकड़ों बाढ़ पीड़ित परिवार सरकारी मदद की आस लगाए खुले आसमान के नीचे दिन गुजार रहे हैं। लेकिन यहां दैवी आपदा राहत कोष में धनराशि ही नहीं है।
पिछले दिनों केन और यमुना नदी में आई भयंकर बाढ़ और अब लगातार बारिश से सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं। हजारों बीघे में बोई फसल डूब गई है। पैलानी तहसील क्षेत्र के कई परिवार ऐसे हैं, जो खुले आसमान के नीचे बरसाती की पन्नी से आशियाना बनाकर हफ्तों से बसर कर रहे हैं। लेकिन उन्हें सरकारी मदद मिलना दूर की बात रही, अब तक पीड़ितों का सरकारी सर्वे तक नहीं हो पाया है।
बुंदेलखंड किसान यूनियन के अध्यक्ष विमल शर्मा के अनुसार, सिर्फ बांदा जिले में करीब 30 हजार हेक्टेअर भूमि की फसल बाढ़ और जल भराव से नष्ट हो गई है और डेढ़ सौ से ज्यादा घर ढह गए हैं। लेकिन पीड़ित परिवार या किसान को एक धेला तक नहीं मिला है।
अपर जिलाधिकारी संतोष बहादुर सिंह ने कहा, लेखपालों की अनवरत चल रही हड़ताल की वजह से बाढ़ पीड़ितों का अभी सर्वे नहीं हो पाया है। जैसे ही हड़ताल खत्म होती है, सर्वे करवा कर पात्रों को सरकारी मदद मुहैया करा दी जाएगी।
जबकि इस बीच जिलाधिकारी हीरालाल ने बताया, राजस्व परिषद के आयुक्त को पत्र भेज कर दैवी आपदा राहत कोष के लिए 50 लाख रुपये की धनराशि और मांगी गई है। इसके पहले शासन से इस मद में एक करोड़ 30 लाख रुपये भेजे गए थे, जिनमें सितंबर माह के पूर्व एक करोड़ 14 लाख रुपये का वितरण किया जा चुका है, सिर्फ 16 लाख रुपये मद में शेष बचा है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब दैवी आपदा राहत कोष में धनराशि ही नहीं है तो सर्वे के बाद भी बाढ़ पीड़ितों को आर्थिक मदद कैसे मिल पाएगी?
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।