भास्कर एक्सक्लूसिव: सूरत में कांग्रेस चल देती ये दांव तो नहीं होता बुरा हाल, सबक लेकर ओवैसी ने खड़ा किया बैकअप उम्मीदवार, समझिए क्या है इसका गणित?

सूरत में कांग्रेस चल देती ये दांव तो नहीं होता बुरा हाल, सबक लेकर ओवैसी ने खड़ा किया बैकअप उम्मीदवार, समझिए क्या है इसका गणित?
  • कांग्रेस से सबक लेकर ओवैसी ने उतारा बैकअप कैंडिडेट
  • ओवैसी के भाई बैकअप कैंडिडेट के तौर पर मैदान में
  • हैदराबाद सीट से बैकअप कैंडिडेट हैं अकबरुद्दीन ओवैसी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस बार के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की हैदराबाद सीट पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी और बीजेपी उम्मीदवार माधवी लता के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन, सोमवार को हैदराबाद सीट से ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने नामांकन दाखिल करके हर किसी को चौंका दिया। ऐसे में क्या अकबरुद्दीन अपने भाई के खिलाफ हैदराबाद सीट से चुनाव लड़ने वाले हैं? कुछ घंटे पहले तक अपने भाई ओवैसी के लिए प्रचार करने वाले अकबरुद्दीन अचानक हैदराबाद सीट से अपना पर्चा क्यों भर दिए? कुछ लोग इसे अकबरुद्दीन का अपने भाई खिलाफ बगावत के तौर पर देख रहे हैं। आइए जानते हैं कि आखिरी हैदाराबाद सीट पर क्या चल रहा है? सूरत में कांग्रेस और खजुराहो में सपा ने भी यही पैंतरा चला होता तो शायद हार की स्थिति नहीं हुई होती। इस पैंतरे को बैकअप उम्मीदवार कहा जा सकता है।

जानें पूरा मामला

बता दें कि, न ही अकबरुद्दीन ने अपने भाई के खिलाफ बगावत किया है और न ही वह ओवैसी को चुनौती देने वाले हैं। दरअसल, असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद सीट से अपने भाई अकबरुद्दीन को बैकअप यानी वैकल्पिक उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कराया है। ऐसे अब सवाल उठता है कि आखिरी इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

अगर किसी कारण से असदुद्दीन ओवैसी का नामांकन रद्द हो जाता है तो एआईएमआईएम के पास बैकअप के तौर पर अकबरुद्दीन का नामांकन रहेगा। जिससे हैदराबाद सीट से पार्टी को प्रत्याशी नुकसान के चलते चुनाव नहीं हारना पड़ेगा। हालांकि, यह पहला ऐसा मौका नहीं जब एआईएमआईएम ने चुनाव से पहले अपना बैकअप उम्मीदवार उतारा हो। इससे पहले पार्टी ने पिछले साल तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान चंद्रायानगुट्टा से अकबरुद्दीन ओवैसी ने अपना नामांकन दाखिल किया था। उस दौरान इस सीट से अकबरुद्दीन के बेटे नूरउद्दीन ओवैसी ने भी अपना दाखिल किया था। बाद में अकबरुद्दीन के बेटे ने अपना नामांकन वापस ले लिया था।

सूरत सीट कांग्रेस को गंवानी पड़ी

अगर पार्टी के पास किसी भी सीट पर वैकल्पिक उम्मीदवार नहीं होता है तो वहां का चुनावी समीकरण दूसरे खेमे के पक्ष में चला जाता है। ताजा उदाहरण सोमवार को गुजरात के सूरत सीट पर देखने को मिला। जहां कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने के बाद बाकी बचे 8 उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिया। जिसके बाद बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध चुनाव जीत गए। इसके अलावा मध्य प्रदेश के खजुराहो सीट पर भी सपा प्रत्याशी का नामांकन रद्द होने के बाद सीट पर बीजेपी उम्मीदवार वीडी शर्मा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। ऐसे में अगर सपा के पास खजुराहो सीट पर वैकल्पिक उम्मीदवार होते तो यहां का समीकरण अभी कुछ और होता। हालांकि, इस सीट सपा ने एक निर्दलीय नेता पर भरोसा जताया है। साथ ही, पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने को भी कहा है।

क्यों पार्टी इस्तेमाल करती है बैकअप ऑप्शन?

चुनाव अधिकारी की जांच के बाद अगर पार्टी के मुख्य उम्मीदवार के नामांकन को रद्द कर देती है तो, ऐसी स्थिति में पार्टी वैकल्पिक उम्मीदवार को पार्टी मुख्य चेहरा घोषित कर देती है। अधिकांश बड़ी पार्टियों की ओर से बैकअप उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा जाता है। इस उम्मीदवार की उम्मीदवारी नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख तक रहती है। ऐसे में जब मुख्य उम्मीदवार का नामांकन चुनाव कार्यकाल द्वारा अप्रूव कर लिया जाता है तो वैकल्पिक प्रत्याशी का हलफनामा अमान्य घोषित कर दिया जाता है।

हैदराबाद सीट से एआईएमआईएम पार्टी की ओर से अकबरुद्दीन ओवैसी ने बैकअप उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन कराया है। अगर पार्टी के मुख्य उम्मीदवार असदुद्दीन ओवैसी का किसी कारण बस नामांकन खारिज होता जाता है तो एआईएमआईएम अपने बैकअप उम्मीदवार अकबरुद्दीन का नामांकन जारी रखेगा। साथ ही, वह पार्टी के एक उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगे।

क्या है चुनाव आयोग का नियम?

चुनाव आयोग के नियमों और विनियमों के मुताबिक, हर उम्मीदवार को तीन से चार सेट जमा करने की होते हैं। ताकि यह सुनिश्चित हो कोई भी जानकारी दस्तावेज में गुम न हो जाए। साथ ही, हर सेट एक बैकअप के रूप में काम करता है। नामांकन का एक सेट खो जाने, खराब होने या कोई गलती पाए जाने की स्थिति में दूसरे सेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह संभावित रूप से उम्मीदवारों को अयोग्य होने से बचाता है।

हैदराबाद है ओवैसी परिवार का गढ़

गौरतलब है कि साल 1984 से ही ओवैसी परिवार का गढ़ रहा है। इस सीट से ओवैसी के दिवंगत पिता सलाहुद्दीन ओवैसी 1984 से 1999 तक छह बार चुनाव जीते। वहीं, 2004 से 2019 तक 4 बार असदुद्दीन ओवैसी ने यहां से चुनाव जीता। कुल मिलाकर दस बार से लगातार ओवैसी का परिवार इस सीट से चुनाव जीतता आ रहा है। हैदराबाद सीट पर करीब 60 फीसदी मुस्लिम और 40 फीसदी हिंदू रहते हैं।

Created On :   23 April 2024 12:08 PM GMT

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