नेहरू के राज में भी हुए 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की तर्ज पर चुनाव, पिता की इस परंपरा को क्यों तोड़ने पर मजबूर हुईं इंदिरा गांधी?

नेहरू के राज में भी हुए वन नेशन, वन इलेक्शन की तर्ज पर चुनाव, पिता की इस परंपरा को क्यों तोड़ने पर मजबूर हुईं इंदिरा गांधी?
  • 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए कमेटी का गठन
  • चार बार एक देश, एक चुनाव के तहत हो चुका है इलेक्शन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के एलान और कमेटी के गठित करने के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई है। बीते दिन यानी 31 अगस्त को केंद्र सरकार की ओर से जब यह सूचना दी गई कि 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है, तब से ही चर्चा होने लगी थी कि इस बार कुछ खास होने वाला है। इसी बीच आज (1 सितंबर) सुबह केंद्र की मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए कमेटी का गठन कर दिया यानी अगर ये संसद में विशेष सत्र के दौरान विधेयक के रुप में पेश किया जाता है और पास हो जाता है तो 'एक देश, एक चुनाव' कानून बन जाएगा। जिसका अर्थ है कि, लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव आम चुनाव के साथ ही होंगे।

'वन नेशन, वन इलेक्शन' का पक्षधर सत्तारूढ़ बीजेपी भी रही है। उसका कहना है कि इस इलेक्शन से देश के खजाने में बचत होगी, जो विकास कार्यों के लिए उपयोग होगा जबकि इसके ठीक उल्ट विपक्ष बयान दे रहा है। उनका कहना है कि, बीजेपी को पता चल चुका है कि उसकी जमीन खिसक रही है इसलिए नई-नई तरकीब ला रही है लेकिन इन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने का मन देश की जनता ने बना लिया है।

चार बार पहले भी हो चुके हैं ऐसे चुनाव

अगर ऐसा करने में मोदी सरकार कामयाब हो जाती है तो यह पहली बार नहीं होगा जब आम चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए हो। इससे पहले देश में चार बार लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जो 1952, 1957, 1962 और 1967 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए हैं। लेकिन आम चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने की परंपरा 1968-69 में बंद हो गई थी। जिसकी कारण चुनाव से पहले ही कुछ राज्यों के विधानसभा सत्र को भंग करना था। तब से मौजूदा समय वाली परंपरा ही चलती आ रही है। लेकिन पुरानी परंपरा को कई बार लागू करने की कोशिश की गई लेकिन किसी भी सरकार को अब तक सफलता नहीं मिल पाई है।

देश में पहला आम चुनाव कब?

देश का पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर साल 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच में हुए थे। तब लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हुए थे। उस समय लोकसभा की 494 सीटें हुआ करती थीं। पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 365, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 16, सोश्लिस्ट पार्टी को 12, किसान मजदूर पार्टी को 9, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को 7, गणतंत्र परिषद को 6, हिंदू महासभा को 4 सीट और निर्दलीयों को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई थीं। 1951-52 के आम चुनाव के दौरान जवाहर लाल नेहरू निर्वाचित प्रधानमंत्री बने थे।

परंपरा को इंदिरा गांधी ने तोड़ा

पहले लोकसभा चुनाव से लेकर साल 1962 तक कांग्रेस पार्टी ने बहुमत हासिल किया और पंडित नेहरू पीएम बनते रहे। साल 1967 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भी वन नेशन, 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर ही चुनाव हुए लेकिन पार्टी के अंदरूनी बागवत के चलते साल 1970 में फिर चुनाव कराने पड़े थे क्योंकि पार्टी के पास सरकार चलाने के लिए बहुमत नहीं थे। जिसको देखते हुए इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग करने के लिए सिफारिश कर दी थी। जिसे स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति ने संसद भंग कर दी थी। इसके बाद फिर देश में साल 1971 में आम चुनाव हुए, जो समय से पहले था। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी 352 सीटें जीतकर एक बार फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई थी। इसके बाद से ही लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते आ रहे हैं।

क्या है 'वन नेशन, वन इलेक्शन'?

'वन नेशन, वन इलेक्शन' का अर्थ है एक राष्ट्र एक चुनाव यानी लोकसभा का जब चुनाव होगा तभी सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे। सरल भाषा में समझे तो जब प्रधानमंत्री के लिए चुनाव होंगे तभी देश की जनता अपने-अपने राज्यों में मुख्यमंत्रियों का चुनाव करेंगे। लेकिन अभी इस पर सरकार ने आधिकारिक तौर पर बयान जारी नहीं किया है महज एक कमेटी का गठन किया जो लोगों से बात और कानूनी प्रक्रियों को समझेगी।

Created On :   1 Sep 2023 11:46 AM GMT

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