समय के साथ बदलते सियासी सुर: बसपा और मायावती की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य

बसपा और मायावती की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य
  • कई दल बदले, लेकिन बसपा जैसा रुतबा कहीं नहीं
  • बसपा में वापसी की पिच, स्वामी के बदलते सुर
  • भाजपा में गए, सपा की सवारी की, जनता पार्टी भी बनाई

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र में सत्ता की कुर्सी का रास्ता दिखाने वाले उत्तरप्रदेश में सियासी बयानबाजी जारी है। यूपी की पॉलिटिक्स में इन दिनों स्वामी प्रसाद मौर्य काफी चर्चाओं में है। इसकी वजह कभी मायावती पर तीखे हमले करने वाले स्वामी अचानक बीएसपी और मायावती की जमकर तारीफ कर रहे है। कभी मायावती पर निजी हमले कर, गंभीर आरोप लगाकर बसपा छोड़ने वाले स्वामी के तेवर इन दिनों बदले-बदले से लग रहे हैं।

जनता पार्टी नाम से भले ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपना दल बना लिया हो, लोक मोर्चा नाम से गठबंधन बनाकर खुद को सीएम फेस घोषित करा लिया हो, लेकिन ये सब स्वामी को वह रुतबा नहीं लौट सका जो कभी बहुजन समाज पार्टी में हुआ करता था। शायद उन्हें लगने लगा है कि भाजपा और सपा की सीधी लड़ाई में तीसरा मजबूत कोण बसपा ही है। बसपा भी पुराने नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है और स्वामी सियासत में खुद को प्रासंगिक या योग्य बनाए रखने की।

आपको बता दें एक दिन पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने यूपी के बाराबंकी में भाजपा और सपा पर कड़ा प्रहार किया। लेकिन बसपा की ओर उंगली उठाने से परहेज किया। मौर्य ने बीएसपी प्रमुख मायावती की तारीफ करते हुए उन्हें अब तक का सबसे बेहतर सीएम बताया। उससे एक दिन पहले ही स्वामी प्रसाद ने बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को भी बधाई दी थी और कहा था कि वह राजनीति में अभी बहुत नए हैं, आकाश आनंद को पार्टी में और महत्व दिया जाना चाहिए।

बसपा छोड़ने के बाद जिस स्वामी ने पहले बीजेपी का दामन थामा, मंत्री बने और फिर सपा में गए, लेकिन उनका वैसा रुतबा नहीं रहा जैसा बीएसपी में हुआ करता था। अब स्वामी के बयान अतीत का रुतबा हासिल करने की उम्मीद के साथ बीएसपी में वापसी के लिए सॉफ्ट सिग्नल भेजने की कवायद के तौर पर देखे जा रहे है। कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि ये भी कह रहे है कि अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य अब बसपा में वापसी की पिच तैयार करने में लगे हुए हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने सियासी सफर का आगाज बहुजन समाज पार्टी से ही किया था। 1996 में बसपा के टिकट पर डलमऊ सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। एक समय पर स्वामी की गिनती मायावती के सबसे करीबी, सबसे ताकतवर नेताओं में होती थी।

माया सरकार में स्वामी प्रसाद मौर्य का रुतबा था। उनकी गिनती सबसे ताकतवर मंत्रियों में होती थी। 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा की सत्ता से विदाई के बाद हालात बदले और स्वामी की सियासी नाव भी डंवाडोल होने लगी। 2014 के संसदीय चुनाव में बीएसपी जीरो पर सिमट गई और स्वामी नए सियासी ठौर की तलाश में जुट गए। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले स्वामी ने 2016 में भाजपा का दामन थाम लिया था। बीजेपी की योगी सरकार में स्वामी मंत्री भी बने, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी से उनका मोहभंग हो गया और मंत्री पद से इस्तीफा देकर उन्होंने सपा की साइकिल पर सवार होकर आगे का सियासी सफर करना चाहा लेकिन 2022 के यूपी चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी सीट भी नहीं जीत सके।

Created On :   19 Jun 2025 5:32 PM IST

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