दिल्ली: राज्यपाल किसी बिल को अनिश्चितकाल तक रोके नहीं रख सकते, उनकी पावर पर अंकुश लगाना असंवैधानिक- सुको

राज्यपाल किसी बिल को अनिश्चितकाल तक रोके नहीं रख सकते, उनकी पावर पर अंकुश लगाना असंवैधानिक- सुको
सुको के फैसले का असर संघीय ढांचे, राज्यों के अधिकार और गवर्नर की भूमिका पर व्यापक होगा। क्या अनुच्छेद 200 व 201 के तहत उनके निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए 14 संवैधानिक सवालों पर अपनी राय दे रही है। ये सवाल राज्यपाल और राष्ट्रपति के बिल पर कार्रवाई करने की समय सीमा और शक्तियों से जुड़े हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन फेडरलिज्म की किसी भी परिभाषा का मतलब यह होगा कि गवर्नर किसी बिल को हाउस में वापस किए बिना अनिश्चित काल के लिए रोके रखेंगे। प्रेसिडेंट के लिए बिल रिज़र्व करना भी इंस्टीट्यूशनल बातचीत का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो लोग कॉन्स्टिट्यूशनल पदों पर हैं, उन्हें टकराव या रुकावट के बजाय बातचीत और सहयोग की भावना अपनानी चाहिए।

दस दिनों की सुनवाई के बाद रिज़र्व किया गया यह फैसला फेडरल स्ट्रक्चर, राज्यों के अधिकारों और गवर्नरों की भूमिका पर असर डालेगा। सुप्रीम कोर्ट यह साफ करेगा कि क्या वह गवर्नरों और प्रेसिडेंट के लिए टाइम लिमिट तय कर सकता है, और क्या उनके फैसले आर्टिकल 200 और 201 के तहत ज्यूडिशियल रिव्यू के अधीन हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्टिकल 200 और 201 के तहत, गवर्नर के पास असल में तीन ऑप्शन हैं: बिल को मंज़ूरी देना, उसे रोकना, या प्रेसिडेंट के लिए रिज़र्व करना। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया कि पहले प्रोविज़ो को चौथा ऑप्शन नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दो मतलब निकाले जा सकते हैं, तो वह मतलब अपनाया जाना चाहिए जो कॉन्स्टिट्यूशनल संस्थाओं के बीच बातचीत और सहयोग को बढ़ावा दे।


Created On :   20 Nov 2025 12:56 PM IST

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