राम मंदिर आंदोलन: 1858 में ही सुलझ जाता राम मंदिर विवाद! ब्रिटिश हुकूमत की इस कुटिल चाल से फिरा पानी, विवादित स्थल पर बाड़ लगाकर दोनों पक्षों के बीच खीची नफरत की लकीर

1858 में ही सुलझ जाता राम मंदिर विवाद! ब्रिटिश हुकूमत की इस कुटिल चाल से फिरा पानी, विवादित स्थल पर बाड़ लगाकर दोनों पक्षों के बीच खीची नफरत की लकीर
  • आंदोलन के लिहाज से खास है 1853 का साल
  • पहली बार हिंदू-मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक दंगा
  • 1859 में विवादित स्थल पर लगाई बाड़

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का इतिहास काफी पुराना है। मुगलों के पतन के बाद ही अयोध्या में राम मंदिर को लेकर आवाजें उठने लगी थी। अंग्रेजी शासन ने हिन्दू-मुस्लिम के बीच चल रहे विवाद को कभी सुलझाने की कोई कोशिश नहीं की। 1857 की क्रांति के बाद भारत में अंग्रेजों का शासन कमजोर होने लगा। इसी बीच अयोध्या विवाद सुलझने की कगार पे आया जब रामचरण दास और मौलवी आमिर अली के बीच मंदिर को लेकर सहमति बनी। मुस्लिम पक्ष की तरफ से आमिर अली ने विवादित परिसर हिंदुओं को सौंपने के लिए तैयार हो गए। हालांकि, जैसे ही इस बात की भनक अंग्रेजों को लगी उन्होंने अपनी चाल से पूरे मामले को पलट दिया। सुलझता हुआ नजर आने वाला राम मंदिर का मामला अंग्रेजों की वजह से एक बार फिर उलझ गया।

1853 में हुआ पहला दंगा

मुगलों के पतन के बाद अंग्रेजों के शासन में ही राम मंदिर का मुद्दा उठना शुरू हो गया था। हिंदुओं का आरोप था कि 1526 में बाबर ने राम मंदिर को तोड़कर अयोध्या में राम जन्मभूमि के ऊपर बाबरी मस्जिद बनवाया है। हिंदुओं ने वहां फिर से राम मंदिर बनाने की डिमांड शुरू कर दी। साल 1853 में दोनों समुदाय के बीच खींचतान बहुत ज्यादा बढ गई, जो बाद में हिंसा में परिवर्तित हो गई। राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में पहली बार विवादित परिसर के बाद दोनों संप्रदाय के बीच बढते विवाद ने सांप्रदायिक दंगे का रूप ले लिया। इस घटना के चलते यह वर्ष राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है।

6 साल बाद मिली पूजा की अनुमति

1853 के दंगे के बाद राम मंदिर निर्माण को लेकर दोनों पक्षों के बीच संघर्ष के कारण अयोध्या लगातार संवेदनशील बना रहा। हालांकि, अंग्रेजी शासन में अयोध्या में दोबारा कोई हिंसक घटना नहीं हुई। बताया जाता है कि इस विवाद को स्थानीय स्तर पर दोनों पक्षों ने सुलझाने की कोशिश की। बाबा रामचरण दास और मौलवी आमिर अली के नेतृत्व में दोनों पक्ष मंदिर निर्माण को लेकर सहमत हो गए। यह वह समय था जब 1857 की क्रांति के बाद भारत में ब्रिटिश सरकार की पकड़ कमजोर पड़ रही थी इसीलिए जैसे ही उन्हें इस विवाद के निपटारे की भनक लगी शासन तुरंत हरकत में आ गया। कमजोर होती पकड़ में इस विवाद के खत्म होने और हिंदू-मुस्लिम के साथ आने पर अंग्रेजों को अपनी सत्ता पर खतरा मंडराता हुआ नजर आने लगा। 18 मार्च 1958 को कुबेर टिला पर स्थित इमली के पेड़ से लटका कर अंग्रेजों ने बाबा रामचरण दास और मौलवी आमिर को फांसी लगा दी।

इस घटना के चलते विवाद का निपटारा नहीं हो पाया। दोनों पक्षों के बीच विवाद बनाए रखना अंग्रेजों के पक्ष में था इसीलिए उन्होंने एक 1859 में एक और लकीर खींच दी। 1859 में विवादित परिसर में बाड़ खींचकर पहली बार पूजा करने की अनुमति अंग्रेजी शासन ने हिंदुओं को दिया। परिसर में बाड़ लगाकर बाहरी हिस्से में हिंदुओं को पूजा करने की और भीतरी हिस्से में मुसलमानों को नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई।

Created On :   17 Jan 2024 4:58 PM GMT

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