Climate change: संकट में एशिया की जीवनरेखा, वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर और बारिश की तुलना बैंकिंग से की, पिघलते ग्लेशियर व बारिश ने 11,113 नदियों को बनाया खतरनाक

संकट में एशिया की जीवनरेखा, वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर और बारिश की तुलना बैंकिंग से की, पिघलते ग्लेशियर व बारिश ने 11,113 नदियों को बनाया खतरनाक
  • जलविद्युत परियोजनाओं पर बढ़ता दबाव
  • भारत और गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी की चुनौतियां
  • वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर और बारिश की तुलना बैंकिंग से की, ग्लेशियर को बताया बचत खाता

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर और बारिश की तुलना बैंकिंग से करते हुए कहा है कि बारिश, तनख्वाह की तरह नियमित जरूरतों को पूरा करती है। जबकि ग्लेशियर, बचत खाते की तरह धीरे-धीरे ब्याज की तरह पानी देते हैं। लेकिन बदलती जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे है। जिसकी वजह से ग्लेशियरों से जरूरत से ज्यादा पानी आ रहा है। इसका मतलब है कि बचत खाते का मूलधन खर्च हो रहा है। अगर यही रफ्तार आगे भी जारी रही तो आगामी समय में पानी की कमी गंभीर हो सकती है।

आपको बता दें एशिया के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र हिमालय, काराकोरम, हिंदूकुश, तिब्बती पठार और पामीर को तीसरा ध्रुव कहा जाता है, क्योंकि यहां अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के बाद सबसे ज्यादा बर्फ जमा है। लेकिन अब यही इलाका जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी चेतावनी बनता जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स अम्हर्स्ट के नेतृत्व में किए गए एक शोध अध्ययन ने खुलासा किया है कि पिछले 15 सालों में इस क्षेत्र की 11,113 नदियों के जल प्रवाह में खतरनाक वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियरों के पिघलने और बारिश से भारत, चीन, नेपाल, पाकिस्तान समेत कई देशों की जीवनरेखा कही जाने वाली नदियों को प्रभावित कर रहा है।

ये अध्ययन भारत के लिए विशेष मायने रखता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना बेसिन में हिमालय के कुछ इलाकों और गंगा के निचले क्षेत्रों में जल प्रवाह धीमा हुआ है। दूसरी ओर दक्षिण-पश्चिमी गैर-हिमनद क्षेत्रों में प्रवाह तेजी से बढ़ा है। प्रवाह में इस अंतर का असर उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ रहा है, जहां ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियां स्थानीय कृषि, पेयजल और सिंचाई के लिए जीवनरेखा हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार यही रही तो आगामी दशकों में गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में मौसमी प्रवाह असंतुलित देखने को मिल सकता है, जिससे बाढ़ और सूखे की आवृत्ति बढ़ेगी।

आपको बता दें अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने 2004 से 2019 के बीच उपग्रह डाटा और कंप्यूटर मॉडल की मदद से 1,14,000 नदियों का प्रवाह ट्रैक किया। नतीजे बताते हैं कि करीब 10% नदियों (11,113) में जल प्रवाह बहुत तेजी के साथ बढ़ा है। औसतन 2.7% प्रतिवर्ष पानी की मात्रा में वृद्धि हुई। इसमें से 2.2% हिस्सा ग्लेशियरों के पिघलने से आया। खासकर ऊंचाई वाले हिस्सों और छोटी नदियों पर अधिक असर पड़ा है।

नेपाल और भारत जैसे देशों में जहां नदियों पर आधारित हाइड्रोपावर प्रमुख एनर्जी सोर्स है, आने वाले बदलाव कई नई नई चुनौतियां ला रहा है। नदियों में पानी का बढ़ता प्रवाह से गाद और पत्थर बांधों की ओर बहने लगे हैं। टर्बाइनों में रुकावट और जलाशयों की क्षमता घट रही है। प्रमुख शोधकर्ता जोनाथन फ्लोरेस के मुताबिक तेज प्रवाह से नदियों की शक्ति बढ़ती है, जिससे बांधों और टर्बाइनों पर भारी दबाव पड़ता है।

Created On :   22 Aug 2025 1:00 PM IST

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