भास्कर हिंदी एक्सक्लूसिव: छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में धर्म और जातियों से तय होते है प्रत्याशी और उनकी जीत

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में धर्म और जातियों से तय होते है प्रत्याशी और उनकी जीत
  • छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी राजनांदगांव
  • राजनांदगांव में चार विधानसभा सीट
  • राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी सामान्य और डोंगरगढ़ एससी आरक्षित

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी कहे जाने वाले राजनांदगांव जिले में 4 विधानसभा सीट राजनांदगांव, डोंगरगढ़, डोंगरगांव, खुज्जी हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव हैं। ऐसे में यहां कि सीटे हमेशा चर्चा में रहती है। रियासतकाल में राजनांदगांव को नंदग्राम के नाम से पुकारा जाता था। यहां की अपनी एक गौरवशाली समाज, संस्कृति, राजाओं और परंपराओं की कहानी रही है। यहां सोमवंशी, कलचुरी एवं मराठाओं का शासन रहा है। 26 जनवरी 1973 में दुर्ग जिले से अलग होकर राजनांदगांव जिला अस्तित्व में आया। वहीं 1 जुलाई 1998 को राजनांदगांव जिले के कुछ हिस्सों को अलग कर कबीरधाम जिले का मनाया था।

राजनांदगांव विधानसभा सीट

2003 में कांग्रेस के उदय मुदलियार

2008 में बीजेपी के रमन सिंह

2013 में बीजेपी के रमन सिंह

2018 में बीजेपी के रमन सिंह

2008 के बाद से राजनांदगांव विधानसभा सीट बीजेपी का अभेद किला बनी हुई है। यहां बीजेपी का एकतरफा कब्जा बना हुआ है। लगातार 15 सालों से रमन सिंह यहां से विधायक निर्वाचित होते आ रहे है। आपको बता दें राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी पिछड़ा वर्ग की है। जिसमें भी साहू, लोधी, यादव मतदाताओं की संख्या अधिक है। शहरी विधानसभा होने के कारण यहां ओबीसी की तुलना में सामान्य वोटर्स अहम भूमिका निभाता है। लेकिन वोटर्स संख्या अधिक होने के कारण ओबीसी मतदाता ही निर्णायक होता है। यहां मुख्य चुनावी मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता है। राजनांदगांव में प्रमुख समस्याएं बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के साथ क्षेत्र में जमीनी विकास की कमी।

डोंगरगढ़ विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से भुनेश्वर सिंह बघेल

2013 में बीजेपी से सरोजनी बंजारे

2008 में बीजेपी रामजी भारती

2003 में बीजेपी से विनोद खांडेकर

डोंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। एससी बाहुल इस सीट पर इसी वर्ग के वोटर्स निर्णायक भूमिका में होते है। डोंगरगढ़ विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ रही है, भले ही इस सीट को भाजपाई वर्कर्स भगवानगढ़ कहते हो लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी हार चुकी है। आपको बता दें 2018 से पहले लगातार तीन चुनाव बीजेपी यहां से चुनाव हार चुकी है। विधानसभा क्षेत्र में ओबीसी मतदाताओं की संख्या भी ठीक ठाक है। डोंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में हिंदू, बौद्ध, सिख, ईसाई धर्मों के प्रमुख स्थल है। यहां बौद्ध धर्म के अनुयायी चुनाव में हार जीत की दिशा तय करते है। समस्याओं की बात की जाए तो सड़क, शिक्षा की बदहाल स्थिति है,बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी यहां की प्रमुख समस्या है। इलाके में कई गांवों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।

डोंगरगांव विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से डालेश्वर साहू

2013 में कांग्रेस से डालेश्वर साहू

2008 में बीजेपी से खेडूराम साहू

2003 में बीजेपी से प्रदीप गांधी

डोंगरगांव विधानसभा सीट पर ओबीसी मतदाताओं का दबदबा है, पिछड़े वर्ग में भी साहू समाज के वोटर्स सबसे ज्यादा है। साहू मतदाता ही प्रत्याशियों की हार जीत का फैसला करते है। लेकिन साहू समुदाय के साथ यादव ,वर्मा, अन्य समाज के मतदाताओं की एकजुटता चुनाव को किसी भी दिशा में मोड़ देते है। राजनीतिक दल भी सोशल फैक्टर को देखते हुए प्रत्याशियों का ऐलान करते है। समस्याओं की बात की जाए तो यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है। पेयजल, साफ साफ सफाई, सड़क में गड्ढे, शिक्षा की बदहाल स्थिति यहां की प्रमुख समस्या है।

खुज्जी विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से छन्नी चंदू साहू

2013 में कांग्रेस से भोलाराम साहू

2008 में कांग्रेस से भोलाराम साहू

2003 में बीजेपी से राजिंदर पाल सिंह भाटिया

राजनांदगांव जिले की खुज्जी विधानसभा वनांचल क्षेत्र है। खुज्जी को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव 2008, 2013 और 2018 में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी की ही जीत हुई है। खुज्जी विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति की आबादी सबसे ज्यादा है। एसटी वोटर्स ही यहां निर्णायक भूमिका में होते है। आदिवासी मतदाताओं के साथ सिन्हा और कलार समाज के वोटर अहम भूमिका में होते है। इनके बाद यादव,साहू मतदाताओं की संख्या है। चुनाव में आदिवासी और ओबीसी फैक्टर ही चलता है। जिसके चलते सभी पार्टियां इन्हीं वर्ग पर अधिक फोकस करती है। समस्या और मुद्दों की बात की जाए तो यहां स्थानीय मुद्दें अधिक सुनाई देते है। लोकल मुद्दों में सड़क,पानी और बिजली से साथ रोजगार की समस्या यहां बनी रहती है।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ ने सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गद्दी संभाली थी। पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। 2018 में कांग्रेस की बंपर जीत से बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   9 Oct 2023 1:59 PM GMT

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