मंदिर निर्माण की उपलब्धि के सामने हम सारे दर्द भूल गए हैं : साध्वी ऋतंभरा (साक्षात्कार)

We have forgotten all the pain in front of the achievement of temple construction: Sadhvi Ritambhara (Interview)
मंदिर निर्माण की उपलब्धि के सामने हम सारे दर्द भूल गए हैं : साध्वी ऋतंभरा (साक्षात्कार)
मंदिर निर्माण की उपलब्धि के सामने हम सारे दर्द भूल गए हैं : साध्वी ऋतंभरा (साक्षात्कार)

अयोध्या, 4 अगस्त (आईएएनएस)। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जा रहे भूमि पूजन को लेकर साध्वी ऋतंभरा बेहद खुश हैं। मंदिर आंदोलन के दौरान उनका रोमांचकारी भाषण रामभक्तों को बहुत उत्साहित करता था। इससे आंदोलन को बड़ा बल भी मिला था।

भूमि पूजन को लेकर आईएएनएस से हुई विशेष वार्ता में साध्वी ऋतंभरा ने कहा, कई बार ऐसे सुखानंद होते हैं जो शब्दों से व्यक्त नहीं हो पाते हैं। करीब 500 साल के संघर्ष के बाद स्वाभिमान की जो पुन: प्रतिष्ठा हुई है, उसका आनंद अपार है। सागर की तरह चित्त उछालें भर रहा है।

यह पूछने पर कि राम मंदिर आंदोलन से वह कैसे जुड़ीं, उन्होंने कहा, विदेशी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति को जो नष्ट करने का जो प्रयास किया वही सोचकर तरुणाई उबल पड़ी थी और मैं भी आंदोलन से जुड़ गई। हालांकि इस आंदोलन में मेरी भूमिका नन्ही गिलहरी जैसी ही रही। लेकिन, आंदोलन के लिए मन से समर्पित थी। रामजी अयोध्या ले गए। सरयू के जल से संकल्प लिया। युवापन राम जन्मभूमि और हिंदू संस्कृति के लिए था। सब रामजी ने कराया। अशोक सिंहल का तेजस्वी नेतृत्व मिला।

एक सवाल के जवाब में साध्वी ने कहा, राम मंदिर आंदोलन जब चरम पर था, तो तमाम दिक्कतें भी आईं। कई बार जंगलों, गुफाओं और भिखारियों के बीच समय बिताया था। लोग अपने घरों में रोकने से कतराते थे। भूमिगत होने के भारी कष्ट हमने झेला है। लेकिन मंदिर निर्माण की उपलब्धि के सामने हम सारे दर्द भूल गए हैं।

सध्वी ने बताया, उस दौरान चोरी-छिपे मेरे भाषण रिकॉर्ड होते थे। जो गाड़ी कैसेट लेकर जाती थी, भीड़ लग जाती। कैसेट खत्म होते तो लोग नाराज होने लगते थे। उस समय लोगों में इस तरह का जोश था। राम मंदिर आंदोलन किसी संस्थान या संगठन का नहीं, बल्कि जनांदोलन बन गया था। उसी का सुपरिणाम इस पांच अगस्त को मिल रहा है।

आंदोलन में आडवाणी और जोशी ने राजनीतिक अलख जगाने का काम किया था, लेकिन अब ये लोग नेपथ्य में चले गए हैं, यह पूछने पर उन्होंने कहा, रामजी का काम करने वाले नेपथ्य में नहीं जा सकते। इन लोगों ने अलख जगाई। आंदोलन को धार दिया। ये लोग नींव में रहे हैं और बुनियाद हमेशा मजबूत ही रहती है। इन लोगों के त्याग, तपस्या को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।

ट्रस्ट में मातृशक्ति को जगह न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा, इस बारे में हमने कुछ सोचा ही नहीं। हमसे प्रभु जो करवाना चाह रहे थे, वह करवा लिए। यहां स्त्री, पुरुष की कोई सोच नहीं है। प्रभु का मंदिर बन रहा है, बस यही अच्छी बात है।

कुछ लोग मुहूर्त को लेकर सवाल उठा रहे हैं, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि इतने बड़े उल्लास पर्व पर मुहूर्त से कोई लेना-देना नहीं है। रामजी का काम हमेशा शुभ होता है। रामजी ने खुद अपना मुहूर्त चुना है। प्रभु के मंदिर निर्माण से पूरी दुनिया प्रसन्न है। घर-घर में उत्सव हो रहे हैं।

एक महामंडलेश्वर ने जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया है, क्या यह सही है? इस सवाल पर साध्वी ने कहा कि संत की कोई जाति नहीं होती है। जब पिंडदान करके संन्यास ले लिया तो जाति की चर्चा नहीं करनी चाहिए। कोरोना संक्रमण के कारण भूमि पूजन कार्यक्रम में सीमित लोगों को बुलाया गया है। इसलिए इसको अन्यथा नहीं लेना चाहिए।

एक दूसरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, आमंत्रण किसको-किसको दिया गया है, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन जो लोग भूमि पूजन कार्यक्रम में नहीं पहुंच पा रहे हैं, उन्हें बाद में अयोध्या जाकर रामलला के दरबार में हाजिरी लगा लेनी चाहिए। वहां मंदिर निर्माण का कार्य लगातार चलेगा। ऐसे में लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार वहां कभी भी जा सकते हैं।

यह जिक्र करने पर कि पाकिस्तान के एक मंत्री कह रहे हैं कि जिस दिन भारत में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन होगा, उस समय वहां पर मातम मनाया जाएगा, इस पर ऋतंभरा ने कहा, पाकिस्तान को करोड़ों भारतीयों की भावना का सम्मान करना चाहिए। इससे सौहार्द बढ़ता है। लेकिन उनके पास दिल हो तो ऐसा करें। उनका काम हमेशा से छाती-पीटने का रहा है। भारतीय उत्सव मनाना जानते हैं, लेकिन पड़ोसी सिर्फ मातम मनाना जानता है।

Created On :   4 Aug 2020 12:30 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story